प्रेम की मांग कभी मत करो, प्रेम अपने आप आएगा।तुम प्रेम दोगे, वह आएगा...और आएगा। वह देने से बढ़ताहै। जब हम किसी से कहते हैं, आई लव यू, तोदरअसलहम किस बारे में बात कर रहे होते हैं इन शब्दों के साथहमारी कौनसी मांगे और उम्मीदें, कौनसी अपेक्षाएंऔर सपने जुड़े हुए हैं।
तुम्हारे जीवन में सच्चे प्रेम कीरचना कैसे हो सकती है तुम जिसे प्रेम कहते हो,दरअसल वो प्रेम नहीं है। जिसे तुम प्रेम कहते हो, वहऔर कुछ भी हो सकता है, पर वह प्रेम तो नहीं ही है।हो सकता है कि वह सेक्स हो। हो सकता है कि वहलालच हो। हो सकता है कि वह अकेलापन हो। वहनिर्भरता भी हो सकता है।
खुद को दूसरे कामालिक समझने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। वहऔर कुछ भी हो सकता है, पर वह प्रेम नहीं है। प्रेमदूसरे का स्वामी बनने की प्रवृत्ति नहीं रखता। प्रेमका किसी अन्य से लेना-देना होता ही नहीं है। वहतो तुम्हारे अस्तित्व की एक स्थिति है। प्रेम कोईसंबंघ भी नहीं है, हो सकता है यह संबंघ बन जाए, परप्रेम अपने आप में कोई संबंघ नहीं होता।
संबंघ होसकता है, पर प्रेम उसमें सीमित नहीं होता। वह तोउससे कहीं अघिक है। प्रेम अस्तित्व की एक स्थितिहै। जब वह संबंघ होता है, तो प्रेम नहीं हो सकता।क्योंकि संबंघ तो दो से मिलकर बनता है।और जब दोअहम होंगे तो लगातार टकराव होना लाजमीहोगा।
इसलिए जिसे तुम प्रेम कहते हो, वहतो सततसंघर्ष का नाम है। प्रेम शायद ही कभी प्रवाहितहोता हो। तकरीबन हर समय अहंकार के घोड़े कीसवारी ही चलती रहती है। तुम दूसरे को अपने हिसाबसे चलाने की कोशिश करते हो और दूसरा तुम्हें अपनेहिसाब से। तुम दूसरे पर कब्जा करना चाहते हो औरदूसरा तुम पर कब्जा करना चाहता है। यह तोराजनीति है, प्रेम नहीं। यह ताकत का एक खेल है।यही कारण है की प्रेम से इतना दुख उपजता है।
अगरवो प्रेम होता, तो दुनिया स्वर्ग बन चुकी होती,जो कि वह नहीं है। जो व्यक्ति प्रेम को जानता हैवह आनंदमगA रहता है, बिना किसी शर्त के। उसकेवजूद के साथ जो होता रहे, उससे उसे कोई फर्क नहींपड़ता। मैं चाहता हूं कि तुम्हारा प्रेम फैले, बढ़े ताकिप्रेम की ऊर्जा तुम पर छा जाए।
जब ऎसा होगा, तबप्रेम निर्देशित नहीं होगा। तब वह सांस लेने की तरहहोगा। तुम जहां भी जाओगे, तुम सांस लोगे। तुमजहां भी जाओगे, प्रेम करोगे। प्रेम करना तुम्हारेअस्तित्व की एक सहज स्थिति बन जाएगा। किसीव्यक्ति से प्रेम करना, तो एक संबंघ बनाना भर है।
यहतो ऎसा हुआ कि जब तुम किसी खास व्यक्ति केसाथ होते हो, तो सांस लेते हो और जब उसे छोड़ देतेहो, तो सांस लेना बंद कर देते हो। सवाल यह है किजिस व्यक्ति के लिए तुम जीवित हो उसके बिनासंास कैसे ले सकते हो। प्रेम के साथ यही हुआ है। हरकोई आग्रह कर रहा है, मुझे प्रेम करो, परसाथ ही शकभी कर रहा है कि शायद तुम दूसरे लेागों को भी प्रेमकर रहे होंगे। इसी ईष्र्या और संदेह नेप्रेम को मारडाला है।
पत्नी चाहती है कि पति केवल उससे प्रेमकरे। उसका आग्रह होता है कि केवल मुझसेप्रेम करो।जब तुम दुनिया में बाहर जाओगे, दूसरे लोगों सेमिलोगे, तो क्या करोगे। तुम्हें लगातार चौकन्नारहना होगा कि कहीं किसी के प्रति प्रेमना जतादो। प्रेम करना तुम्हारे अस्तित्व की एक स्थिति है।प्रेम सांस लेने के समान है। सांसें जोशरीर के लिएकरती हैं, प्रेम वही तुम्हारी आत्मा के लिए करता है।प्रेम के माघ्यम से तुम्हारी आत्मा संास लेती है।जितना तुम प्रेम करोगे, उतनी ही आत्मा तुम्हारेपास होगी इसलिए ईष्र्यालु मत बनो।
यही वजह हैकि सारी दुनिया में हर व्यक्ति कहता हैकि आई लवयू पर कहीं पर कोई प्रेम नहीं दिखाई पड़ता। उसकीआंखों में न कोई चमक होती है और न चेहरे पर कोईवैभव। न ही तुम्हें उसके ह्वदय की घड़कनें तेज होते हुएसुनाई देंगी। किसी भी कीमत पर अपने प्रेम को नामरने दो वरना तुम अपनी आत्मा को मार डालोगेऔर न किसी दूसरे को यह नुकसान पहुंचने दो। प्रेमआजादी देता है। और प्रेम जितनी आजादी देता हैउतना ही प्रेममय होता जाता है। प्रेम एक पंछी है,उसे आजाद रखो।
उस पर एकाघिकार करने कीकोशिश मत करो। एकाघिकार करोगे, तो वह मरजाएगा। एक संपूर्ण व्यक्ति वह है, जो बिना शर्त प्रेमकर सकता है। जब प्रेम बिना संबंघ, बिना शर्तप्रवाहित होता है, तो और कुछ उपलब्घ करने के लिएनहीं रह जाता, व्यक्ति को उसकी मंजिल मिलजाती है। अगर प्रेम प्रवाहित नहीं हो रहा है, तोभले ही तुम महान संत क्यों न बन जाओ, रहोगे दुखीही। अगर प्रेम प्रवाहित नहीं हो रहा है,तो भले हीतुम महान विद्वान, घर्मशास्त्री या दार्शनिक क्योंन बन जाओ, तुम न बदल पाओेगे। न ही रूपांतरित होपाओगे। केवल प्रेम ही रूपांतरण कर सकता है, क्योंकिकेवल प्रेम के माघ्यम से ही अहंकार समाप्त होता है।
........OSHO.