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Wednesday, 23 March 2016

एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था

एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था।

एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ' ओ जुम्मा ! आकेपैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है।

"मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथोंके ? "वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो ! रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं।

' हर कोई तो सुनता नहीं , लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ।

"सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया- " पानी कैसे पीते हो ? "उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाताहै। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ।

"मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदिमच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "वह बोला - " तब शरीर को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ।

"हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है ! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता।

परन्तु यह भीतो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो!स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं।कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले।

हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले।यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है जो हमें परमात्मा के बताये मार्ग पर चलने सिखाये।ये हाथ प्राणी मात्र की सेवा करने को मिले हैं।

ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो परम पद तक जाता हो।ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जो जिसमे परम पद पाने का मार्ग बताया जाताहो।ये जिह्वा प्रभु का गुण गान करने को मिली है।ये मन उस प्रभु का लगातार शुक्र और सुमिरन करने को मिला है।

कस्तूरी कुंडल बसै ●●★★★★ कबीर ने बड़ा प्यारा प्रतीक चुना है। जिस मंदिर की तुम खोज कर रहे हो, वह तुम्हारे कुंडल में बसा है; वह तुम्हारे ही भीतर है; तुम ही हो।

कस्तूरी कुंडल बसै ●●★★★★

कबीर ने बड़ा प्यारा प्रतीक चुना है। जिस मंदिर की तुम खोज कर रहे हो, वह तुम्हारे कुंडल में बसा है; वह तुम्हारे ही भीतर है; तुम ही हो।

और जिस परमात्मा की तुम मूर्ति गढ़ रहे हो,उसकी मूर्ति गढ़ने की कोई जरूरत नहीं; तुम ही उसकी मूर्ति हो। तुम्हारे अंतर - आकाशमें जलता हुआ उसका दीया, तुम्हारे भीतर उसकी ज्योतिर्मयी छवि मौजूद है।

तुम मिट्टी के दीये भले हो ऊपर से, भीतर तो चिन्मय की ज्योति हो। मृण्यम होगी तुम्हारी देह; चिन्मय है तुम्हारा स्वरूप। मिट्टी के दीए तुम बाहर से हो; ज्योति थोड़े ही मिट्टी की है।

दीया पृथ्वी का है; ज्योति आकाश ही है। दीया संसार का है; ज्योति परमात्मा की है।लेकिन तुम्हारी स्थिति वही है जो कस्तूरी मृग की है: भागते फिरते हो; जन्मों - जन्मों से तलाश कर रहे हो, उसकी जो तुम्हारी भीतर ही छिपा है।

उसे खोज रहे हो, जिसे तुमने कभी खोया नहीं। खोजने के कारण ही तुम वंचित हो।यह कस्तुरी - मृग पागल ही हो जाएगा।

यह जितना खोजेगा उतनी मुश्किल में पड़ेगा; जहां जाएगा, सारे संसार में भटके तो भी पान सकेगा। क्योंकि बात ही शुरु से गलत हो गई - जो भीतर था उसे उसने बाहर सोच लिया, क्योंकि गंध बाहर से आ रही थी, गंध उसे बाहर से आती मालूम पड़ी थी।

तुम्हें भी आनंद की गंध पागल बनाये दे रही है। तुम भी आनंद की गंध को बाहर से आता हुआ अनुभव करते हो। और खोजते फिरते हो संसार भर के मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों में।

ओशो

એ મારી આ જિંદગીનો છેલ્લો શ્વાસ હશે;કે જ્યારે ભૂલાતી તારી બધી યાદ હશે!!

એ મારી આ જિંદગીનો છેલ્લો શ્વાસ હશે;કે જ્યારે ભૂલાતી તારી બધી યાદ હશે!!

ને હું મલકાતો હોઇશ એટલે એ ક્ષણોમાં;કે તને પામી શકું એ મોકો ફરી હાથ હશે!!

તારા ગયા પછીનું એ અંધારું આ જીવનમાં,ફરીથી નવલું પ્રભાત ઉગવાની આશ હશે!!

ક્રૂરતાથી કચડી નાખી હતી લાગણીઓને;મોકો ફરીથી પ્રિયે એ તારે હાથ હશે!!

ચાહવા સિવાય કરવું શું જન્મ લઇને;ચાહતનો સિરસ્તો જનમોથી આમ જ હશે!

હા, ફરીથી અજાણ્યા થઇ જવું સંબંધોમાં,ને ફરીની આપણી એ પહેલી મુલાકાત હશે!!

ફરીથી એમ જ કદાચ તારી ના હશે,ને એ છેલ્લો શ્વાસ ફરીથી એક વિશ્વાસ હશ

मैं एक डाक्टर को जानता हूं; उनके घर मैं मेहमान होता था, बैठकर मैं देखता कि वह मरीजों को डरवाते। जिसको सर्दी—जुकाम हुआ है, उसको वह एकदम इस तरह बात करते जैसेनिमोनिया हो गया है कि डबल निमोनिया हो गया है। मैंने यह दो—चार बार देखा। मैंने उनसे पूछा कि बात क्या है? आप मरीज को बहुत घबड़ा देते हैं! उन्होंने कहा: मरीज को घबड़ाओ मत, तो मरीज फंदे में नहीं आता। मालूम है मुझे भी सर्दी—जुकाम है, लेकिन निमोनिया की बात करो तो मरीज घबड़ाता है।

मैं एक डाक्टर को जानता हूं; उनके घर मैं मेहमान होता था, बैठकर मैं देखता कि वह मरीजों को डरवाते। जिसको सर्दी—जुकाम हुआ है, उसको वह एकदम इस तरह बात करते जैसेनिमोनिया हो गया है कि डबल निमोनिया हो गया है। मैंने यह दो—चार बार देखा। मैंने उनसे पूछा कि बात क्या है? आप मरीज को बहुत घबड़ा देते हैं! उन्होंने कहा: मरीज को घबड़ाओ मत, तो मरीज फंदे में नहीं आता। मालूम है मुझे भी सर्दी—जुकाम है, लेकिन निमोनिया की बात करो तो मरीज घबड़ाता है।

हालांकि सर्दी—जुकाम है, इसलिए ठीक भी कर लेंगे जल्दी, कोई अड़चन भी नहीं है। और मरीज को अगर यह खयाल रहे कि निमोनिया ठीक किया गया है, तो वह सदा के लिए अपना हो जाता है। और इतनी जल्दी ठीक किया गया! तो दोहरे फायदे हैं! पर मैंने कहा, यह तो बात गलत है, यह तो बात अनुचित है। तुम तो धर्म—पुरोहितों जैसा काम कर रहे हो!मगर बहुत डाक्टर हैं जो इस तरह जीते हैं, जो तुम्हारी छोटी—सी बीमारी को खूब बड़ा करके बता देते हैं। और मजा ऐसा है कि मरीज इन्हीं डाक्टरों से प्रसन्न होता है।

जो उसकी बीमारी को खूब बड़ा करके बता देते हैं, वे ही उसको बड़े डाक्टर भी मालूम होते हैं। अगर तुम समझ रहे हो कि तुम्हें निमोनिया हुआ है, और तुम गए और कोई डाक्टर कह दे: छोड़ो बकवास, सर्दी—जुकाम है, दो दिन में चला जाएगा। तुम प्रसन्न नहीं होते; तुम्हारा चित्त राजी नहीं होता; तुमको चोट लगती है

तुम इतनी बड़ी बीमारी लेकर आए——तुम कोई छोटे—मोटे आदमी हो! तुम्हें कोई छोटी—मोटी बीमारियां होती हैं! बड़े आदमियों को बड़ी बीमारियां होती हैं। तुम बड़े आदमी हो, तुम बड़ी बीमारी लेकर आए हो और यह बदतमीज कहता है कि सर्दी—जुकाम है बस, ठीक हो जाएगा, ऐसे ही ठीक हो जाएगा।

जो डाक्टर मरीज से कह देता है ऐसे ही ठीक हो जाएगा, उससे मरीज प्रसन्न नहीं होते।मेरे गांव में एक नए डाक्टर आए। सीधे—सादे आदमी थे। उनकी डाक्टरी न चले।किसी ने मेरी उनसे पहचान करा दी। उन्होंने मुझसे पूछा कि मामला क्या है? मेरी डाक्टरी क्यों नहीं चलती? मैंने कहाकि मैं जरा आऊंगा, देखूंगा एक—दो दिन बैठकर कि बात क्या है।तो उनकी बैठ जाता था डिस्पेंसरी पर जाकर। जो मैंने देखा, तो मामला साफ हो गया।

वह मरीजों को डरवाते न। मरीज बता रहा है बड़ी बीमारी, वह कहते: यह कुछ नहीं है, यह मिक्शचर ले लो, ठीक हो जाएगी। किसी—किसी मरीज को कह देते कि तुम्हें बीमारी ही नहीं है, दवा की कोई जरूरत नहीं है। और मरीज अपनी बीमारी की कथा कह भी न पाता और वह मिक्शचर तैयार करने लगते।

मैंने उनके मरीजों से पूछा। उन्होंने कहा कि हमें यह बात जंचती नहीं। हम अभी अपनी बीमारी की पूरी बात भी नहीं कह पाए और यह सज्जन जल्दी से दवाई बनाने लगते हैं।कुशल डाक्टर थे, मगर कुशल राजनीतिज्ञ नहीं थे।

मरीज को सिर्फ बीमारी ही थोड़े हीठीक करवानी है, मरीज को कुछ और रस भी है——उसकी बात ध्यान से सुनी जाए, उस पर ध्यान दिया जाए। तड़प रहा है, कोई ध्यान नहीं देता। घर जाता है, कहता है सिर में दर्द, तो पत्नी कहती है, लेटे रहो, ठीक हो जाएगा। कोई ध्यान नहीं देता।

कोई उसकी चारों तरफ खाट के बैठकर हाथ—पैर नहीं दबाता। कोई कहता नहीं कि अहा! ऐसा सिरदर्दकभी किसी को नहीं हुआ। कितनी मुसीबत में पड़े हो! कैसा कष्ट झेल रहे हो! हम बच्चों के लिए, पत्नी के लिए, परिवार के लिए कैसा महान हिमालय सिर पर ढो रहे हो! उसी से सिरदर्द हो रहा है——कोई उस पर ध्यान नहीं देता।

और यह डाक्टर के पास आया है; यहमिक्शचर बनाने लगा, इसने मरीज की बात ही नहीं सुनी।होम्योपैथी डाक्टरों का बड़ा प्रभाव का एककारण है कि वे खूब लंबी चर्चा सुनते हैं; तुम्हारी ही नहीं, तुम्हारे पिता को भी क्या बीमारी हुई थी, उसकी भी तुमसे पूछते हैं।

पिता के पिता को भी क्या हुई थी, उसकीभी तुमसे पूछते हैं। बचपन से लेकर अब तक कितनी बीमारियां हुईं, वह सब पूछ लेते हैं। मरीज को बड़ी राहत मिलती है——यह कोईआदमी है जो इतना रस ले रहा है!पश्चिम में मनोवैज्ञानिकों का बहुत प्रभाव है, क्योंकि वे घंटों तुम्हारी बकवास सुनते हैं; मगर इतने ध्यान से सुनतेहैं जैसे तुम अमृत वचन बोल रहे हो।

कहै वाजिद पुकार,
प्रवचन-६,
ओशो

એક બહુમાળી ઇમારતનું બાંધકામ ચાલી રહ્યુ હતું. લગભગ 10 માળ જેટલું કામ પુરુ થયું હતું. એક વાર સવારના સમયે કંસ્ટ્રકશન કંપનીનો માલિક ઇમારતની મુલાકાતે આવ્યો. એ 10માં માળની છત પર આંટા મારી રહ્યો હતો.

એક બહુમાળી ઇમારતનું બાંધકામ ચાલી રહ્યુ હતું. લગભગ
10 માળ જેટલું કામ પુરુ થયું હતું. એક વાર સવારના સમયે
કંસ્ટ્રકશન કંપનીનો માલિક ઇમારતની મુલાકાતે આવ્યો.
એ 10માં માળની છત પર આંટા મારી રહ્યો હતો.

ત્યાંથી નીચે જોયુ તો એક મજુર કામ કરી રહ્યો હતો.
માલિકને મજુર સાથે વાત કરવાની ઇચ્છા થઇ.માલિકે
ઉપરથી મજુરને બુમ પાડી પણ મજુર કામમાં વ્યસ્ત
હોવાથી અને આસપાસ અવાજ થતો હોવાથી એને
માલિકનો અવાજ ન સંભળાયો. થોડીવાર પછી મજુરનું
ધ્યાન પોતાના તરફ ખેંચવા માટે માલિકે ઉપરથી 10
રૂપિયાનો સિક્કો ફેંક્યો.

આ સિક્કો મજુર કામ
કરતો હતો ત્યાં જ પડ્યો. મજુરે તો સિક્કો ઉઠાવીને
ખીસ્સામાં મુકયો અને કામે વળગી ગયો.માલિકે હવે
100ની નોટ નીચે ફેંકી. નોટ
ઉડતી ઉડતી પેલા મજુરથી થોડે દુર પડી.
મજુરની નજરમાં આ નોટ આવી એટલે લઇને
ફરીથી ખિસ્સામાં મુકી દીધી અને કામ કરવા લાગ્યો.


માલિકે હવે 500ની નોટ નીચે ફેંકી તો પણ પેલા મજુરે એમ
જ કર્યુ જે અગાઉ બે વખત કર્યુ હતું. માલિકે હવે
હાથમાં નાનો પથ્થર લીધો અને પેલા મજુર પર માર્યો.
પથ્થર વાગ્યો એટલે મજુરે ઉપર જોયું અને
પોતાના માલિકને ઉપર જોતા તેની સાથે વાત ચાલુ
કરી.મિત્રો,

આપણે પણ આ મજુર જેવા જ છીએ.
ભગવાનને આપણી સાથે વાત કરવાની ઇચ્છા હોય છે એ
આપણને સાદ પાડીને બોલાવે છે પણ આપણે
કામમાં એવા વ્યસ્ત છીએ કે પ્રભુનો સાદ આપણને
સંભળાતો જ નથી.

પછી એ નાની નાની ખુશીઓ આપવાનું
શરુ કરે છે પણ આપણે એ ખુશીઓને ખિસ્સામાં મુકી દઇએ
છીએ ખુશી આપનારાનો વિચાર જ નથી આવતો. છેવટે
ભગવાન દુ:ખ રૂપી નાનો પથ્થર આપણા પર ફેંકે છે અને
તુંરત જ ઉપર ઉભેલા માલિક સામે જોઇએ છીએ.
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મિત્રો વાત ગમે તો શેર જરૂરથી કરજો...very nice and true story

"મૃત્યુ ક્યારે ?" ગુરુ વ્યાસજી ને "દાસ" નામ નો એક ચેલો હતો.. એ વ્યાસજી ની ખુબ સેવા કરે.

"મૃત્યુ ક્યારે ?"

ગુરુ વ્યાસજી ને "દાસ" નામ નો એક ચેલો હતો.. એ વ્યાસજી ની ખુબ સેવા કરે.

એક દિવસ એણે વ્યાસ જી ને પૂછ્યું,..''હું ક્યારે મરીશ? એ મારે જાણવું છે''.

વ્યાસ જી એ કહ્યું, ''એ પ્રશ્ન રહેવા દે..એ તારે જાણવાની શું જરૂર છે ?''

દાસે અતિ આગ્રહ કર્યો ત્યારે વ્યાસજી કહે, ''તારે એ જાણવાની ઈચ્છા છે તો એ આપણે યમરાજ ને પૂછવું પડે''.

વ્યાસજી ચેલાને લઈને યમરાજજી પાસે આવ્યા..અને યમરાજ ને પૂછ્યું, ''મારો આ ચેલો છે દાસ.. એ ને જાણવું છે કે એનું મૃત્યુ ક્યારે થશે ?''.

યમરાજે કહ્યું ,..''હું કશું જાણતો નથી..એ મારા મંત્રી મૃત્યુદેવ જાણતા હશે, ચાલો આપણે મૃત્યુદેવ પાસે જઈ ને પૂછીએ'.."

મૃત્યુદેવે કહ્યું, ''હું કઈ જાણતો નથી મને તો હુકમ મળે તે હું મારી ફરજ બજાવું.. એ તો પ્રારબ્ધ દેવ જાણે..

ચાલો આપણે એમને પૂછીએ''.
વ્યાસજી, દાસ, યમ અને મૃત્યુદેવ એમ ચાર જણા આવ્યા પ્રારબ્ધ દેવ પાસે અને પૂછ્યું કે "આ દાસ નું મૃત્યુ કયારે છે ?''

વિધાતાએ કહ્યું, ''મેં દાસ ના પ્રારબ્ધ માં લખ્યું કે જયારે વ્યાસજી, દાસ, યમ અને મૃત્યુ એ ચારે ભેગા મળી મારે ઘેર આવે ત્યારે જ એ મરે. વ્યાસ જી એ તમારો ચેલો છે અને તમારી ખુબ સેવા કરે છે અને એ મરે નહિ માટે જ મેં આવું લખ્યું ..હવે એની પાસે ફક્ત ૨ જ મિનીટ છે..''

માટે જ કોઈ દિવસ તમારે એમ ન પૂછવું કે ક્યારે મૃત્યુ થશે...આ શરીર નું ક્ષણે ક્ષણે મૃત્યુ થાય છે... બહુ જીવવાનો વિચાર ના કરો કે ક્યારે મરવાનો પણ વિચાર ન કરો,

તમે તમારી પ્રતિ ક્ષણ સુધારો.. એટલું જ વિચારો મારે હાથે પાપ ના થાય.. પરોપકાર અને પુણ્યકાર્ય માં જ મારું જીવન વ્યતીત થાય...