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Friday, 1 April 2016

मेरे विचार से कंस महामूढ ही था । मूढता मे अहंकार, क्रोध व जिद्द अपने अति पर होना स्वाभाविक है

मेरे विचार से कंस महामूढ ही था । मूढता मे अहंकार, क्रोध व जिद्द अपने अति पर होना स्वाभाविक है

उसके मंत्रीयो ने उसे अलग- अलग बन्दी गृह मे रखने की सलाह दी थी, परन्तु वह अपनेघमण्ड मे चूर इसे अपना अपमान समझा और कहा कि कहॉ मै और कहॉ ये छोटे से बच्चेवो मुझे मार देगे मै पैदा होते ही उनको मार दूगा ।

देखता हू कि मुझे कौन मार सकता है । इसीलिए उसने दोनो को एक ही कैद खाने मे बन्द कर दिया और प्रत्येक शिशु की बेरहमी से हत्या करी । लेकिन संयोगवश आठवा पुत्र बच गया और वही उसकी मृत्यु बना ।

तुम किसी को बदलना चाहते हो , तब वह कभी नही बदलेगा ,लेकिन जो है ,जैसा है, उसे प्रेम करते रहो , वह बदलना आरम्भ हो जाता है !

तुम किसी को बदलना चाहते हो , तब वह कभी नही बदलेगा ,लेकिन जो है ,जैसा है, उसे प्रेम करते रहो , वह बदलना आरम्भ हो जाता है !

वैसे ही जैसे तुम हो जो परम ने तुम्हेदिया, जैसा परम तुम्हे बनाया सभी ओरसे स्वीक्रति हो जाओ! बस परमात्मा तुम्हे बदलना आरम्भ देगा ! दुसरे को बदलना हैतब उसे सिर्फ प्रेम करो उससे कोई शिकायत न करो वह तुम्हारी इच्छा अनुचार बदलाना आरम्भ हो जायेगा !

जब तुम डरा धमका कर और भयभीत करके उसे बदलना चाहते है ,तब नही बदलेगा ! लेकिन वह जो करता है उसे करने दो और प्रेम करते रहो ! उसमे बदलाव आरम्भ हो जायेगा ! तुम अपने आप को बदलना चाहते हो! तब यही सूत्र काम आता है !

तुम परमात्मा से कोई शिकायत या मांग न करो वह जैसा जो करवाता है उसे करते जाओ सिर्फ परम के गुलाम बन जाओ और उसेके हर सुख दुःख में उससे प्रेम करते हो तुम्हे कोई बदलना नहीहै!

सिर्फ तुम्हारे और परमात्मा के बिच काजो संवाद है उसे बदलना है ! उस सम्प्रण में तुम्हे परमात्मा मोत भी देती है तो वह जीवन भी दे देगा! उसने जो तुम्हे दिया है,जो अभी तुम्हे बनाया है उसे सब तरफ से स्वीकार कर लो !

कोई तपस्या नही करनी . कोई विधि से ध्यान नही करना है,कोई पूजा प्राथना नही करनी है ,वह जैसा आपके जीवन को मोड़ रहा उसे मोड़ने दो औरसिर्फ प्रसन्नरहो की जो भी हो रहा है शुभ ही हो रहा है ! सिर्फ स्वीक्रति मात्र चाहिए !

कही लड़ना नही , कही कोई बड़ा संघर्ष नही , उस अवस्था में तुम्हे जो परम बना देगा !जो परिवर्तन देगा जो बदलाव देगा जिसकी आपके पास कोई कल्पना नही है !

तुम्हारा स्म्प्रण दूसरानही देखता है इसलिए यह तुम करने को तेयार नही हो तुम वह करना चाहते जिसमे दूसरा प्रभावित हो ! उसमे तुम्हारा कोई बदलाव नही होता है !

जैसे दिखावी धार्मिकता त्याग ,वस्त्रधारण ,उलटेसीधे दिखाने की साधना उसमे तुम परिवर्तन नही होते है ! वहएक पाखंड का मार्ग है !इन मार्गो से किसी ने कुछ पाया नही है !परमात्मा के प्रति जिसने गुप्त मार्ग अपना लिया, गुप्त स्म्प्रण कर दिया ,गुप्त रूप से प्रेम से सभी के प्रति प्रेम में रहा उसे ही परमात्मा का गुप्त खजाना मिलता है !

उसे बदलाव मिलता है ! सत्य इन आंखे नही देखा जा सकता है, उसी तरह सत्य में होने या परम को सम्प्रण यह सब कुछ गुप्त होना आवश्यक है ! यह परम में होने का प्रथम सूत्र है ! कोई विधि नही, कोई साधना नही ,कोई सन्यास नही, कोई धर्मकर्मकांड नही !

जहा हो जैसे हो कुछ भी अपने को बदलाव के लिए अलग कुछ नही करना है ! इस मार्ग में सभी साधना सभी धर्म फीके है !जबकि तुम क्या कर रहो किसी को कुछ मालूम नही होगा और तुम्हे क्या मिलेगा उसका भी किसी को मालूम नही पड़ेगा लेकिन वह इसी जगह इसी हालत में ,उसी गरीबीमें, उसी रहन सहन भोजन आवास में तुम सर्वगहोंगे !

यह सत्य के लिए प्रमाणिक मार्ग है! लेकिन हमारे अंदर असत्य भरा पड़ा है इसलिए पाखंड लुटेरे भगवान मालूम पड़ते है तब सभाविक है वह तुम्हारे कर्मो का ही मार्ग है ! जो तुम पाखंड का साथ किये हुए है!

OSHO LOVE

स्मरण रखे - जो परमात्मा की शक्ति को जानता है , उसके लिए ज़मीन पर कोई कमजोरी नही रह जाती और जो परमात्मा को पहचानता है , उसके लिए शोषण असंभव है ।

स्मरण रखे - जो परमात्मा की शक्ति को जानता है , उसके लिए ज़मीन पर कोई कमजोरी नही रह जाती और जो परमात्मा को पहचानता है , उसके लिए शोषण असंभव है ।~

ओशो यह ध्यान रखने योग्य , समझने योग्य रहस्य है की जो परमात्मा की शक्ति को , परमात्माके नियम को जान लेता है उसके लिए इस धरती पर उसके लिए कमजोरी नही रहती है !

वह किसी कमजोरी की जंजीर से नही बंधता है ! जिसे परमात्मा की शक्ति का परमात्मा के नियमो काअनुभव नही हो वह कुछ भी बन कर लोगो का शोषण करता रहता है!

वह लोगो को गुरु के नाम ,धर्म के नाम शोषण जारी रखता है!क्योकि उसे सत्य के बारे में या परमात्माके नियम से अवगत नही होता है तब वह किसी भी ढंक से लोगो का शोषण करता ही रहेगा !

जो स्वतंत्र होता है जिसने स्वयं को जान लिया हो वह गुरु, धर्म सत्य के नाम पर लोगो अपने से नही बांधता है ! यह किसी का सत्य में होने या न होने का प्रथम संकेत है

खुदा ईश्वर भगवान और भी बहुत नाम है उसकेकहते तो है कि तु रहता हर जगह है फिर तुझे मन्दिर

खुदा ईश्वर भगवान और भी बहुत नाम है उसकेकहते तो है कि तु रहता हर जगह है फिर तुझे मन्दिर मस्जिद गिरिजा मे ही ढुडते क्यु है

कहते तो है तु एक है बे नाम हैफिर तेरे इतने नाम क्यु हैकहते तो है तु प्रेम स्वरुप हैपर तेरे ही नाम पे इतना खुन खराबा क्यु है

कहते तो है तु रहता है हर एक के अन्दर फिर भी तुझे पाने कि इतनी जद्दो जहत क्यु है

कोइ भुका रहके तुझे मना रहा है
कोइ बिन पिय पानीईश्वर तो भाओ मे बसते है फिर क्यु रचे गय

मन गडत काहनी
Osho

अड़सठ तीर्थ हिंदुओं ने माने हैं,जिनमें स्नान करने सेपरम मुक्ति मिलती है।लेकिन वे अड़सठ

अड़सठ तीर्थ हिंदुओं ने माने हैं,जिनमें स्नान करने सेपरम मुक्ति मिलती है।लेकिन वे अड़सठ तीर्थ तोनक्शे पर बताए गएतीर्थों की भांति हैं।

शरीर के भीतरअड़सठ बिंदु हैं,जिनसे गुजर कर पुण्य कीउपलब्धि होती है।हिंदुओं ने बड़ाअदभुत काम किया है।पृथ्वी पर किसी जाति नेऐसा अदभुत काम नहीं  किया।

बाहर तो प्रतीक हैं औरउन प्रतीकों में जब हमभटक गए तो हिंदुओं कीसारी जीवन-चेतना खो गई।हम कहते हैं कि गंगा जलरामेश्वरम में ले जा कर चढ़ा रहे हैं।भीतर शरीर के बिंदु हैं।

एक बिंदु से ऊर्जा को लेना हैऔर दूसरे बिंदु पर चढ़ाना है।एक बिंदु से ऊर्जा को खींचना हैऔर दूसरे बिंदु तक पहुंचाना है।तब तीर्थ यात्रा हुई।पर हम अब पानी ढो रहे हैं,गंगा से और रामेश्वरम तक।हमने पूरी पृथ्वी कोनक्शे की तरह बना लिया था,आदमी का फैलाव।आदमी के भीतर बड़ासूक्ष्म है सब कुछ।

उसको समझाने के लिएये प्रतीक थे।और इन प्रतीकों कोहमने सत्य मान लिया तोहम भटक गए।प्रतीक कभी सत्य नहीं होते,सत्य की तरफ इशारे होते हैं।

ओशो.....♡

इन सब के लिए कही न कही हम सभी जिम्मेदार है तो जिम्मेदारी भी हम सबको उठानी पड़ेगी।।।

इन सब के लिए कही न कही हम सभी जिम्मेदार है तो जिम्मेदारी भी हम सबको उठानी पड़ेगी।।।

ऐसा नही है के हम कुछ कर नही सकते असल में हम कुछ करना नही चाहते सोचते कोई अवतार आएगा और दुनिया को पाप से बचाएगा नही मेरे दोस्तों ऐसा नही है इस इंतजार से आलसीपन से कुछ नही होगा करना हमे कुछ होगा।।।

कोई अवतार नही आता किसी को बचाने हाँ जब कोई खुद किसी को बचाने की।।

खुद कुछ करने की जिम्मेदारी उठाता है कुछ करने की हिम्मत दिखाता है दुनिया उसी को अवतार पीर पैगम्बर कहने लगती है।।।

तुम सब भी ऐसा कर सकते हो बस जरूरत है अपने अंदर कुछ करने की हिम्मत जगाने की।।।

जरूरी नही के कोई बड़ा काम ही करो।।बस जब भी कही देखो कि किसी को मदद कीजरुरत है और तुम कर सकते हो तो जरूर।।।

नही कर सकते तो चुपचाप निकल जाओ पर अगर कर सकते हो तो जरूर करो।।।और किसी की मदद करके जो ख़ुशी मिलेगी ।।

सच मानो दोस्तों।।।कोई जन्नत और स्वर्ग उसका मुकाबला नही कर सकते।।।

सहजानंद ! दो झूठे लतीफे। पहला --वेदांत सत्संग मंडल की सभा के पश्चात सामूहिक भोजन का आयोजन था। सभी बिना दांत के बूढ़े मौजूद थे। वही अर्थ

सहजानंद ! दो झूठे लतीफे।
पहला --वेदांत सत्संग मंडल की सभा के पश्चात सामूहिक भोजन का आयोजन था। सभी बिना दांत के बूढ़े मौजूद थे। वही अर्थ होता है वेदांत सत्संग मंडल का। उन्हीं में थे श्री मुरदाजी भाई देसाई भी, जो कि सिर्फ भाई ही भाई रह गए हैं, जिनकी जान निकल गई है।

अब भूल कर उनको भाईजान न कहना, बस भाई ही कहना, जान अब कहां!इस एक घटना के कारण वे उस दिन विशेष आकर्षण का कारण बन गए। बात यह हुई कि जब खाना परोसने वाले व्यक्ति ने उनसे पूछा कि क्या आप थोड़ी परमल की सब्जी और लेंगे?

तब श्री मुरदाजी भाई यकायक जीवित हो उठे, अर्थात उन्हें भयंकर क्रोध आ गया। आंखे लाल-पीली करके वे बोले : शर्म नहीं आती बदमाश छोकरे? मुझसे ऐसी गंदी बातें करता है!वह व्यक्ति तो हक्का-बक्का रह गया। समझा कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री मजाक कर रहे हैँ।

एक अप्रैल का दिन है, शायद अप्रैल फूल बना रहे हैँ। वह पुनः विनम्रतापूर्वकबोला : जरा चख कर तो देखें श्रीमान! बड़े ही स्वादिष्ट परमल की सब्जी है।इतना सुन कर तो मुरदाजी भाई का खून खौल उठा। उन्होंने थाली में लात मार दी। थाली की झनझनाहट से सभी चौंक पड़े।

मुरदाजी भाई चिल्लाए : हरामजादे, बदतमीजी की भी एक हद होती है! भरी सभा में मेरी बेइज्जती कर रहा है! अपनी औकात भूल रहा है! जानता नहीं मैं कौन था?

सत्संग मंडल के सभी वेदांतियों ने आश्चर्य से मसूड़ों तले अंगुलियां दबा लीं। किसी के पल्ले न पड़े कि आखिर हुआ क्या! मुरदा जी भाई किस बात पर इतने आगबबूला हो रहे हैँ! एक सज्जन द्वारा पूछेजाने पर मुरदा जी भाई ने बताया : यह लफंगा मेरी खिल्ली उड़ा रहा है। मुझसे कहता है स्वादिष्ट परमल की सब्जी खा लो। कमीना कहीं का। क्या मेरे खुद के मल का स्वाद कड़वा है, जो मैं यहां-वहां हर किसी का ऐरे-गेरे नत्थूखैरे का मल खाता फिरू?

अरेआत्म-मल खाता हूं, परमल क्यों खाऊ?और दूसरा झूठा लतीफा --मैंने सुना है कि बेचारे चरणसिंह जब से कुर्सी से उतरे हैँ, तब से बात-बात पर नाराज होते रहते हैं। कुछ कहो, उन्हें कुछसुनाई देता है।

एक दिन की बात है, दोपहर केसमय कुछ पत्रकार उनसे मिलने आए। जब पत्रकारों ने कमरे में प्रवेश किया, उस समय भूतपूर्व प्रधानमंत्री आराम-कुर्सी पर विश्राम कर रहे थे  उदास, आंखे बंद किए हुए।

एक पत्रकार ने यह देख औपचारिकतावश पुछा : एक्सक्यूज़ मी सर, आर यू रिलैक्सिंग?इतना सुनते ही वे गुस्से से तमतमा उठे और बोले : नमकहरामो! चार दिन पहले मेरे आगे-पीछे चक्कर काटते थे, पैर दबाते थे औरअब मुझे पहचानते तक नहीं हो! पूछते हो -- आर यू रिलैक्सिंग? कमबख़्तो, आई एम नॉट रिलैक्सिंग, आई एम चरणसिंग। हैव यू फॉरगॉटन ईवन माय नेम?आज इतना ही।

रहिमन धागा प्रेम का,
ओशो

सभी दुख से डरते हैं!और जब तक दुख से डरेंगे, तब तक दुखी रहेंगे -- क्योंकि जिससे तुम डरोगे, उसे तुम समझ न पाओगे। और दुख मिटता है समझने से, दुख मिटता है जागने से, दुख मिटता है दुख को पहचान लेने से।इसलिये तो दुनिया दुखी है कि लोग दुख से डरते हैं और पीठ किये रहते हैं, तो दुख का निदान नहीं हो पाता।

सभी दुख से डरते हैं!और जब तक दुख से डरेंगे, तब तक दुखी रहेंगे -- क्योंकि जिससे तुम डरोगे, उसे तुम समझ न पाओगे। और दुख मिटता है समझने से, दुख मिटता है जागने से, दुख मिटता है दुख को पहचान लेने से।इसलिये तो दुनिया दुखी है कि लोग दुख से डरते हैं और पीठ किये रहते हैं, तो दुख का निदान नहीं हो पाता।

दुख पर अँगुली रखकर नहीं देखते कि कहाँ है, क्या है, क्यों है? दुख में उतरकर नहीं देखते कि कैसे पैदा हो रहा है, किस कारण हो रहा है। भय के कारण अपने ही दुख से भागे रहते हैं।तुम कहीं भी भागो, दुख से कैसे भाग पाओगे?

दुख तुम्हारे जीवन की शैली में है -- तुम जहाँ जाओगे, वहीं पहुँच जायेगा।दुख से डरे कि दुखी रहोगे। दुख से डरे कि नर्क में पहुँच जाओगे, नर्क बना लोगे।दुख से डरने की जरूरत नहीं है। दुख है तो जानो, जागो, पहचानो।जिन्होंने भी दुख के साथ दोस्ती बनाई, और दुख को ठीक से आँख भरकर देखा, दुख का साक्षात्कार किया, वे अपूर्व संपदा के मालिक हो गये --

कई बातें उनको समझ में आईं।एक बात तो यह समझ में आई कि दुख बाहर से नहीं आता, दुख मैं पैदा करता हूँ। और, जबमैं पैदा करता हूँ, तो अपने हाथ की बात हो गई। न करना हो पैदा, तो न करो! करना है, तो कुशलता से करो। जितना करना हो, उतना करो -- मगर फिर रोने-पछताने का कोई सवाल न रहा।

जिन्होंने दुख को गौर से देखा, उन्हें यह बात समझ में आ गई कि यह मेरे ही गलत जीने का परिणाम है, यह मेरा ही कर्मफल है!

प्यारे ओशो
"एस धम्मो सनंतनो"
प्रवचनमाला के 118वें प्रवचन का एक अंश

एक सुबह मुल्ला के गांव में उसके मकान के सामने बड़ी भीड़ है। वह अपनी पांचवीं मंजिल पर चढ़ा हुआ कूदने को तत्पर है।पुलिस भी आ गयी है, लेकिन उसने

एक सुबह मुल्ला के गांव में उसके मकान के सामने बड़ी भीड़ है। वह अपनी पांचवीं मंजिल पर चढ़ा हुआ कूदने को तत्पर है।पुलिस भी आ गयी है, लेकिन उसने सब सीढ़ियों पर ताले डाल रखे हैं। कोई ऊपर चढ़ नहीं पा रहा है। गांव का मेयर भी आ गया है। सारा गांव नीचे धीरे-धीरे इकट्ठा हो गया है, और मुल्ला ऊपर खड़ा है।

वह कहता है—मैं कूदकर मरूंगा। आखिर मेयर ने उसे समझाया कि तू कुछ तो सोच! अपने मां-बाप के संबंध में सोच! मुल्ला ने कहा —मेरे मां-बाप मर चुके।उनके संबंध में सोचता हूं तो और होता है जल्दी मर जाऊं।

मेयर ने चिल्ला कर कहा—अपनी पत्नी के संबंध में तो सोच!उसने कहा — वह याद ही मत दिलाना, नहीं तो और जल्दी कूद जाऊंगा। मेयर ने कहा—कानून के संबंध में सोच, अगर आत्महत्या की कोशिश की, फंसेगा। मुल्ला ने कहा—जब मर ही जाऊंगा तो कौन फंसेगा! यह देखते हैं, बड़ी मुश्किल थी।


मेयर न समझा पाया। आखिर गुस्से में उसने कहा कि तेरी मर्जी तो कूद, इसी वक्त कूद और मर जा। मुल्ला ने कहा, तू कौन है मुझे सलाह देने वाला कि मैं मर जाऊं! नहीं मरूंगा।आदमी का मन ऐसा चलता है। अगर कोई आपको समझाए कि मर जाओ, जीने का मन पैदा होता है।

कोई आपको समझाए कि जियो, तो मरने का मन पैदा होता है। मन विपरीत में रस लेता है। इसलिए जो लोग मन को मारने में लगते हैं उनका मन और रसपूर्ण होता चला जाता है।

महावीर वाणी,
भाग-१,
प्रवचन-१२,
ओशो

दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं--संसारीऔर संन्यासी। संसारी का अर्थ है, जोअभी इस चेष्टा में संलग्न है कि भुला लूंगा, कोई न कोईरास्ता खोज लूंगा कि भूल जाएगी बात; और थोड़ा धनहोगा, और थोड़ा बड़ा मकान होगा, और सुंदर स्त्रीहोगी, बच्चा पैदा हो जाएगा, लड़के कीनौकरी लग जाएगी, बच्चे कीशादी हो जाएगी, बच्चों के बच्चे होंगे--कुछ रास्ता होगा कि मैं भूल जाऊंगा और यह झंझट मिटजाएगी

दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं--संसारीऔर संन्यासी। संसारी का अर्थ है, जोअभी इस चेष्टा में संलग्न है कि भुला लूंगा, कोई न कोईरास्ता खोज लूंगा कि भूल जाएगी बात; और थोड़ा धनहोगा, और थोड़ा बड़ा मकान होगा, और सुंदर स्त्रीहोगी, बच्चा पैदा हो जाएगा, लड़के कीनौकरी लग जाएगी, बच्चे कीशादी हो जाएगी, बच्चों के बच्चे होंगे--कुछ रास्ता होगा कि मैं भूल जाऊंगा और यह झंझट मिटजाएगी।

झंझट को भूलने में संसारी और झंझटखड़ी करता जाता है। इसलिए ज्ञानियों ने संसार कोप्रपंच कहा है। मिटाने के लिए चलते हो, औरबन जाता है।सुलझाने चलते हो, और उलझ जाता है। जितना सुलझानेकी कोशिश करते हो उतनी हीगांठ उलझती जाती है; उतनीही मुश्किलें खड़ी होतीचली जाती हैं।

एक समाधान खोजते हो,एक समाधान से दस समस्याएं और खड़ी होजाती हैं। और जो एक जिसे हल करने चले थे वह तोअपनी जगह बनी रहती है,दस नई खड़ी हो जाती हैं। ऐसे विस्तारहोता चला जाता है। मरते-मरते तक आदमी अपनेही जाल में फंस जाता है। उसने ही रचाथा। उसने ही ये गङ्ढे खोदे थे। उसने बड़ीआशा से ये जंजीरें ढाली थीं।उसे खयाल भी न था कि ये मेरे ही हाथ मेंपड़ जाएंगी।

मैंने सुना है रोम में एक बहुत प्रसिद्ध लोहार हुआ।उसकी प्रसिद्धि सारी दुनिया मेंथी, क्योंकि वह जो भी बनाता था वहचीज बेजोड़ होती थी। उसलोहार की दुकान पर बनी तलवार का कोईसानी न था। और उस लोहार की दुकान परके सामानों का सारे जगत् में आदर था; दूर-दूर के बाजारों मेंउसकी चीजें बिकतीथीं, उसका नाम बिकता था।

फिर रोम पर हमला हुआ।और रोम में जितने प्रतिष्ठित लोग थे, पकड़ लिए गए। रोम हार गया।वह लोहार भी पकड़ लिया गया। वह तोकाफी ख्यातिलब्ध आदमी था। उसके बड़ेकारखाने थे। और उसके पास बड़ी धन-सम्पत्तिथी, बड़ी प्रतिष्ठा थी। वहभी पकड़ लिया गया। तीस रोम के प्रतिष्ठितजो सर्वशत्तिमान आदमी थे पकड़ कर दुश्मनों नेजंजीरों और बेड़ियों में बांध कर पहाड़ों में फेंक दिया मरनेके लिए। जो उनतीस थे वे तो रो रहे थे, लेकिन वहलोहार शांत था।

आखिर उन उनतीसों ने पूछा कि तुम शांतहो, हमें फेंका जा रहा है जंगली जानवरों के खाने केलिए! उसने कहा, फिक्र मत करो, मैं लोहार हूं। जिंदगीभर मैंने बेड़ियां और हथकड़ियां बनाई हैं, मैं खोलना भीजानता हूं। तुम घबड़ाओ मत। एक दफा इनको फेंककर चले जानेदो, मैं खुद भी छूट जाऊंगा, तुम्हें भी छोड़लूंगा। तुम डरो मत।तो लोगों को हिम्मत आ गई, आशा आ गई। बात तो सचथी, उससे बड़ा कोई कारीगर न था। जरूरजिंदगीभर ही लोहे के साथ खेल खेला है,तो जंजीरें न खोल सकेगा! खोल लेगा।

यह बातभरोसेकी थी। फिर दुश्मन उन्हें फेंककर गङ्ढोंमें, चले गए। वे सब घिसट कर किसी तरह उस लोहारके पास पहुंचे। पर वह लोहार रो रहा था। उन्होंने पूछा कि मामलाक्या है? तुम और रो रहे हो? और हमने तो तुमपर भरोसा कियाथा। और हम तो तुम्हारी आशा से जीतेरहे अब तक। हम तो मर ही गए होते। तुम क्यों रोरहे हो? हुआ क्या? अब तक तो तुम प्रसन्न थे।

उसने कहा कि मैं रो रहा हूं इसलिए कि मैंने जब गौर सेजंजीरें देखीं तो उन पर मेरे हीहस्ताक्षर हैं, वे मेरी ही बनाई हुई हैं।मेरी बनाई जंजीरें तो टूट हीनहीं सकतीं। ये किसी औरकी बनाई होती तो मैंने तोड़ दीहोतीं। लेकिन यही तो मेरीकुशलता है कि मेरी बनाई जंजीर टूटही नहीं सकती। असंभव है।यह नहीं हो सकता। मरना ही होगा।उस लोहार की कहानी जब मैंनेपढ़ी तो मुझे याद आयाः

यह तो हर संसारीआदमी की कहानी है।आखीर में तुम एक दिन पाओगे कि तुम्हारीही जंजीरों में फंसकर तुम मर गए। तुमनेबड़ी कुशलता से उनको ढाला था। तुम्हारे हस्ताक्षर उनपर हैं। तुम भलीभांति पहचान लोगे कि यह अपनेही हाथ का जाल है। इस पूरे सिद्धांत का नाम कर्महै। तुम ही बनाते हो। तुम्हीं येसींखचे ढालते हो। तुम्हीं ये पिंजरे बनातेहो। फिर कब तुम इनमें बंद हो जाते हो, कब द्वार गिर जाता है,कब ताले पड़ जाते हैं, तुम्हें समझ में नहीं आता। तालेभी तुम्हारे बनाए हुए हैं।

शायद तुमनेकिसी और कारण से दरवाजा लगा लिया था--सुरक्षा केलिए। लेकिन अब खुलता नहीं। शायद हाथ में तुमनेजंजीरें पहन ली थीं, आभूषणसमझ कर। अब जब पहचान आई है तो अब खुलतीनहीं, क्योंकि आभूषण तो नहींजंजीरें थीं।जिनको तुमने मित्र समझा था वे शत्रु सिद्ध हुए हैं। और जिनकोतुमने सोचा था कि जीवन के मार्ग को प्रशस्त करने केलिए बना रहे है, उनसे ही नरक का रास्ता प्रशस्तहुआ।

कहावत हैः नरक का रास्ता शुभ आकांक्षाओं से भरा पड़ा है।अच्छी-अच्छी आकांक्षाएं करकेही तो आदमी नरक का रास्ता तय करताहै। नरक का रास्ता तुम्हारे सपनों से ही पटा है।तुम्हारी योजनाओं के पत्थर ही नरक सेरास्ते पर लगे हैं; उन्हीं से नरक का रास्ता बना है।

~~~ ओशो —

प्यारे ओशो वह कौन सा सपना है जिसे साकार करने के लिए आप तमाम रुकावटों और बाधाओं को नजरअंदाज करते हुए पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से

प्यारे ओशो

वह कौन सा सपना है जिसे साकार करने के लिए आप तमाम रुकावटों और बाधाओं को नजरअंदाज करते हुए पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से निरंतर क्रियाशील हैं?

सपना तो एक है, मेरा अपना नहीं, सदियों पुराना है, कहैं कि सनातन है
पृथ्वी के इस भू- माग में मनुष्य की चेतना की पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया था ,उस सपने की माला में कितने फूल पिरोये- कितने गौतम बुद्ध, कितने महाबीर, कितने करि, कितने नानक, उस सपने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर गये ।

वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है ।इस सपने को हमने एक नाम दे रखा है । हम इस अपने को भारत कहते हैं ।भारत कोई भूखंड नहीं है । न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतिहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा है । न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड है ।

भारत है एक अभीप्सा एक प्यास… सत्य को पा लेने की |उस सत्य को, जो हमारे हदय की धड़कन मेँ बसा है । उस सत्य को, जो हमारी चेतना की तहों में सोया है । वह जो हमारा भी हमें भूल गया है । उसका पुन: स्मरण उसकी पुन: घोषणा भारत है

अमृतस्य पुत्र:… हे अमृत के पुत्रो ', जिनने इस उदूघोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं । भारत मेँ पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो सकताज़मीन पर कोई कही पैदा हो, किसी देश में, किसी सदी में, अतीत में या भविष्य में, अगर उसको खोज अतस की खोज है, वह भारत का निवासी है ।

मेरे लिए भारत और अध्यात्मपर्यायवाची हैं । भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची हैं । इसलिए भारत के पुत्र जमीन के कोने कोने मेँ हैं । ।ओर जो एक दुर्घटना की तरह केवल भारत में पैदा हो गए हैं, जब तक उन्हें अमृत की यह तलाश पागल न बना दे, तब तक वे भारत के नागरिक होने के अधिकरी नहीं हैं |

भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत पथ है,जो अनंत से अनंत तक फैला हुआ है इसलिए हमने कमी भारत का इतिहास नहीं लिखा । इतिहास भी कोई लिखने की बात है साधारण-भी दो कौडी की रोजमर्रा की घटनाओं का नाम इतिहास है ।

जो आज तूफान की तरह उठती हैं और कल जिनका कोई निशान भी नहीं रह जाता इतिहास तो धूल का बवंडर है ।भारत ने इतिहास नहीं लिखा ,भारत ने तो केवल उस चिरंतन को ही साधना ही है, बैसे ही जैसे चकोर चांद को एकटक बिना पलक झपके देखता रहता हैमैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा मोटा यात्री हूं।

चाहता था कि जो भूल गये हैं, उन्हें याद दिला दूं; जो सो गए हैं, उन्हें जगा दूं। और भारत अपनी आंतरिक गरिमा और गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊंचाइयों को पुन: पा ले । क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मनुष्यता का भाग्य जुड़ा हुआ है ।

यह केवल किसी एक देश की बात नहीं है अगर भारत अंधेरे में खो जाता है तो आदमी का कोई भविष्य नहीं हैऔर अगर हम भारत को पुन: उसके के पंख दे देते हैं, पुन: उसका अकाश दे देते हैं, पुन: उसकी आखों को सितारों की तरफ उड़ने की चाह से भर देते हैं तो हम केवल उनको ही नहीं बचा लेते हैं, जिनके भीतर प्यासहै ।

हम उनको भी बचा लेते हैं, जो आज सोये हैं, लेकिन कल जागेंगे; जो आज सोये हैं, लेकिन कल घर लौटेंगेभारत का भाग्य मनुष्य की नियति है |

~~~ओशो~~~

વાંચજો મિત્રો.. છેલ્લાં ત્રીસ વરસથી ઝવેરી બજારમાં ઈડરવાળા મહાશંકર મહારાજની હોટેલ ધમધોકાર ચાલતી હતી, છતાં એમણે જિંદગીમાં હિસાબનો ચોપડો રાખ્યો નહોતો

વાંચજો મિત્રો..

છેલ્લાં ત્રીસ વરસથી ઝવેરી બજારમાં ઈડરવાળા મહાશંકર મહારાજની હોટેલ ધમધોકાર ચાલતી હતી, છતાં એમણે જિંદગીમાં હિસાબનો ચોપડો રાખ્યો નહોતો.

સાંજે જે ગલ્લો આવે એમાંથી બીજા દહાડે સવારે દાણાવાળા, શાકવાળા,દૂધવાળાના હિસાબ ચૂકવી દેતા.

ચાર્ટર્ડ એકાઉન્ટન્ટ થયેલા દીકરા મનહરે દુકાનમાં દાખલ થતાં કહ્યું, " બાપા " આ તે તમે કેવી રીતે ધંધો ચલાવો છો ?
ચોપડા વગર તમન્ર કેટલો નફો થયો એની કેવી રીતે ખબર પડે ? "

" જો બેટા, હું દેશમાંથી મુંબઈ માત્ર પહેરેલે ધોતિએ આવ્યો હતો, આજે તારો ભાઈ ડૉક્ટર છે.
તારી બહેન વકીલાત કરે છે ને તું ચર્ટર્ડ એકાઉન્ટન્ટ થયો...."

" પણ બાપા, એમાં..."

" આજે આપણી પાસે મોટર છે.
રહેવાનો આપણો ઓનરસિપનો ફ્લેટ છે.
બધી વહુઓને દાગીના છે ને આ હોટેલ છે.
એ બધાનો સરવાળો કર અને એમાંથી ધોતિયું બાદ કર.જે આવે તે નફો ! "

મનુષ્ય .... !
જ્યારે પૈસો ન હોય ત્યારે ઘેર બેઠાં શાકભાજી ખાય;
જ્યારે પૈસો હોય, ત્યારે સરસ રેસ્ટોરેન્ટ્માં જઈને એ જ શાકભાજી ખાય.

જ્યારે પૈસો ન હોય, ત્યારે બાઈસિકલ ચલાવે;
જ્યારે પૈસો હોય, ત્યારે તેવી જ બાઈસિકલ જીમમાં જઈને ચલાવે.

જ્યારે પૈસો ન હોય, ત્યારે રોજી કમાવા પગે ચાલે;
જ્યારે પૈસો હોય, ત્યારે ચરબી બાળવા પગે ચાલે.

વિચિત્ર મનુષ્ય ! પોતાની જાતને છેતરવામાં ક્યારેય પાછો પડતો નથી !

જ્યારે પૈસો ન હોય, ત્યારે લગ્ન કરવા ઈચ્છે;
જ્યારે પૈસો હોય, ત્યારે છૂટાછેડા લેવા ઈચ્છે.

જ્યારે પૈસો ન હોય, ત્યારે પત્નીને સેક્રેટરી બનાવે;
જ્યારે પૈસો હોય, ત્યારે સેક્રેટરીને પત્ની બનાવે.

જ્યારે પૈસો ન હોય, ત્યારે પૈસાવાળાની જેમ વર્તે;
જ્યારે પૈસો હોય, ત્યારે ગરીબ હોવાનો દેખાવ કરે.

વિચિત્ર મનુષ્ય ! ક્યારેય સાદું સત્ય નહીં બોલે !
કહેશે કે શેરબજાર ખરાબ છે, પણ તોય સટ્ટો ચાલુ રાખે.
કહેશે કે પૈસો અનિષ્ટ છે, પણ ધનપ્રાપ્તિમાં રચ્યો રહે,
કહેશે કે ઊચ્ચ પદવીમાં એક્લતા છે, પણ તેની અપેક્ષા છોડે નહીં.
કહેશે કે જુગાર અને દારુ ખરાબ છે, પણ તેમાં અટવાયલો રહે.

વિચિત્ર મનુષ્ય ! જે કહે તે માને નહીં અને જે માનતો હોય તે કહે નહીં..!!.����
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