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Wednesday, 16 March 2016

તેજમાં પણ જે નથી ને જે તમસની બ્હાર છે, કેમ સમજાવું તને કે એ સમજની બ્હાર છે…

તેજમાં પણ જે નથી ને જે તમસની બ્હાર છે,
કેમ સમજાવું તને કે એ સમજની બ્હાર છે…

ચાલ ચાલે એ પછી તું મ્હાત આપે ને ભલા,તું રમતમાં છે જ નહિ, તું તો રમતની બ્હાર છે…

સેંકડો ખડકો નીચે ભૂતકાળ દાટી દો છતાં,ફાટશે જ્વાળામુખી થઇ, એ શમનની બ્હાર છે…

ચાલવા કે દોડવાથી થોડું કંઈ પ્હોંચી શકાય,છે ઘણા રસ્તા જ એવા જે ચરણની બ્હાર છે…

પી ગયો છું સાત દરિયાનેય નીચોવીને હું,કૈક એવું લાવ જે મારી તરસની બ્હાર છે…

- અનિલ ચાવડા

તેજમાં પણ જે નથી ને જે તમસની બ્હાર છે, કેમ સમજાવું તને કે એ સમજની બ્હાર છે…

તેજમાં પણ જે નથી ને જે તમસની બ્હાર છે,
કેમ સમજાવું તને કે એ સમજની બ્હાર છે…

ચાલ ચાલે એ પછી તું મ્હાત આપે ને ભલા,તું રમતમાં છે જ નહિ, તું તો રમતની બ્હાર છે…

સેંકડો ખડકો નીચે ભૂતકાળ દાટી દો છતાં,ફાટશે જ્વાળામુખી થઇ, એ શમનની બ્હાર છે…

ચાલવા કે દોડવાથી થોડું કંઈ પ્હોંચી શકાય,છે ઘણા રસ્તા જ એવા જે ચરણની બ્હાર છે…

પી ગયો છું સાત દરિયાનેય નીચોવીને હું,કૈક એવું લાવ જે મારી તરસની બ્હાર છે…

- અનિલ ચાવડા

संभोग ने तुम्हें जीवन दिया है और समाधि तुम्हें मुक्ति देगा !!वासना! ब्रम्हचर्य के कारण नहीं जाती है। वासना गई नहीं, और ब्रम्हचारी तुम कैसे हो गए? लेकिन लोग उल्टे कामों में लगे हैं।

संभोग ने तुम्हें जीवन दिया है और समाधि तुम्हें मुक्ति देगा !!वासना! ब्रम्हचर्य के कारण नहीं जाती है। वासना गई नहीं, और ब्रम्हचारी तुम कैसे हो गए? लेकिन लोग उल्टे कामों में लगे हैं।

पहले ब्रम्हचर्य की कसमें खाते हैं फिर वासना को हटाने में लगते हैं। ऐसे नहीं होगा! ऐसा जीवन का नियम नहीं है। तुम जीवन के विपरीत चलोगे तो हारोगे, दुख पाओगे; और तुम एक मूर्छा में जाओगे।

अब तुम मान रहे हो कि मैं ब्रम्हचारी हूँ। कसम खा ली है तो ब्रम्हचारी हूँ। मगर कसमों से कहीं मिटता है कुछ? कसमों से कहीं कुछ रूपांतरित होता है?

अब ऊपर-ऊपर ढोंग करोगे पाखण्ड का, ब्रम्हचर्य का झंडा लिए घूमोगे, और भीतर? भीतर ठीक इससे विपरीत स्थिति होगी।कामवासना जीवन की एक अनिवार्यता है, अनुभव से जाएगी! कसमों से नहीं,

ध्यान से जाएगी, व्रत नियम से नहीं! छोड़ना चाहोगे, कभी न छोड़ पाओगे, और जकड़ते चले जाओगे। इसलिए पहली तो बात, यह छोड़ने की धारणा छोड़ दो। जो ईश्वर ने दिया है, दिया है; और दिया है तो कुछ राज होगा।

इतनी जल्दी न करो छोड़ने की, कहींऐसा न हो कि कुंजी फेंक बैठो और फिर ताला न खुले!कामवासना कोई पाप तो नहीं, अगर पाप होतीतो तुम न होते! पाप होती तो ऋषि-मुनि न होते। पाप होती तो बुद्ध महावीर न होते। पाप से बुद्ध और महावीर कैसे पैदा हो सकते हैं?

पाप से कृष्ण और कबीरकैसे पैदा हो सकते हैं? और जिससे कृष्ण,बुद्ध और महावीर, नानक और फरीद पैदा होते हों,

उसे तुम पाप कहोगे? जरूर देखने में कहीं चूक है, कहीं भुल है।कामवासना तो जीवन का स्रोत है। उससे हीलड़ोगे तो आत्मघाती हो जाओगे। लड़ो मत, समझो! भागो मत, जागो! मैं नहीं कहता कि कामवासना छोड़नी है,

मैं तो कहता हूँ किसमझनी है, पहचाननी है। और एक चमत्कार घटित होता है, जितना ही समझोगे उतनी ही क्षीण हो जाएगी, क्योंकि कामवासना का अंतिम काम पूरा हो जाएगा। कामवासना का अंतिम काम है तुम्हें आत्म-साक्षात्कार करवा देना।

कामवासना को समझो! यह भजन गाने से नहीं जाएगी, उससे जूते पड़ जाएंगे आदमी अपने ही हाथ से पिटता है, खुद को ही पीटता है।

थोडा सजग होओ, थोड़ी बुद्धिमता का उपयोग करो।कामवासना बड़ा रहस्य है जीवन का, सबसे बड़ा रहस्य। उसके पार बस एक ही रहस्य है! परमात्मा का। इसलिए मैं कहता हूँ, जीवन में दो रहस्य है। एक संभोग का और एक समाधि का..!!

      ~ओशो~

★★★ अर्धनारीश्वर का गूढ़तम अर्थ ★★★★ आपका वीर्य-कण दो तरह की आकांक्षाएं रखता है। एक आकांक्षा तो रखता है बाहर की स्त्री से मिलकर, फिर एक नए जीवन की पूर्णता पैदा करने की। एक और गहन आकांक्षा है, जिसको हम अध्यात्म कहते हैं, वह आकांक्षा है, स्वयं के भीतर की छिपी स्त्री या स्वयंके भीतर छिपे पुरुष से मिलने की। अगर बाहर की स्त्री से मिलना होता है, तो संभोग घटित होता है

★★★★ अर्धनारीश्वर का गूढ़तम अर्थ ★★★★

आपका वीर्य-कण दो तरह की आकांक्षाएं रखता है। एक आकांक्षा तो रखता है बाहर की स्त्री से मिलकर, फिर एक नए जीवन की पूर्णता पैदा करने की।

एक और गहन आकांक्षा है, जिसको हम अध्यात्म कहते हैं, वह आकांक्षा है, स्वयं के भीतर की छिपी स्त्री या स्वयंके भीतर छिपे पुरुष से मिलने की। अगर बाहर की स्त्री से मिलना होता है, तो संभोग घटित होता है।

वह भी सुखद है, क्षण भर के लिए। अगर भीतर की स्त्री से मिलना होता है, तो समाधि घटित होती है। वह महासुख है, और सदा के लिए। क्योंकि बाहर की स्त्री से कितनी देर मिलिएगा ? देह ही मिल पाती है,

मन नहीं मिल पाते; मन भी मिल जाए, तो आत्मा नहीं मिल पाती। और सब भी मिल जाए तो मिलन क्षण भर ही हो सकता है।

भीतर की स्त्री से मिलना शाश्वत हो सकता है।बाहर की स्त्री से मिलना है, तो वीर्य-कण की जो देह है, उसके सहारे ही मिलना पड़ेगा, क्योंकि देह का मिलन तो देह के सहारे ही हो सकता है।

अगर भीतर की स्त्री से मिलना है तो देह की कोई जरूरत नहीं है। वीर्य-कण की देह तो अपने केंद्र में, काम-केंद्र में पड़ी रह जाती है; और वीर्य-कण की ऊर्जा उससे मुक्त हो जाती है। वही ऊर्जा भीतर की स्त्री से मिल जाती है।

इस मिलन की जो आत्यंतिक घटना है, वह सहस्रार में घटित होती है। क्योंकि सहस्रार ऊर्जा का श्रेष्ठतम केंद्र है, और काम-केंद्र देह का श्रेष्ठतम केंद्र है।

ऊर्जा शुद्ध हो जाती है सहस्रार में पहुंच कर; सिर्फ ऊर्जा रह जाती है, प्योर इनर्जी। और सहस्रार में आपकी स्त्री प्रतीक्षा कर रही है।

और आप अगरस्त्री हैं, तो सहस्रार में आपका पुरुष आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। यह भीतरी मिलन है।इस मिलन को ही हमने अर्धनारीश्वर कहा है !!!

    ~ ओशो ~

(समाधि के सप्त - द्वार, प्रवचन #14)

◆ जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी ◆ महावीर के लिए कहा जाता है - बड़ी झूठी बात लगेगी -कि वे जब रास्तों पर चलते थे, तो कांटे अगर सीधे पड़े हों, तो वे उलटे हो जाते थे। किसी कांटे को क्या प्रयोजन कि महावीर चलते हैं या कौन चलता है? और कांटे कैसे सीधे पड़े हों तोउलटे हो जाएंगे?

◆ जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी ◆

महावीर के लिए कहा जाता है - बड़ी झूठी बात लगेगी -कि वे जब रास्तों पर चलते थे, तो कांटे अगर सीधे पड़े हों, तो वे उलटे हो जाते थे।

किसी कांटे को क्या प्रयोजन कि महावीर चलते हैं या कौन चलता है? और कांटे कैसे सीधे पड़े हों तोउलटे हो जाएंगे?

और मैंने सुना है कि मोहम्मद के बाबत कहा जाता है कि जब वे अरब के गर्म रेगिस्तानों में चलते थे, तो एक बदली उनके ऊपर छाया किए रहती थी।

बदलियों को क्या प्रयोजन कि नीचे कौन चलता है?लेकिन मैं आपसे कहूं, ये बातें सच हैं। कोई कांटे उलटकर उलटे नहीं होते और कोईबदलियां नहीं चलतीं,

लेकिन इनमें हमने कुछ सचाइयां जाहिर की हैं। हमने यह कहना चाहा है कि जिस आदमी के हृदय में कोई कांटा नहीं रह गया,

इस जगत में उसके लिए कोई कांटा सीधा नहीं है। और हमने यह कहा है कि जिस आदमी के हृदय में उत्ताप नहीं रह गया, इस जगत में उसके लिए हर जगह एक छायादार बदली है और उसे कहीं कोई धूप नहीं है।

हमारे चित्त की स्थिति हम जैसी बनाए रखेंगे, यह दुनिया भी ठीक वैसी बन जाती है। न मालूम कौन - सा चमत्कार है कि जो आदमी भला होना शुरू होता है,

यह सारी दुनिया उसे एक भली दुनिया में परिवर्तित हो जाती है। और जो आदमी प्रेम से भरता है, इस सारी दुनिया का प्रेम उसकी तरफ प्रवाहित होने लगता है।

और यह नियम इतना शाश्वत है कि जो आदमी घृणा से भरेगा, प्रतिकार में घृणा उसे उपलब्ध होने लगेगी।

हम जो अपने चारों तरफ फेंकते हैं, वही हमें उपलब्ध हो जाता है। इसके सिवाय कोई रास्ता भी नहीं है।~

      ओशो

~(ध्यान सूत्र, प्रवचन #3)

★★★ प्रेम, करुणा, साक्षी, उत्सव - लीला ★★★ क्राइस्ट ने जिसे प्रेम कहा है वह बुद्ध की ही करुणा है, थोड़े से भेद के साथ। वह बुद्ध की करुणा का ही पहला चरण है।

★★★ प्रेम, करुणा, साक्षी, उत्सव - लीला ★★★

क्राइस्ट ने जिसे प्रेम कहा है वह बुद्ध की ही करुणा है, थोड़े से भेद के साथ। वह बुद्ध की करुणा का ही पहला चरण है।

क्राइस्ट का प्रेम ऐसा है जिसका तीर दूसरे की तरफ है। कोई दीन है, कोई दरिद्र है, कोई अंधा है, कोई भूखा है, कोई प्यासा है, तो क्राइस्ट का प्रेम बनजाता है सेवा। दूसरे की सेवा से परमात्मा तक जाने का मार्ग है;

क्योंकिदूसरे में जो पीड़ित हो रहा है वह प्रभु है। लेकिन ध्यान दूसरे पर है। इसलिए ईसाइयत सेवा का मार्ग बन गई।बुद्ध की करुणा एक सीढ़ी और ऊपर है। इसमें दूसरे पर ध्यान नहीं है।

बुद्ध की करुणा में सेवा नहीं है; करुणा की भाव - दशा है। यह दूसरे की तरफ तीर नहीं है, यह अपनी तरफ तीर है। कोई न भी हो, एकांत में भी बुद्ध बैठे हैं, तो भी करुणा है।बुद्ध की करुणा तो बड़ी अभौतिक है, और जीसस की करुणा बड़ी भौतिक है।

इसलिए ईसाई मिशनरी अस्पताल बनायेगा, स्कूल खोलेगा, दवा बांटेगा।बौद्ध भिक्षु कुछ और बांटता है; वह दिखाई नहीं पड़ता। वह जरा सूक्ष्म है। वह ध्यान बांटेगा, समाधि की खबर लायेगा।

वह भी स्वास्थ्य के विचार को तुम तक लाता है, लेकिन आंतरिक स्वास्थ्य के, असली स्वास्थ्य के।अष्टावक्र का साक्षी और एक कदम आगे है।अब कहीं कुछ आता - जाता नहीं, सब ठहर गयाहै, सब शांत हो गया है।

अष्टावक्र कहते हैं आत्मा न जाती है न आती है, अब गंध अपने में ही रम गई है। साक्षी - भाव जाता ही नहीं, ठहर गया, सब शून्य हो गया।क्राइस्ट के प्रेम में दूसरा महत्वपूर्ण है; बुद्ध की करुणा में स्वयं का होना महत्वपूर्ण है, साक्षी में न दूसरा रहा न स्वयं रहा, मैं - तू दोनों गिर गये।और उत्सव - लीला.........वह आखिरी बात है।

साक्षी में सब ठहर गया, लेकिन अगर यह ठहरा रहना ही आखिरी अवस्था हो तो परमात्मा सृजन क्यों करे? परमात्मा तो ठहरा ही था! तो यह लीला का विस्तार क्यों हो ?

तो यह नृत्य, यह पक्षियों की किलकिलाहट, ये वृक्षों पर खिलते फूल, ये चांद - तारे ! परमात्मा तोसाक्षी ही है! तो जो साक्षी पर रुक जाताहै वह मंदिर के भीतर नहीं गया। सीढ़ियांपूरी पार कर गया, आखिरी बात रह गई।अब न तू बचा न मैं बचा, अब तो नाच होने दो। अब तो नाचो। कभी तू के कारण न नाच सके, कभी मैं के कारण न नाच सके। अब तो दोनों न बचे, अब तुम्हें नाचने से कौन रोकता है ?

अब कौन - सा बंधन है ? अब तो नाचो; अब तो रचाओ रास; अब तो होने दो उत्सव! अब क्यों बैठे हो ? अब लौट आओ!

~ ओशो ~
(अष्टावक्र महागीता, भाग #4, प्रवचन#48)

प्रश्न--स्वीडन के एक वैज्ञानिक डाक्टर जैक्सन ने आत्मा को तौलने के संबंध में कुछ खोज की है और कहा है, आत्मा का वजन इक्कीस ग्राम है। अगर आत्मा तौली जा सकती है, तो फिर उसे पकड़ा भी जा सकता है। और अगर आत्मा को पकड़ सकते हैं,

प्रश्न--स्वीडन के एक वैज्ञानिक डाक्टर जैक्सन ने आत्मा को तौलने के संबंध में कुछ खोज की है और कहा है, आत्मा का वजन इक्कीस ग्राम है।

अगर आत्मा तौली जा सकती है, तो फिर उसे पकड़ा भी जा सकता है। और अगर आत्मा को पकड़ सकते हैं,

तो फिर उसे उपयोग में भी ला सकते हैं। क्या आत्मा की तौल हो सकती है?डा. जैक्सन की खोज मूल्यवान है। इसलिए नहीं कि उन्होंने आत्मा तौल ली है, जिसेउन्होंने तौला है,

उसे वे आत्मा समझ रहेहैं। लेकिन उनकी तौल मूल्यवान है।आदमी सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है कि जब मृत्यु घटित होती है,

तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या नहीं जाती है? और बहुत प्रयोग किए गए हैं।इजिप्त में तीन हजार साल पहले भी आदमी को इजिप्त के एक फैरोह ने कांच की एक पेटी में बंद करके रखा मरते वक्त। क्योंकि अगर आत्मा जैसी कोई चीज बाहर जाती होगी,

तो पेटी टूट जाएगी, कांच फूट जाएगा, कोई चीज बाहर निकलेगी। लेकिन कोई चीज बाहर नहीं निकली।स्वभावत:, दो ही अर्थ होते हैं।

wया तो यहअर्थ होता है कि आत्मा को बाहर निकलने के लिए कांच की कोई बाधा नहीं है। जैसे कि सूरज की किरण निकल जाती है कांच के बाहर, और कांच नहीं टूटता। या यह अर्थ होता है।

या तो यह अर्थ होता है कि कोई चीज बाहर नहीं निकली।फैरोह ने तो यही समझा कि कोई चीज बाहर नहीं निकली। क्योंकि कोई चीज बाहर निकलती, तो कांच टूटता। समझा कि कोई आत्मा नहीं है।फिर और भी बहुत प्रयोग हुए हैं।

रूस में भी बहुत प्रयोग हुए कि आदमी मरता है, तो उसके शरीर में कोई भी अंतर पड़ता हो, तो हम सोचें कि कोई चीज बाहर गई। लेकिन अब तक कोई अंतर का अनुभव नहीं हो सका था।

जैक्सन की खोज मूल्यवान है कि उसने इतना तो कम से कम सिद्ध किया कि कुछ अंतर पड़ता है, इक्कीस ग्राम का सही। अंतर पड़ता है, इतनी बात तय हुई कि आदमी जब मरता है, तो अंतर पड़ता है।

मृत्यु और जीवन के बीच थोड़ा फासला है, इक्कीस ग्राम का सही! अंतर पड़ जाता है।अब यह जो इक्कीस ग्राम का अंतर पड़ता है, स्वभावत: जैक्सन वैज्ञानिक है, वह सोचता है,

यही आत्मा का वजन होना चाहिए।क्योंकि वैज्ञानिक सोच ही नहीं सकता कि बिना वजन के भी कोई चीज हो सकती है।

वजन पदार्थवादी मन की पकड है। बिना वजनके कोई चीज कैसे हो सकती है!वैज्ञानिक तो सूरज की किरणों में भी वजन खोज लिए हैं। वजन है, बहुत थोड़ा है। पांच वर्गमील के घेरे में जितनी सूरज की किरणें पड़ती हैं,

उनमें कोई एक छटांकवजन होता है। इसलिए एक किरण आपके ऊपर पड़ती है, तो आपको वजन नहीं मालूम पड़ता। क्योंकि पांच वर्गमील में जितनी किरणें पड़े दोपहर में, उनमें एक छटांक वजन होता है।

लेकिन वैज्ञानिक तो तौलकर चलता है। मेजरेबल, कुछ भी हो जो तौला जा सके, तो ही उसकी समझ गहरी होती है। एक बात अच्छी है कि जैक्सन ने पहली दफा मनुष्यके इतिहास में तौल के आधार पर भी तय किया कि जीवन और मृत्यु में थोड़ा फर्क है। कोई चीज कम हो जाती है।

स्वभावत:, वहसोचता है कि आत्मा इक्कीस ग्राम वजन कीहोनी चाहिए।अगर आत्मा का कोई वजन है, तो वह आत्मा हीनहीं रह जाती, पहली बात। क्योंकि आत्मा और पदार्थ में हम इतना ही फर्क करते हैं कि जो मापा जा सके, वह पदार्थ है।

अंग्रेजी में शब्द है मैटर, वह मेजर से ही बना हुआ शब्द है, जो तौला जा सके, मापा जा सके। हम माया कहते हैं, माया शब्द भी माप से ही बना हुआ शब्द है, जो तौली जा सके, नापी जा सके, मेजरेबल, माप्य हो।तो पदार्थ हम कहते हैं उसे, जो मापा जा सके, तौला जा सके।

और आत्मा हम उसे कहते हैं, जो न तौली जा सके, न मापी जा सके। अगर आत्मा भी नापी जा सकती है, तो वह भी पदार्थ का एक रूप है। और अगर किसी दिन विज्ञान ने यह खोज लिया कि पदार्थ भी मापा नहीं जा सकता, तो हमें कहना पड़ेगा कि वह भी आत्मा का विस्तार है।

यह जो इक्कीस ग्राम की कमी हुई है, यह आत्मा की कमी नहीं है, प्राणवायु की कमीहै। आदमी जैसे ही मरता है, उसके शरीर के भीतर जितनी प्राणवायु थी, वह बाहर हो जाती है। और आपके भीतर काफी प्राणवायु की जरूरत है, जिसके बिना आप जी नहीं सकते।

आक्सीजन की जरूरत है भीतर, जो प्रतिपल जलती है और आपको जीवित रखती है।सब जीवन एक तरह की जलन, एक तरह की आग है।

सब जीवन आक्सीजन का जलना है। चाहे दीयाजलता हो, तो भी आक्सीजन जलती है; और चाहेआप जीते हों, तो भी आक्सीजन जलती है। तो एक तूफान आ जाए और दीया जल रहा हो, तो आप तूफान से बचाने के लिए एक बर्तन दीए पर ढांक दें।

तो हो सकता है तूफान से दीया न बुझता, लेकिन आपके बर्तन ढांकने से बुझ जाएगा। क्योंकि बर्तन ढांकते ही उसके भीतर जितनी आक्सीजन है, उतनी देर जल पाएगा, आक्सीजन के खत्म होते ही बुझ जाएगा। आदमी भी एक दीया है।

आक्सीजन भीतर प्रतिपल जल रही है। आपका पूरा शरीर एक फैक्टरी है, जो आक्सीजन को जलाने का काम कर रहा है, जिससे आप जी रहेहैं।तो जैसे ही आदमी मरता है,

भीतर की सारी प्राणवायु व्यर्थ हो जाती है, बाहर हो जाती है। उसको जो पकड़ने वाला भीतर मौजूद था, वह हट जाता है, वह छूट जाती है। उस प्राणवायु का वजन इक्कीस ग्राम है।

लेकिन विज्ञान को वक्त लगेगा अभी कि प्राणवायु का वजन नापकर वह तय करे। और अगर जैक्सन को पता चल जाए कि यह प्राणवायु का नाप है, तो सिद्ध हो गया कि आत्मा नहीं है,

प्राणवायु ही निकल जाती है।इससे कुछ सिद्ध नहीं होता। क्योंकि आत्मा को वैज्ञानिक कभी भी न पकड़ पाएंगे। और जिस दिन पकड़ लेंगे, उस दिन आप समझिए कि आत्मा नहीं है।इसलिए विज्ञान से आशा मत रखिए कि वह कभी आत्मा को पकड़ लेगा और वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो जाएगा कि आत्मा है।

जिस दिन सिद्ध हो जाएगा, उस दिन आप समझना कि महावीर, बुद्ध, कृष्ण सब गलत थे। जिस दिन विज्ञान कह देगा आत्मा है, उस दिन समझना कि आपके सब अनुभवी नासमझ थे, भूल में पड़ गए थे। क्योंकि विज्ञान के पकड़ने का ढंग ऐसा है कि वह सिर्फ पदार्थ को ही पकड़ सकता है।

वह विज्ञान की जो पकड़ने की व्यवस्था है, वह जो मेथडॉलाजी है, उसकी जो विधि है, वह पदार्थ को ही पकड़ सकती है, वह आत्मा को नहीं पकड़ सकती।पदार्थ वह है, जिसे हम विषय की तरह, ऑब्जेक्ट की तरह देख सकते हैं। और आत्मा वह है, जो देखती है।

विज्ञान देखने वाले को कभी नहीं पकड़ सकता; जो भीपकड़ेगा, वह दृश्य होगा। जो भी पकड़ में आ जाएगा, वह देखने वाला नहीं है, वह जो दिखाई पड़ रहा है, वही है।

द्रष्टा विज्ञान की पकड़ में नहीं आएगा। और धर्मऔर विज्ञान का यही फासला है।अगर विज्ञान आत्मा को पकड़ ले, तो धर्म की फिर कोई भी जरूरत नहीं है। और अगर धर्म पदार्थ को पकड़ ले, तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है।

हालांकि दोनों तरह के मानने वाले पागल हैं। कुछपागल हैं, जो समझते हैं, धर्म काफी है, विज्ञान की कोई जरूरत नहीं है। वे उतनेही गलत हैं, जितने कि कुछ वैज्ञानिक समझते हैं कि विज्ञान काफी है और धर्म की कोई जरूरत नहीं है।

विज्ञान पदार्थ की पकड़ है, पदार्थ की खोज है। धर्म आत्मा की खोज है, अपदार्थ की, नॉनमैटर की खोज है। ये दोनों खोज अलग हैं। इन दोनों खोज के आयाम अलग हैं। इन दोनों खोज की विधियां अलग हैं।

अगर विज्ञान की खोज करनी है, तो प्रयोगशाला में जाओ। और अगर धर्म की खोज करनी है, तो अपने भीतर जाओ। अगर विज्ञान की खोज करनी है, तो पदार्थ के साथ कुछ करो। अगर धर्म की खोज करनी है, तो अपने चैतन्य के साथ कुछ करो।

तो इस चैतन्य को न तो टेस्टटयूब में रखा जा सकता है, न तराजू पर तौला जा सकताहै, न काटापीटा जा सकता है सर्जन की टेबल पर, कोई उपाय नहीं है। इसका तो एक ही उपाय है कि अगर आप अपने को सब तरफ से शांत करके भीतर खड़े हो जाएं जागकर, तो इसका अनुभव कर सकते हैं। यह अनुभव निजीऔर वैयक्तिक है।

‪#‎ओशो‬-- गीता दर्शन

हम सब ज़ंजीरों में जकड़े लोग है एक पूर्णिमा की रात में एक छोटे-से गांव में, एक बड़ी अदभुत घटना घट गई। कुछ जवान लड़कों ने शराबखाने में जाकर शराब पी ली और जब वे शराब के नशे में मदमस्त हो गये और शराब-घर से बाहर निकले तो चांद की बरसती चांदनी में उन्हें यह खयाल आया कि नदी पर जायें और नौका-विहार करें।

हम सब ज़ंजीरों में जकड़े लोग है
एक पूर्णिमा की रात में एक छोटे-से गांव में, एक बड़ी अदभुत घटना घट गई।

कुछ जवान लड़कों ने शराबखाने में जाकर शराब पी ली और जब वे शराब के नशे में मदमस्त हो गये और शराब-घर से बाहर निकले तो चांद की बरसती चांदनी में उन्हें यह खयाल आया कि नदी पर जायें और नौका-विहार करें।

रात बड़ी सुन्दर और नशे से भरी हुई थी। वे गीत गाते हुए नदी के किनारे पहुंच गये। नाव वहां बंधी थी। मछुए नाव बांधकर घर जा चुके थे। रात आधी हो गयी थी।वे एक नाव में सवार हो गये।

उन्होंने पतवार उठा ली और नाव खेना शुरू किया। फिर वे रात देर तक नाव खेते रहे। सुबह की ठण्ड़ी हवाओं ने उन्हें सचेत किया। जब उनका नशा कुछ कम हुआ तो उनमें से किसी ने पूछा, ‘‘कहां आ गये होंगे अब तक हम।

आधी रात तक हमने यात्रा की, न-मालूमकितनी दूर तक निकल आये होंगे। नीचे उतरकर कोई देख ले कि किस दिशा में हम चल रहेहैं, कहां पहुंच रहे हैं?”जो नीचे उतरा था, वह नीचे उतर कर हंसने लगा।

उसने कहा, ‘‘दोस्तो! तुम भी उतर आओ।हम कहीं भी नहीं पहुंचे हैं। हम वहीं खड़े हैं, जहां रात नाव खडी थी। ”वे बहुत हैरान हुए। रात भर उन्होंने पतवार चलायी थी और पहुंचे कहीं भी नहींथे!

नीचे उतर कर उन्होंने देखा तो पता चला, नाव की जंजीरें किनारे से बंधी रह गयी थीं, उन्हें वे खोलना भूल गये थे!जीवन भी, पूरे जीवन नाव खेने पर, पूरे जीवन पतवार खेने पर कहीं पहुंचता हुआ मालूम नहीं पड़ता।

मरते समय आदमी वहीं पाता है स्वयं को, जहां वह जन्मा था! ठीकउसी किनारे पर, जहां आंख खोली थी- आंख बंद करते समय आदमी पाता है कि वहीं खड़ा है। और तब बड़ी हैरानी होती है कि इतनी जो दौड़- धूप की, उसका क्या हुआ?

वह जो प्रण किया था कहीं पहुंचने का, वह जो यात्रा की थी कहीं पहुंचने के लिए, वह सब निष्फल गयी! मृत्यु के क्षण में आदमी वहीं पाता है अपने को, जहां वह जन्म के क्षण में था!

तब सारा जीवन एक सपना मालुम पड़ने लगता है। नाव कहीं बंधी रह गयी किसी किनारे से।

ओशो

(सम्भोग से समाधि की ओर, प्रवचन #50

કૈં હૃદયમાં રણઝણે તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે, ને કદી જો દિલ રડે તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે.

કૈં હૃદયમાં રણઝણે તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે,

ને કદી જો દિલ રડે તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે.

હું તને બોલાવું ને તું આવે,એવા આગમનમાં શું મજા ?

થાય જો ઈચ્છા તને તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે.

તું મને સમજે કે ના સમજે-એ વાતો પણ બધી ભૂલી જઈશ,

કોઈ ના સમજે તને તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે.

પ્રેમમાં જો કરગરું હું તો પ્રણયનો માર્ગ આ લાજે સખા,

માન એનું સાચવે તો બેધડક તું મારી પાસે આવજે.

જો ભરોસો હોય ના મુજ પ્રેમ પર તો આવતી હરગીઝ નહીં,

પણ કદી શ્રદ્ધા ઝરે તો બેધડક તું મારીપાસે આવજે....!!!- ???

જગતના લોકને આનંદ કરવો હોય છે ત્યારે,કરી લે છે એ ત્યારે દિલ દુખાવીને દમન મારૂં.

જગતના લોકને આનંદ કરવો હોય છે ત્યારે,કરી લે છે
એ ત્યારે દિલ દુખાવીને દમન મારૂં.

મગર એને લીધે રસ લઉં છું હું આખા બગીચામાં,
બગીચામાં નહિ તો છે ફક્ત એક જ સુમન મારૂં.

સિતારા પણ કદી ખરતા રહે છે સાથ દેવા ને,કહો કેવું હશે પૃથ્વી ઉપરનું આ પતન મારૂં.

નથી સંભવ- જગતમાં હાથ મારા બેય ખાલી હો,હશે
કાં તો ધારા મારી, હશે કાં તો ગગન મારૂં.

ગયું છે ત્યારથી મારા ઘરે પાછું નથી આવ્યું,
હજી રખડ્યા કરે છે તારા રસ્તામાં જ મન મારૂં.

તું આવે કે ના આવે, વાટ હું તારી જ જોવાનો,નથી
તારું વચન આ કાંઈ, આ તો છે વચન મારૂં.

ભલે ખંડેર છે, પણ એ ઉઘાડું છે
બધી બાજુ,બધી બાજુથી તમને આવકારે છે સદન મારૂં.

અનાદિકાળથી હું ક્યાં સુધી શોધ્યા કરું તમને?
સૂરજ ચાંદાને મેં તો દઈ દીધું એક એક નયન મારૂં.

પ્રવાસી કોઈ પરદેશે લૂંટાઈ દેશમાં આવે,
થવાનું સ્વર્ગમાં કઈ એવી રીતે આગમન મારૂં.

બીજા તો શું, મને ક્યાં સાથ છે મારો ય પોતાનો,ફરે છે
ક્યાંક તન મારૂં ફરે છે ક્યાંક મન મારૂં.

OSHO प्रेम की मांग कभी मत करो, प्रेम अपने आप आएगा।तुम प्रेम दोगे, वह आएगा...और आएगा। वह देने से बढ़ताहै। जब हम किसी से कहते हैं, आई लव यू, तोदरअसलहम किस बारे में बात कर रहे होते हैं इन शब्दों के साथहमारी कौनसी मांगे और उम्मीदें, कौनसी अपेक्षाएंऔर सपने जुड़े हुए हैं।

प्रेम की मांग कभी मत करो, प्रेम अपने आप आएगा।तुम प्रेम दोगे, वह आएगा...और आएगा। वह देने से बढ़ताहै।

जब हम किसी से कहते हैं, आई लव यू, तोदरअसलहम किस बारे में बात कर रहे होते हैं इन शब्दों के साथहमारी कौनसी मांगे और उम्मीदें, कौनसी अपेक्षाएंऔर सपने जुड़े हुए हैं।

तुम्हारे जीवन में सच्चे प्रेम कीरचना कैसे हो सकती है तुम जिसे प्रेम कहते हो,दरअसल वो प्रेम नहीं है।

जिसे तुम प्रेम कहते हो, वहऔर कुछ भी हो सकता है, पर वह प्रेम तो नहीं ही है।हो सकता है कि वह सेक्स हो। हो सकता है कि वहलालच हो। हो सकता है कि वह अकेलापन हो। वहनिर्भरता भी हो सकता है।

खुद को दूसरे कामालिक समझने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। वहऔर कुछ भी हो सकता है, पर वह प्रेम नहीं है। प्रेमदूसरे का स्वामी बनने की प्रवृत्ति नहीं रखता।

प्रेमका किसी अन्य से लेना-देना होता ही नहीं है। वहतो तुम्हारे अस्तित्व की एक स्थिति है। प्रेम कोईसंबंघ भी नहीं है, हो सकता है

यह संबंघ बन जाए, परप्रेम अपने आप में कोई संबंघ नहीं होता। संबंघ होसकता है, पर प्रेम उसमें सीमित नहीं होता। वह तोउससे कहीं अघिक है।

प्रेम अस्तित्व की एक स्थितिहै। जब वह संबंघ होता है, तो प्रेम नहीं हो सकता।क्योंकि संबंघ तो दो से मिलकर बनता है।और जब दोअहम होंगे तो लगातार टकराव होना लाजमीहोगा।

इसलिए जिसे तुम प्रेम कहते हो, वहतो सततसंघर्ष का नाम है। प्रेम शायद ही कभी प्रवाहितहोता हो। तकरीबन हर समय अहंकार के घोड़े कीसवारी ही चलती रहती है।

तुम दूसरे को अपने हिसाबसे चलाने की कोशिश करते हो और दूसरा तुम्हें अपनेहिसाब से। तुम दूसरे पर कब्जा करना चाहते हो औरदूसरा तुम पर कब्जा करना चाहता है।

यह तोराजनीति है, प्रेम नहीं। यह ताकत का एक खेल है।यही कारण है की प्रेम से इतना दुख उपजता है। अगरवो प्रेम होता, तो दुनिया स्वर्ग बन चुकी होती,जो कि वह नहीं है।

जो व्यक्ति प्रेम को जानता हैवह आनंदमगA रहता है, बिना किसी शर्त के। उसकेवजूद के साथ जो होता रहे, उससे उसे कोई फर्क नहींपड़ता।

मैं चाहता हूं कि तुम्हारा प्रेम फैले, बढ़े ताकिप्रेम की ऊर्जा तुम पर छा जाए। जब ऎसा होगा, तबप्रेम निर्देशित नहीं होगा। तब वह सांस लेने की तरहहोगा। तुम जहां भी जाओगे, तुम सांस लोगे। तुमजहां भी जाओगे, प्रेम करोगे।

प्रेम करना तुम्हारेअस्तित्व की एक सहज स्थिति बन जाएगा। किसीव्यक्ति से प्रेम करना, तो एक संबंघ बनाना भर है। यहतो ऎसा हुआ कि जब तुम किसी खास व्यक्ति केसाथ होते हो, तो सांस लेते हो और जब उसे छोड़ देतेहो, तो सांस लेना बंद कर देते हो।

सवाल यह है किजिस व्यक्ति के लिए तुम जीवित हो उसके बिनासंास कैसे ले सकते हो। प्रेम के साथ यही हुआ है। हरकोई आग्रह कर रहा है, मुझे प्रेम करो, परसाथ ही शकभी कर रहा है कि शायद तुम दूसरे लेागों को भी प्रेमकर रहे होंगे।

इसी ईष्र्या और संदेह नेप्रेम को मारडाला है। पत्नी चाहती है कि पति केवल उससे प्रेमकरे। उसका आग्रह होता है कि केवल मुझसेप्रेम करो।जब तुम दुनिया में बाहर जाओगे, दूसरे लोगों सेमिलोगे, तो क्या करोगे।

तुम्हें लगातार चौकन्नारहना होगा कि कहीं किसी के प्रति प्रेमना जतादो। प्रेम करना तुम्हारे अस्तित्व की एक स्थिति है।प्रेम सांस लेने के समान है।

सांसें जोशरीर के लिएकरती हैं, प्रेम वही तुम्हारी आत्मा के लिए करता है।प्रेम के माघ्यम से तुम्हारी आत्मा संास लेती है।जितना तुम प्रेम करोगे, उतनी ही आत्मा तुम्हारेपास होगी इसलिए ईष्र्यालु मत बनो।

यही वजह हैकि सारी दुनिया में हर व्यक्ति कहता हैकि आई लवयू पर कहीं पर कोई प्रेम नहीं दिखाई पड़ता।

उसकीआंखों में न कोई चमक होती है और न चेहरे पर कोईवैभव। न ही तुम्हें उसके ह्वदय की घड़कनें तेज होते हुएसुनाई देंगी।

किसी भी कीमत पर अपने प्रेम को नामरने दो वरना तुम अपनी आत्मा को मार डालोगेऔर न किसी दूसरे को यह नुकसान पहुंचने दो। प्रेमआजादी देता है। और प्रेम जितनी आजादी देता हैउतना ही प्रेममय होता जाता है।

प्रेम एक पंछी है,उसे आजाद रखो। उस पर एकाघिकार करने कीकोशिश मत करो। एकाघिकार करोगे, तो वह मरजाएगा।

एक संपूर्ण व्यक्ति वह है, जो बिना शर्त प्रेमकर सकता है। जब प्रेम बिना संबंघ, बिना शर्तप्रवाहित होता है, तो और कुछ उपलब्घ करने के लिएनहीं रह जाता, व्यक्ति को उसकी मंजिल मिलजाती है।

अगर प्रेम प्रवाहित नहीं हो रहा है, तोभले ही तुम महान संत क्यों न बन जाओ, रहोगे दुखीही। अगर प्रेम प्रवाहित नहीं हो रहा है,तो भले हीतुम महान विद्वान, घर्मशास्त्री या दार्शनिक क्योंन बन जाओ, तुम न बदल पाओेगे। न ही रूपांतरित होपाओगे।

केवल प्रेम ही रूपांतरण कर सकता है, क्योंकिकेवल प्रेम के माघ्यम से ही अहंकार समाप्त होता है।घ्यान में प्रवेश का अर्थ है, प्रेम के संसार में प्रवेश।सबसे बड़ा साहस है, बिना शर्तो के प्रेमकरना, केवलप्रेम के लिए प्रेम करना-इसी को तो घ्यान कहते हैं।

और प्रेम तुम्हें फौरन बदलना शुरू कर देगा। वह अपनेसाथ एक नया मौसम लाएगा और तुम खिलना शुरू होजाओगे। लेकिन एक बात याद रखो, व्यक्ति कोप्रेममय होना होगा।

तुम्हें इसके लिए चिंतित होनेकी जरूरत नहीं है कि दूसरा बदले में प्रेम करता है किनहीं। प्रेम की मांग कभी मत करो, प्रेम अपने आपआएगा। वह जब आता है, तो सौ गुना मात्रा सेआता है।

तुम प्रेम दोगे, तो वह आएगा। हम जो भी देतेहैं वह वापस मिलता है। याद रहे कि जो भी तुम्हेंमिल रहा है, वह तुम्हें किसी न किसी रूप में मिल जरूररहा है। लोग सोचते हैं कि उन्हें कोई प्रेम नहीं करताऔर इससे साफ हो जाता है कि उन्होंने प्रेम नहींकिया।

वे दूसरों को कसूरवार समझते हैं, पर उन्होंनेजो फसल बोई नहीं वह काट कैसे सकते हैं। इसलिएअगर प्रेम तुम्हारे पास आया है, तो समझ लो कि तुम्हेंपे्रम देना आ गया है। तो फिर और प्रेम दो, तुम्हें भीऔर मिलेगा।

इसमें कभी कंजूसी न बरतो। प्रेम कोईऎसी चीज नहीं है, जो देने से खत्म हो जाए-असलियत तो यह है कि वह देने से बढ़ता है।

      ओशो ----