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Saturday, 2 April 2016

તુટી ફુટી તસ્વીર હતી ને રૂઠી રૂઠી તકદીર હતી.

તુટી ફુટી તસ્વીર હતી ને
  રૂઠી રૂઠી તકદીર હતી.

આમ તો છુ હુ હજુ રાજા
   પણ લુટાયેલી જાગીર હતી.

દદઁ આપવા વાળા બીજુ આપે પણ શુ ..?
  હવે ખબર પડી કે તારી આ તાસીર હતી.

પોકળ પુરવાર થયા બઘા પૄેમના દાવાઓ
  રાંઝા રઝળે છે અહી કયા કોઇ હીર હતી.

ભરોસો રાખી લુટાય જવુ મુનાસીબ માન્યુ
  પણ તારી આ રમત બહુ ગંભીર હતી.

ઝીણવટ થી જોયુ બહુ હથેળીમા
તો તારા નામની સાવ ટુકી એક  લકીર હતી.

ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવીએ.

ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવીએ.

નવા કપડાં ખરીદીએ ....
ઘરો ને સુશોભીત કરીએ
ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવીએ..

ગામ અને ફળિયા ને તોરણ થી શણગારિએ. ...
ઘરે ઘરે મિઠાઇ વહેચીએ.
ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવીએ ..

જુલુસ,રેલી અને મેળાવડો યોજીએ...
એક સાથે ભોજન કરીએ
ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવિએ.

નોકરી એથી વતન ના ઘરે જ ઇએ...
વતનબંધુઓ સાથે ફટાકડા ફોડી ઉજવણી કરીએ
ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવીએ.

ચાલો કઈં ક નવી વસ્તુ ઘર મા વસાવીએ...
નવી નકોર ગાડી કે મિલ્કત ખરીદીએ.
ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવિએ.

ચાલ આ દિવસે કં ઇક સંકલ્પ લઇએ ...
અને વેરભાવ ભુલી બધા એક થઇએ .
ચાલો આંબેડકર જયંતિ ઉજવિએ ..

आनन्दी ने सूइसाइड किया....~ तुम सूइसाइड क्यों करना चाहते हो...??

आनन्दी ने सूइसाइड किया....~ तुम सूइसाइड क्यों करना चाहते हो...??

शायद तुम जैसा चाहते थे, लाइफ वैसी नहींचल रही है?लेकिन तुम ज़िन्दगी पर अपना तरीका, अपनी इच्छा थोपने वाले होते कौन हो?

हो सकता है कि तुम्हारी इच्छाएं पूरी न हुई हों? तो खुद को क्यों खत्म करते हो, अपनी इच्छाओं को खत्म करो। हो सकता है तुम्हारी उम्मीदें पूरी न हुई हों और तुम परेशान महसूस कर रहे हो।

जब इंसान परेशानी में होता है तो वह सब कुछ बर्बाद करना चाहता है। ऐसे में सिर्फ दो संभावनाएं होती हैं, या तो किसी और को मारो या खुद को। किसी और को मारना खतरनाक है और कानून का डर भी है। इसलिए, लोग खुद को मारने का सोचने लगते हैं।

लेकिन यह भी तो एक मर्डर है।तो क्यों न ज़िन्दगी को खत्म करने के बजाएउसे बदल दें।संन्यास ले लो फिर तुम्हें आत्महत्या करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि संन्यास लेने से बढ़कर कोई आत्महत्या नहीं है और किसी को आत्महत्या क्यों करनी चाहिए?

मौत तो खुद-ब-खुद आ रही है,तुम इतनी जल्दी में क्यों हो?मौत आएगी, वह हमेशा आती है। तुम्हारे न चाहते हुए भी वह आती है। तुम्हें उससे जाकर मिलने की जरूरत नहीं है, वह अपने आप आ जाती है, लेकिन विश्वास करो तुम अपने जीवन को बुरी तरह से मिस करोगे।

तुम गुस्से या चिंता की वजह से सूइसाइडकरना चाहते हो। मैं तुम्हे असली सूइसाइड सिखाऊंगा। बस संन्यासी बन जाओ। वैसे भी साधारण सूइसाइड करने से कुछ ख़ास होने वाला भी नहीं है।आप फौरन ही किसी दूसरे की कोख में कहीं और पैदा हो जाएंगे। इस शरीर से निकलने से पहले ही तुम किसी और जाल में फंस जाओगे और एक बार फिर तुम्हें स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी जाना पड़ेगा, जरा इसके बारे में सोचो।

उन सभी कष्ट भरे अनुभवों के बारे में सोचो। यह सब तुम्हे सूइसाइड करने से रोकेगा।दुनिया में बहुत से लोग सूइसाइड करते हैं और साइकोएनालिस्ट कहते हैं कि बहुत कम लोग होते हैं, जो ऐसा करने का नहीं सोचते। दरअसल, एक आदमी ने इन्वेस्टिगेट करके कुछ डाटा इकठ्ठा किया, जिसके अनुसार हर इंसान जीवन में कम से कम चार बार सूइसाइड करने की सोचता है, लेकिन यह पश्चिमी देशों की बात है, पूरब में चूंकि लोग पुनर्जन्म को मानते हैं, इसलिए कोई सुइसाइड नहीं करना चाहता है।

क्या फायदा, तुम एक दरवाज़े से निकलते हो और किसी दूसरे दरवाजे से फिर अंदर आ जाते हो। तुम इतनी आसानी से नहीं जा सकते। मैं तुम्हें असली आत्महत्या करना सिखाऊंगा, तुम हमेशा के लिए जा सकते हो। हमेशा के लिए जाना ही तो बुद्ध बन जाना है

ओशो.

★★★ अपने अंतर्तम के केंद्र को पहचानो ★★★ कभी आंख बंद करके बैठें और खयाल करें कि मेरे शरीर का केंद्र कहां है ? आप इतने दिन जी लिए हैं, लेकिन आपने अपने शरीर का केंद्र कभी खोजा नहीं होगा। और यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमें अपने शरीर के केंद्र का भी पता न हो।

★★★ अपने अंतर्तम के केंद्र को पहचानो ★★★

कभी आंख बंद करके बैठें और खयाल करें कि मेरे शरीर का केंद्र कहां है ? आप इतने दिन जी लिए हैं, लेकिन आपने अपने शरीर का केंद्र कभी खोजा नहीं होगा। और यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमें अपने शरीर के केंद्र का भी पता न हो।

अधिक लोगों को यह कील खोपड़ी में मालूम पड़ेगी। क्योंकि वहीं चलता रहता है कारोबार चौबीस घंटे। दुकान वहां खुली रहती है। बाजार वहां भरा रहता है। अधिक लोगों को ऐसा लगेगा कि कहीं खोपड़ी में ही।लेकिन खोपड़ी बहुत बाद में विकसित होती है।

मां के पेट में जिस दिन बच्चे का निर्माण होता है, उस दिन मस्तिष्क नहीं होता। फिर भी जीवन होता है। इसलिए जो बाद में आता है, वह केंद्र नहीं हो सकता।कुछ लोगों को, जो भावपूर्ण हैं -

स्त्रियां हैं, कवि हैं, चित्रकार हैं, मूर्तिकार हैं -- उनको लगेगा कि हृदय केंद्र है। क्योंकि उन्होंने जब भी कुछ जाना है, सौंदर्य, प्रेम, तो उन्हें हृदय पर ही उसका आघात लगा है। तो जिन लोगों का भावना से भरा हुआ चित्त है, वे हृदय को केंद्र बताएंगे।

लेकिन हृदय भी जन्म के साथ नहीं धड़कता। बच्चा जब पैदा हो जाता है, तब पहली श्वास लेता है और हृदय की धड़कन होती है। नौ महीने तो हृदय धड़कता ही नहीं। मां के हृदय की धड़कन को ही बच्चा सुनता रहता है, अपना उसके पास कोई हृदय नहीं होता।

इसलिए लाओत्से कहता है: नाभि केंद्र है, नतो हृदय और न मस्तिष्क। नाभि से ही बच्चा मां से जुड़ा होता है। इसलिए जीवन की पहली झलक नाभि है। और वह ठीक है। वह वैज्ञानिक रूप से ठीक है। तो अपने भीतर खोजें।

लाओत्से कहता है, साधना की पहली बात यह हैकि खोजते-खोजते नाभि के पास अपने केंद्र को ले आएं। जिस दिन आपका असली केंद्र और आपकी धारणा का केंद्र एक हो जाएगा, उसी दिन आप इंटिग्रेटेड हो जाएंगे।

जिस दिन फोकस मिल जाएगा, आपके चित्त का केंद्र, सोचने का केंद्र और आपका असली केंद्र जिसदिन करीब आकर मिल जाएंगे, उसी दिन आप पाएंगे कि आपकी जिंदगी बदल गई।

आप दूसरे आदमी हो गए। ए न्यू ग्रेविटेशन, एक नई कशिश आपकी दुनिया में आ जाएगी।..यह जो नाभि का केंद्र है, जिस दिन ठीक - ठीक पता चल जाए, उसी दिन आप मृत्यु और जन्म के बाहर हो जाते हैं। क्योंकि जन्म के पहले यह नाभि का केंद्र आता है; और मृत्यु के बाद यही बचता है,

बाकी सब खो जाता है। तो जो व्यक्ति भी इस केंद्र को जान लेता है, वह जान लेता है, न तो मेरा जन्म है और न मेरी मृत्यु है। वह अजन्मा और अमृत हो जाता है।

~ ओशो ~
(ताओ उपनिषद, भाग #2, प्रवचन #29)

एक बड़े वृक्ष पर ऊपर बैठकर मैं ध्यान करता था रोजरात। एक दिन ध्यान में कब कितना लीन हो गया,मुझे पता नहीं; और कब शरीर वृक्ष से गिर गया, वहमुझे पता नहीं। जब नीचे गिर पड़ा शरीर, तबमैंनेचौंककर देखा कि यह क्या हो गया है! मैं तो वृक्षपर ही था और शरीर नीचे गिर गया! कैसा हुआअनुभव, कहना बहुत मुश्किल है।


मैं तो वृक्ष पर हीबैठा था और शरीर नीचे गिरा था और मुझे दिखाईपड़ रहा था कि वह नीचे गिर गया है। सिर्फ एकरजत-रज्जु, एक सिलवर कॉर्ड नाभि से और मुझ तकजुड़ी हुई थी। एक अत्यंत चमकदार शुभ्र रेखा। कुछ भीसमझ के बाहर था कि अब क्या होगा? कैसे वापसलौटूंगा?

कितनी देर यह अवस्था रही, वह भी पता नहीं।लेकिन अपूर्व अनुभव हुआ। शरीर के बाहर सेपहलीदफा देखा शरीर को। और शरीर उसी दिन से समाप्तहो गया। मौत उसी दिन से खतम हो गई। क्योंकिएक और देह दिखाई पड़ी जो शरीर से भिन्न है।

एकऔर सूक्ष्म शरीर का अनुभव हुआ। कितनी देरयह रहा,कहना मुश्किल है। सुबह होतेऱ्होते दो औरतें वहां सेनिकलीं दूध लेकर किसी गांव से, और उन्होंने आकरपड़ा हुआ शरीर देखा। वह मैं देख रहा हूं ऊपर से कि वेकरीब आकर बैठ गई हैं। कोई मर गया! और उन्होंने सिरपर हाथ रखा--और एक क्षण में जैसे तीव्र आकर्षण से मैंवापस अपने शरीर में आ गया और आंख खुल गई।

तब एक दूसरा अनुभव भी हुआ। वह दूसरा अनुभव यहहुआ कि स्त्री पुरुष के शरीर में एक कीमिया औरकेमिकल चेंज पैदा कर सकती है और पुरुष स्त्री केशरीर में एक केमिकल चेंज पैदा कर सकता है। यह भीखयाल हुआ कि उस स्त्री का छूना और मेरा वापसलौट आना, यह कैसे हो गया! फिर तो बहुत अनुभव हुएइस बात के और तब मुझे समझ में आया कि हिंदुस्तान मेंजिन तांत्रिकों ने समाधि पर और मृत्यु परसर्वाधिकप्रयोग किए थे, उन्होंने क्यों स्त्रियों को भी अपनेसाथ बांध लिया था।

क्योंकि गहरी समाधि केप्रयोग में अगर शरीर के बाहर तेजस शरीर चला गयाहै, सूक्ष्म शरीर चला गया है, तो बिना स्त्री कीसहायता के पुरुष के तेजस शरीर को वापस नहींलौटाया जा सकता। या स्त्री का तेजस शरीर अगरबाहर चला गया है, तो बिना पुरुष की सहायताकेउसे वापस नहीं लौटाया जा सकता।

स्त्री औरपुरुषके शरीर के मिलते ही एक विद्युत वृत्त, एकइलेक्ट्रिकसर्किल पूरा हो जाता है और वह जो बाहर निकलगई है चेतना, तीव्रता से भीतर वापस लौट आती है।फिर तो छह महीने में कोई छह बार वह अनुभव हुआनिरंतर, और छह महीने में मुझे अनुभव हुआ कि मेरी उम्रकम से कम दस वर्ष कम हो गई। दस वर्ष कम हो गईमतलब, अगर मैं सत्तर साल जीता तो अब साठ हीसाल जी सकूंगा। छह महीने में एक अजीब-अजीब सेअनुभव हुए। छाती के सारे बाल मेरे सफेद हो गए छहमहीने के भीतर।

मेरी समझ के बाहर हुआ कि यह क्याहो रहा है!और तब यह भी खयाल आया कि इस शरीर और उसशरीर के बीच के संबंध में व्याघात पड़ गया है, उनदोनों का जो तालमेल था वह टूट गया है। और तब मुझेयह भी समझ में आया कि शंकराचार्य का तैंतीससाल की उम्र में मर जाना या विवेकानंद काछत्तीस साल की उम्र में मर जाना कुछ और हीकारण रखता है। अगर ये दोनों के संबंध बहुत तीव्रतासे टूट जाएं, तो जीना मुश्किल है। और तब मुझे यह भीखयाल में आया कि रामकृष्ण का बहुत बीमारियों सेघिरे रहना और रमण का कैंसर से मर जाने का भीकारण शारीरिक नहीं है, उस बीच के तालमेल का टूटजाना ही कारण है।

लोग आमतौर से कहते हैं कि योगी बहुत स्वस्थ होतेहैं, लेकिन सचाई बिलकुल उलटी है। सचाई आज तक यहहै कि योगी हमेशा रुग्ण रहा है और कम उम्रमें मरतारहा है। और उसका कुल कारण इतना है कि उन दोनोंशरीर के बीच जो एडजेस्टमेंट चाहिए, जो तालमेलचाहिए, उसमें विघ्न पड़ जाता है। जैसे ही एक बारवह शरीर बाहर हुआ, फिर ठीक से पूरी तरह कभी भीपूरी अवस्था में भीतर प्रविष्ट नहीं हो पाता है।लेकिन उसकी कोई जरूरत भी नहीं रह जाती, उसकाकोई प्रयोजन भी नहीं रह जाता, उसका कोई अर्थभी नहीं रह जाता है।

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ओशो

વેદના બની ગયો જીવનમાં એક જીવંત સંવેદના બની ગયો છું હું,

વેદના બની ગયો
જીવનમાં એક જીવંત સંવેદના બની ગયો છું હું,

ન સહી શકો તમે એવી વેદના બની ગયો છું હું.

પ્રયાસો વ્યર્થ છે હવે મુજને પામવા કાજે,

ન પામી શકો એવી કલ્પના બની ગયો છું હું.

ના ગમ્યુ સ્મિત તુજને મારા હોઠ પર ઓ ખુદા!,

આપ્યા દર્દ તમે એટલા કે વેદના બની ગયો છું હું.

આશા ‘ને નિરાશા ની હવે આ વાત રહેવા દો,

તડપતી કોઇ અધુરી ઝંખના બની ગયો છું હું.

નથી મૃત્યુ અંતિમ ધામ
'પરિચિત' નું સમજી લ્યો,

સઘળા દિલમાં એક ચેતના બની ગયો છું હું.

મળી તો લઈએ આવ એ મોત! આજ તને મળી તો લઈએ,

મળી તો લઈએ

આવ એ મોત!
આજ તને મળી તો લઈએ,

જરા નજીકથી તને નીહાળી..  તો લઈએ.

બળતો રહયો હું ભીતરથી... કોને કહું?

એ સમામાં ખુદને આજે બાળીતો લઈએ.

ના કરશો અનુમાન મારી સહનશીલતાનું,

તમારાં શબ્દોરૂપી ઝેર થોડું પી તો લઈએ.

શકય નથી પાછા વળવું પ્રેમના પંથેથી,

મળે દિલાસો તો મનને વાળી તો લઈએ.

નીકળે છે સદા મુજ હોઠે દૂઆ જેના કાજે,

એ હોઠે ખુદની બદદૂઆ સાંભળી તો લઈએ.

છેતરાતો રહ્યો છું જમાનામાં જાણ છે મુજને,

આજે ખુદની જાતને થોડી છળી તો લઈએ.

રાતની ચાંદની ઓઢીને ઉંઘી જાવ હંમેશ માટે,

વિરહની છેલ્લી રાત આવી ખાળી તો લઈએ.

ખુશ છે “પરિચિત“ ખુદની કબર જોઈને અહીં,

ચલો, છેલ્લી પથારી અહીં ઢાળી તો લઈએ.

લાગે પહેલી નજરે સરળ...ને ઉકેલવા બેસું તો, ગણિતના કોઈ અઘરા દાખલા જેવી લાગે છે.

લાગે પહેલી નજરે સરળ...ને ઉકેલવા બેસું તો,
ગણિતના કોઈ અઘરા દાખલા જેવી લાગે છે.

લાગે છે ક્યારેક તો ઉકળતા દુધના ઉભરા જેવી અને
ને પળમાં જ જેમ કોઈ વિશાળ શાંત જળાશય જેવી લાગે.

મુટ્ઠી માં રાખે ભલે પાસાં સોગઠાબાજીના કાયમ,
પણ દિમાગમાં ફિતરત હમેશા યુધિષઠિર ની રાખે છે.

થઇ જો શરતચૂક તો કઠોર બની શાન ઠેકાણે લાવે છે,
ને વ્હાલ સહેજે ઓછુ પડે તો નેત્રસજળ કરી જાય છે. 

ક્યારેક તેની લાગણીનો અણસાર આવતા એક યુગ વીતી જાય છે,
ને ચપટીમાં વગાડતા..સવા અક્ષરમાં પ્રેમની પરિભાષા સમજાવી દે છે

આંખોમાં તમારી રેહવા પ્રેમના દીવે કાજળ સુધી જવું છે..!!

આંખોમાં તમારી રેહવા પ્રેમના દીવે  કાજળ સુધી જવું છે..!!

ફૂલ કેરા શરીરમાં કોમળ સહવાસ પામવા  ઝાંકળ સુધી જવું છે..!!

દરિયાને   નદીના  મિલન માટે,

સૂર્યના તાપે તપીને વાદળ સુધી જવું છે..!!

તોડે તોડાય ના પ્રેમનો એ સબંધ, બાંધવા મને સાંકળ સુધી જવું છે..!!

એકાંતમાં આંખોમાં આવીને છલકાવ,

ગાલ પર સફર કરવા એ જળ સુધી જવું છે..!!

જે પળ માં તમારી યાદો કૈદ રહે,

યાદ ની દરેક એ પળ સુધી જવું છે..!!

દિલની જમીનમાં પ્રેમનું ધાન ઉગાવવા,

સર્જકને લાગનીયોના એ હળ સુધી જવું છે..!!

વિરહ ની વેદના ની વાત હુ કોને કરુ,

વિરહ ની વેદના ની વાત હુ કોને કરુ,

દિલ પુછે છે દર્દ ની એ વાત કોને કરુ,

હૈયા ની વાત હોઠે આવી ને અટકી જાય છે,

તુ જ નથી અહીં તો પછી સાદ કોને કરુ,

પડઘા બની ને શબ્દો મારા પાછા આવે છે,

પ્રેમ ની સજા જુદાઇ પછી યાદ હુ કોને કરુ,

પાગલ સમજી ને મજાક ઉડાવે છે સૌ મારી,

તારુ જ દિધેલુ દર્દ છે ફરીયાદ હુ કોને કરુ..?

अ-मन तो यदि तुम इस संसार में सफल होना चाहते हो, तो पुरुष मन चाहिए। यदि तुम भीतर के संसार में सफल होना चाहते हो, तो स्त्रैण मन चाहिए। लेकिन वह केवल शुरुआत है, स्त्रैण मन

अ-मन

तो यदि तुम इस संसार में सफल होना चाहते हो, तो पुरुष मन चाहिए। यदि तुम भीतर के संसार में सफल होना चाहते हो, तो स्त्रैण मन चाहिए। लेकिन वह केवल शुरुआत है, स्त्रैण मन

केवल एक शुरुआत है। वह अ-मन की ओर जाने की एक सीडी है। असली बात यही है. पुरुष मन स्त्रैण मन की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा दूर है अ-मन से। इसीलिए स्त्रैण मन रहस्यमय मालूम पड़ता है।

असल में तुम किसी स्त्री को जीवन भर प्रेम कर सकते हो, लेकिन तुम कभी उसे समझ न पाओगे। वह एक रहस्य ही बनी रहेगी। उसके व्यवहार के संबंध में कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती। वह विचारों की अपेक्षा भाव दशाओं से अधिक जीती है। वह मौसम की भांति अधिक है यंत्र की भांति कम। सुबह बदलियां छाई होती हैं और दोपहर बदलियां छंट जाती हैं और धूप निकल आती है। स्त्री को प्रेम करके देखो और तुम जान जाओगे। सुबह बादल घिरे होते हैं और वह उदास होती है, और शीघ्र ही, प्रत्यक्ष में कुछ खास हुआ भी नहीं होता, और बादल छंट जाते हैं और फिर धूप निकल आती है और वह गुनगुना रही होती है।

पुरुष के लिए बिलकुल बेबूझ है यह बात। क्या क्या बेतुकी बातें चलती रहती हैं स्त्री में? हां, तुम्हें बेतुकी लगती हैं क्योंकि पुरुष के लिए चीजों की तर्कसंगत व्याख्या होनी चाहिए।’क्यों उदास हो तुम?’ तो स्त्री सरलता से कह देती है, ‘बस मुझे उदासी पकड़ती है।’ पुरुष यह बात नहीं समझ सकता। कोई कारण होना चाहिए उदास होने का। बस, ऐसे ही उदास हो जाना? ‘तुम खुश क्यों हो?’ स्त्री कहती है, ‘बस वह खुशी अनुभव कर रही है।’ वह भाव दशाओं द्वारा जीती है।

निश्चित ही, पुरुष के लिए कठिन है स्त्री के साथ जीना। क्यों? क्योंकि यदि चीजें तर्कसंगत हों, तो चीजें संभाली जा सकती हैं। यदि चीजें एकदम बेबूझ हों चीजें अनायास, अकारण आ जाएं और चली जाएं तो कोई तालमेल बिठाना बहुत कठिन हो जाता है। कोई पुरुष कभी किसी स्त्री के साथ तालमेल नहीं बैठा पाया। अंततः वह समर्पण कर देता है, अंततः वह तालमेल बैठाने का पूरा प्रयास ही छोड़ देता है।

पुरुष मन ज्यादा दूर है अ-मन से; वह ज्यादा यंत्रवत है, ज्यादा तर्कपूर्ण है, ज्यादा बौद्धिक है; सिर में ज्यादा जीता है। स्त्रैण मन ज्यादा निकट है, ज्यादा स्वाभाविक है, ज्यादा अतार्किक है; हृदय के ज्यादा निकट है। और हृदय से नीचे नाभि में उतरना कहीं ज्यादा आसान है जहां कि अ-मन का अस्तित्व है।

पतंजलि योगसूत्र 

ओशो 

मजनू की कहानीलैला को उसका पिता लेकर भाग गया है। प्रेमियों से ये पिता बहुत ही डरते हैं। वह एकदम भाग गया है लैला को लेकर। मजनू को खबर आई तो वह भागा हुआ गया है।

मजनू की कहानीलैला को उसका पिता लेकर भाग गया है। प्रेमियों से ये पिता बहुत ही डरते हैं। वह एकदम भाग गया है लैला को लेकर। मजनू को खबर आई तो वह भागा हुआ गया है।

एक गांव मेंपड़ाव पड़ा है उसके पिता का। राह के एक किनारे छिप कर वह मजनू प्रतीक्षा करता है। लैला वहां से गुजरी तो उसने पूछा, उसने पूछा कब तक लौटोगी? कब तक आओगी? लैलातो बोल न सकी, पिता पास था और लोग पास थे।
उसने हाथ से इशारा किया कि आऊंगी, जरूर आऊंगी।

जिस वृक्ष के नीचे उसने वायदा किया था, मजनू उसी वृक्ष के नीचे टिक कर खड़ा हो गया।कहते हैं, बारह वर्ष बीत गए और मजनू वहां से नहीं हिला, नहीं हिला, वह खड़ा ही रहा उसी वृक्ष से टिका हुआ। कहते हैं कि धीरे धीरे वह वृक्ष की छाल और मजनू की खाल जुड़ गई। कहते हैं उस वृक्ष का रस उस मजनू के प्राणों और शरीरों में बहने लगा।

कहते हैं उसके हाथ पैर से भी शाखाएं निकल गईं और पत्ते छा गए।और बारह वर्ष बाद लैला उस रास्ते से वापस निकली। उसने वहां पूछा लोगों से कि मजनू नाम का एक युवक था वह दिखाई नहीं पडता, वह कहां है? लोगों ने कहा कैसा मजनू

बारह साल पहले हुआ करता था। बारह साल से तो वह दिखाई नहीं पड़ा इस गांव में। लेकिन ही, कभी—कभी रात के सन्नाटे में उस जंगल से आवाज आती है लैला, लैला, लैला! जंगल से आवाज? लेकिन आदमी हम दिन में जाते हैं, वहां कोई नहीं दिखाई पड़ता,

उस जंगल में कभी कोई आदमी दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन कभी—कभी उस जंगल से आवाज आती है। लोग तो डरने लगे उस रास्ते से निकलने में। एक वृक्ष के नीचे ऐसा मालूम पड़ता है कि जैसेकोई है, और कोई है भी नहीं। और कभी कभी वहां से एकदम आवाज आने लगती है लैला, लैला!लैला भागी हुई वहां गई।

वहां तो कहीं मजनूदिखाई नहीं पड़ता, लेकिन एक वृक्ष से आवाजआ रही थी। वह उस वृक्ष के पास गई। मजनू अब वहां नहीं था। वह वृक्ष ही हो गया था, लेकिन उस वृक्ष से आवाज आती थी, लैला, लैला! वह सिर पीट पीट कर उस वृक्ष पर रोने लगी और कहने लगी, पागल! तू वृक्ष से हट क्यों नहीं गया?

वह वृक्ष कहने लगा, प्रतीक्षा कहीं हटती है?प्रेम हमेशा प्रतीक्षा करने को तैयार होता है। सिर्फ सौदेबाज प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं होता। वह कहता है जल्दी निपटाइए। प्रेम तो प्रतीक्षा करने को राजी है अनंतकाल तक।

साधनापथ
ओशो

शराब का पहलाअनुभव तो दुखद ही है,

लेकिन शराब के गहरे अनुभव धीरे-धीरे सुखद होने शुरू हो जाते हैं, क्योंकि शराब आपको जगत से तोड़ देती है,जगत की चिन्ताओं से तोड़ देती है।जगत मिट जाता है, आप ही रह जाते हैं। यह बहुत ही मजे की बात है कि ध्यान और शराब में थोड़ा संबंध हैइसलिए विलियम जेम्स ने, जिसने कि इस सदी में धर्म और नशे के बीच संबंध खोजने में सर्वाधिक शोध कार्य किया,विलियम जेम्स ने कहा कि शराब का इतना आकर्षण गहरे में कहीं न कहीं धर्म से संबंधित है,अन्यथा इतना आकर्षण हो नहीं सकता।कहीं न कहीं शराब कुछ ऐसा करती होगी जो मनुष्य की गहरी धार्मिक आकांक्षा को तृप्त करता है—है संबंध। और इसलिए वेद के सोमरस से लेकर एलडूअस हक्सले तक, एल एसडी तक,धार्मिक आदमी का बड़ा हिस्सा नशों का उपयोग करता रहा है—बड़ा हिस्सा। और नशे के उपयोग में कहीं न कहीं कोई तालमेल है।वह तालमेल इतना ही है कि शराब आपको जगत सेतोड़ देती है इस बुरी तरह कि आप बिलकुल अकेले हो जाते हैं।अकेले होने में एक रस है। संसार की सारी चिन्ताएं भूल जाती हैं। आप एक गहरे अर्थ में निश्चिंत मालूम पड़ते हैं। हो तो नहींजाते।शराब तो थोड़ी देर बाद विदा हो जाएगी, चिन्ता वापस लौट आएगी,लेकिन शराब के साथ इस निश्चिंतता का रस जुड़ जाएगा। बस वह एक दफा रस जुड़ गया, फिर आप शराब के नाम से जहर पीते रहेंगे।वह कितना ही तिक्त मालूम पड़े, वह रस जो संयुक्त हो गया। हम विकृत रसों से भी जुड़ जा सकते हैं, और फिर उनकी पुनरुक्ति की मांग शुरू हो जाती है।महावीर वाणी, भाग-१, प्रवचन#१२, ओशो

मैं मृत्यु सिखाता हूं: ओशो

मैं मृत्यु सिखाता हूं: ओशोagyatagyaniमैं मृत्यु सिखाता हूं यहरहस्य 99% लोगो कीसमझ से उपर का विषय है ! ओशो की मृत्यु का रहस्य उसका सम्बन्ध शरीर या आत्मा से नही है! यह पहला रहस्य है ! जो नही है उस मृत्यु को सिखाने का रहस्य है ओशो का ! जिसे हम मैं या मैं हूँ यह समझते है !लेकिन मैं हूँ या नही हूँ या यह हम है तो कौन है ! हमारे होने का जो भ्रम है उस मृत्यु की बाते ओशो करते थे ! यहा पर सब कुछ सत्य है यह शरीर भी सत्य आत्मा भी सत्य है लेकिन यह मन सत्य है या नही है इसे जान लेना या परम को जान लेना एक ही बात है !और ओशो मृत्यु शब्द एक मन की समझ का रूपांतरण का एक मृत्यु शब्द संकेत है !हमारा यह जड़ शरीर मरता है लेकिन यह भी मरता नही है सिर्फ यह शरीर जिससे बना जहा से बना वे तत्व अपनी जगह वापस चले जाते है! शरीर पञ्चतत्व में विलय हो जाता है लेकिन शरीर तत्व भी मरते नही है ! और नही आत्मा मरती जहा से प्राण आये थे वहा वापिस प्राण चले जाते है ! पंचतत्व और चेतना का एक खेल था एक जोड़ था उस खेल की समाप्ति को मृत्यु कहते है! यह मृत्यु आम साधारण की मृत्यु हो गई लेकिन इस मृत्यु के सम्बधं में ओशो ने " मैं मृत्यु सिखाताहूं" इस विषय से कोई तालुकात नही है ! यह मृत्यु के सम्बन्ध से जुडी वह मृत्यु है! शरीर और प्राण परमात्मा का बनाया हुआ खेलहै वही बनाता है वही मिटाता है ! मन का खेलहम बनांते है लेकिन इस खेल को हम बना सकतेहै लेकिन मिटा नहीपाते , हमने मन को बनानासिख लिया है मन को बड़ा करना सिख लिया, मन की माया बनाना सिख लिया, लेकिन हम इस मायाको मिटा नही सकते है ! हमारेद्वारा बनाई मन की माया है जो अपनी ही बनाई माया को मिटा दे वह परम हो जाता है !वह ब्रहम बन जाता है ! जिसने बनना सिखा और मिटना भी सिख लिया वह समझो समस्त उपलब्धियों से विजय हो गया !99.99% लोग बनना चाहते है लेकिन मिटना नही चाहते है इस मन के खेल के लिए शरीर के नियम की तरह मृत्यु होनी आवश्यक है तब इसी शरीर में रह कर मुक्ति.समाधि.दर्शन.परमअनुभूति,मोक्ष .सर्वग की उपलब्धीहोती है इसी मृत्यु में बुद्धत्त्व घटित होता है बह्रमचर्य घटित होता है!

Anmol Vachan In Hindi | प्रेरणादायक अनमोल वचन

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Anmol Vachan In Hindi

प्रेरणादायक अनमोल वचन  :-
1) दान देना ही आमदमी का एकमात्र व्दार है | – स्वामी रामतीर्थ.
2) यदि किसी युवती के दोष जानना हों, तो उसकी सखियों में उसकी प्रशंसा करो | – बेंजामिन फ्रैंकलिन.
3) पैसा आपका सेवक है, यदि आप उनका उपयोग जानते हैं; वह आपका स्वामी है, यदि आप उसका उपयोग नहीं जानते | – होरेस
4) दुसरे के दोष पर ध्यान देते समय हम स्वयं बहुत भले बन जाते हैं | परंतु जब हम अपने दोषों पर ध्यान देंगे, तो अपने आपको कुटिल और कामी पाएँगे | – महात्मा गांधी.
5) जब तक तुममें दूसरों के दोष देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना अत्यन्त कठिन है | – रामतीर्थ.
6) ज्ञानवान मित्र ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है | – युरिपिडिज.
7) मुँह के सामने मीठी बातें करने और पीठ पीछे छुरी चलानेवाले मित्र को दुधमुँहे विषभरे घड़े की तरह छोड़ दो | – हितोपदेश.
8) सच्चे मित्र को दोनों हाथों से पकड़कर रखो | – नाइजिरियन कहावत.
9) उस काम को, जिसे तुम दुसरे व्यक्ति में बुरा समझते हो, स्वयं त्याग दो परंतु दूसरों पर दोष मत लगाओ | – स्वामी रामतीर्थ.
10) जब जेब में पैसे होते हैं, तो तुम बुद्धिमान और सुंदर लगते हो तथा उस समय तुम अच्छा गाते भी हो | – स्वीडिश कहावत
Anmol Vachan In Hindi Language :-  Aaj ka vichar
11) धर्म तो मानव-समाज के लिए अफीम है | – कार्ल मार्स्क.
12) जो चीज विकार को मिटा सके, राग-व्देष को कम कर सके, जिस चीज के उपयोग से मन सूली पर चढ़ते समय भी सत्य पर डटा रहे वही धर्म की शिक्षा है | – महात्मा गांधी.
13) संकट के समय धैर्य धारण करना मानो आधी लड़ाई जीत लेना है | – प्लाट्स.
14) जिसे धीरज है और जो मेहनत से नहीं घबराता, कामयाबी उसकी दासी है | – स्वामी दयानन्द सरस्वती.
15) अपने जीवन का ध्येय बनाओ और इसके बाद अपनी सारी शारीरिक और मानसिक शक्ति, जो भगवान ने तुम्हें दी है, उसमें लगा दो | – कार्लाइल.
16) महान ध्येय महान मस्तिष्क की जननी है | – इमन्स.
17) चाहे धैर्य थकी घोड़ी हो, परंतु फिर भी वह धीरे-धीरे चलेगी अवश्य | – विलियम शेक्सपीयर.
18) जो अपने लक्ष्य के प्रति पागल हो गया है, उसे ही प्रकाश का दर्शन होता है | जो थोड़ा इधर, थोड़ा उधर हाथ मारते हैं, वे कोई लक्ष्य पूर्ण नहीं कर पाते | वे कुछ क्षणों के लिए बड़ा जोश दिखाते है; किन्तु वह शीघ्र ठंडा हो जाता है | – स्वामी विवेकानंद.
19) हमारा ध्येय सत्य होना चाहिए, न कि सुख | – सुकरात.
20) मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है | इसलिए मनुष्य को इस पापरुपिनी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए | – हितोपदेश.
10 Anmol Vachan In Hindi :-  10 Suvichar in hindi
21) कष्ट और क्षति सहने के पश्चात् मनुष्य अधिक विनम्र और ज्ञानी हो जाता है | – फ्रैंकलिन.
22) उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के ज्यादा नजदीक होते हैं | – वर्ड्सवर्थ.
23) अभिमान की अपेक्षा नम्रता से अधिक लाभ होता है | – भगवान् गौतम बुद्ध.
24) निराशा आशा के पीछे-पीछे चलती है | – एल. ई लैमडन.
25) निराशा निर्बलता का चिह्न है | – स्वामी रामतीर्थ.
26) जिस तरह पानी को कोई जल, कोई आब, कोई वाटर कहते हैं, उसी तरह एक ही सच्चिदानंद परमेश्वर को कोई अल्लाह, कोई हरि, कोई गॉड कहकर पुकारते हैं | – रामकृष्ण परमहंस.
27) उस अल्लाह की स्तुति करनी चाहिए, जो समस्त संसार का चालक, दयालु, उदार पर अंतिम निर्णय के समय न्यायाधीश भी है | – कुरान.
28) ईश्वर की कोई बौद्धिक परिभाषा नहीं दी जा सकती | हाँ, उसका आत्मा के सहारे अनुभव किया जा सकता है | – डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन.
29) पाप एक प्रकार का अँधेरा है, जो ज्ञान का प्रकाश होते ही मिट जाता है | – कालिदास.
30) पुस्तकें मन के लिए साबुन का कार्य करती हैं | – महात्मा गांधी.
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