सहजानंद ! दो झूठे लतीफे।
पहला --वेदांत सत्संग मंडल की सभा के पश्चात सामूहिक भोजन का आयोजन था। सभी बिना दांत के बूढ़े मौजूद थे। वही अर्थ होता है वेदांत सत्संग मंडल का। उन्हीं में थे श्री मुरदाजी भाई देसाई भी, जो कि सिर्फ भाई ही भाई रह गए हैं, जिनकी जान निकल गई है।
अब भूल कर उनको भाईजान न कहना, बस भाई ही कहना, जान अब कहां!इस एक घटना के कारण वे उस दिन विशेष आकर्षण का कारण बन गए। बात यह हुई कि जब खाना परोसने वाले व्यक्ति ने उनसे पूछा कि क्या आप थोड़ी परमल की सब्जी और लेंगे?
तब श्री मुरदाजी भाई यकायक जीवित हो उठे, अर्थात उन्हें भयंकर क्रोध आ गया। आंखे लाल-पीली करके वे बोले : शर्म नहीं आती बदमाश छोकरे? मुझसे ऐसी गंदी बातें करता है!वह व्यक्ति तो हक्का-बक्का रह गया। समझा कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री मजाक कर रहे हैँ।
एक अप्रैल का दिन है, शायद अप्रैल फूल बना रहे हैँ। वह पुनः विनम्रतापूर्वकबोला : जरा चख कर तो देखें श्रीमान! बड़े ही स्वादिष्ट परमल की सब्जी है।इतना सुन कर तो मुरदाजी भाई का खून खौल उठा। उन्होंने थाली में लात मार दी। थाली की झनझनाहट से सभी चौंक पड़े।
मुरदाजी भाई चिल्लाए : हरामजादे, बदतमीजी की भी एक हद होती है! भरी सभा में मेरी बेइज्जती कर रहा है! अपनी औकात भूल रहा है! जानता नहीं मैं कौन था?
सत्संग मंडल के सभी वेदांतियों ने आश्चर्य से मसूड़ों तले अंगुलियां दबा लीं। किसी के पल्ले न पड़े कि आखिर हुआ क्या! मुरदा जी भाई किस बात पर इतने आगबबूला हो रहे हैँ! एक सज्जन द्वारा पूछेजाने पर मुरदा जी भाई ने बताया : यह लफंगा मेरी खिल्ली उड़ा रहा है। मुझसे कहता है स्वादिष्ट परमल की सब्जी खा लो। कमीना कहीं का। क्या मेरे खुद के मल का स्वाद कड़वा है, जो मैं यहां-वहां हर किसी का ऐरे-गेरे नत्थूखैरे का मल खाता फिरू?
अरेआत्म-मल खाता हूं, परमल क्यों खाऊ?और दूसरा झूठा लतीफा --मैंने सुना है कि बेचारे चरणसिंह जब से कुर्सी से उतरे हैँ, तब से बात-बात पर नाराज होते रहते हैं। कुछ कहो, उन्हें कुछसुनाई देता है।
एक दिन की बात है, दोपहर केसमय कुछ पत्रकार उनसे मिलने आए। जब पत्रकारों ने कमरे में प्रवेश किया, उस समय भूतपूर्व प्रधानमंत्री आराम-कुर्सी पर विश्राम कर रहे थे उदास, आंखे बंद किए हुए।
एक पत्रकार ने यह देख औपचारिकतावश पुछा : एक्सक्यूज़ मी सर, आर यू रिलैक्सिंग?इतना सुनते ही वे गुस्से से तमतमा उठे और बोले : नमकहरामो! चार दिन पहले मेरे आगे-पीछे चक्कर काटते थे, पैर दबाते थे औरअब मुझे पहचानते तक नहीं हो! पूछते हो -- आर यू रिलैक्सिंग? कमबख़्तो, आई एम नॉट रिलैक्सिंग, आई एम चरणसिंग। हैव यू फॉरगॉटन ईवन माय नेम?आज इतना ही।
रहिमन धागा प्रेम का,
ओशो
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