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Sunday, 20 March 2016

સુકાયેલી નદીના ક્યાંકથી પગરણ મળી આવે વિખૂટું થઈ ગયેલું એ રીતે એક જણ મળી આવે

સુકાયેલી નદીના ક્યાંકથી પગરણ મળી આવે

વિખૂટું થઈ ગયેલું એ રીતે એક જણ મળી આવે

ઘણા વરસો પછી, વાંચ્યા વગરની કોઈ ચિઠ્ઠીમાં‘

તને ચાહું છું હું’ બસ આટલી ટાંચણ મળીઆવે

ફરે છે એક માણસ ગોધૂલી વેળા આ સડકો પર

કદાચિત ગામનું છૂટું પડેલું ધણ મળી આવે

ઘણુંયે નામ જેનું સાંભળેલું, ને હતી ખ્યાતિ

મળો એ શખ્સને, ને સાવ સાધારણ મળી આવે

ખખડધજ, કાટ લાગેલી, જૂની બિસમાર પેટીમાં

ખજાનો શોધવા બેસો અને બચપણ મળી આવે

– હિતેન આનંદપરા

कण्ठ कूपे क्षुत्पिपासानिवृति:योग ने यह बात खोज ली है कि किन्हीं सुनिश्चित केंद्रों पर संयम संपन्न करनेसे चीजें तिरोहित हो जाती है।

कण्ठ कूपे क्षुत्पिपासानिवृति:योग ने यह बात खोज ली है कि किन्हीं सुनिश्चित केंद्रों पर संयम संपन्न करनेसे चीजें तिरोहित हो जाती है।

उदाहरण के लिए अगर कोई कंठ पर संयम ले आए, तो उसे नक तो प्यास लगेगी, और न ही भूख लगेगी। इसी तरह से योगी लोग लंबे समय तक उपवास कर लेते थे।

महावीर के लिए ऐसा कहा जाता है। कि वे कई बार तीन महीने, चार महीने तक निरंतर उपवास करते थे। जब महावीर अपनी ध्यान और साधना में लीन थे, तो कोई बारह वर्ष की अवधि में करीब ग्यारह वर्ष तक वे उपवासे ही रहे, भूखे ही रहे।

तीन महीने उपवास करते और फिर एक दिन थोड़ा आहार लेते थे। फिर एक महीने उपवास करते और बीच में दो दिन भोजन ले लेते। इसी तरह से निरंतर उनके उपवास चलते रहते।

तो बारह वर्षों में कुल मिलाकर एक वर्ष उन्होंने भोजन किया; इसका अर्थ हुआ कि बारह दिन मेंएक दिन भोजन और ग्यारह दिन उपवास।वे ऐसा कैसे करते थे? कैसे वे ऐसा कर सकतेथे? यह बात तो असंभव ही मालूम होती है। आमआदमी के लिए असंभव है भी। लेकिन योगियों के पास कुछ रहस्य है।

अगर कोई व्यक्ति कंठ में एकाग्र रहता है…..थोड़ा कोशिश करके देखना। अब जब तुम्हें प्यास लगे, तो अपनी आंखें बंद कर लेना, और अपना पूरा ध्यान कंठ पर एकाग्र कर लेना। जब पूरा ध्यान उसी में स्थित हो जाता है। तो तुम पाओगे कि कंठ एकदम शिथिल हो गया।

क्योंकि जब तुम्हारा पूरा ध्यान किसी चीज पर एकाग्र हो जाता है। तो तुम उससे अलग हो जाते हो। कंठ में प्यास लगती है, और हमें लगता है जैसे मैं ही प्यासा हूं। अगर तुम प्यास के साक्षी हो जाओ, तो अचानक ही तुम प्यास से अलग हो जाओगे।

प्यास के साथ जो तुम्हारा तादात्म्य हो गया थ वह टूट जाएगा। तब तुम जानोंगे कि कंठ प्यासा है। मैं प्यासा नहीं हूं। और तुम्हारे बिना तुम्हारा कंठ कैसे प्यासाहो सकता है।

क्या तुम्हारे बिना शरीर को भूख लग सकती है? क्या किसी मृत आदमी को कभी भूख या प्यास लगती है? चाहे पानी की एक-एक बूंद शरीर से उड़ जाए, शरीर से पानी की एक-एक बूंद विलीन हो जाए, तो भी मृत व्यक्ति को प्यास का अनुभव नहीं हो सकता।

शरीर को प्यास अनुभव करने के लिए शरीर के साथ तादात्म्य चाहिए।इस प्रयोग को करके देखना। जब कभी तुम्हेंभूख लगे तो अपनी आंखे बंद कर लेना, और अपने कंठ तक गहरे उतर जाना।

फिर ध्यान से देखना। तुम देखोगें कि कंठ तुम से अलग है। और जैसे ही तुम देखोगें, कि कंठ तुम से अलग है। तो शरीर यह कहना बंद कर देगा कि शरीर भूखा है। शरीर भूखा हो नहीं सकता है, शरीर के साथ तादात्म्य ही भूख को निर्मित करता है।

पतंजलि योगसूत्र
ओशो

न तो दूसरे पर क्रोध फेंको, न अपने भीतर क्रोध को दबाओ, क्रोध को रूपांतरित करो। घृणा उठे, क्रोध उठे, ईर्ष्या उठे, इन शक्तियों का सदुपयोग करो। मार्ग के पत्थर भी, बुद्धिमान व्यक्ति मार्ग की सीढ़ियां बना लेते हैं।और तब तुम बड़े सुख को उपलब्ध होओगे।

न तो दूसरे पर क्रोध फेंको, न अपने भीतर क्रोध को दबाओ, क्रोध को रूपांतरित करो। घृणा उठे, क्रोध उठे, ईर्ष्या उठे, इन शक्तियों का सदुपयोग करो। मार्ग के पत्थर भी, बुद्धिमान व्यक्ति मार्ग की सीढ़ियां बना लेते हैं।और तब तुम बड़े सुख को उपलब्ध होओगे।

दो कारण से। एक तो क्रोध करके जो दुख उत्पन्न होता, वह नहीं होगा। क्योंकि तुमने किसी को गाली दे दी इससे कुछ सिलसिला अंत नहीं हो गया। वह दूसरा आदमी फिर गाली देने की प्रतीक्षा करेगा। अब उसके ऊपर क्रोध घिरा है, वह भी तो क्रोध करेगा।अगर तुमने क्रोध को दबा लिया तो तुम्हारे भीतर के स्रोत विषाक्त हो जाते हैं। क्रोध जहर है।

तुम्हारे जीवन का सुख धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।तुम फिर प्रसन्न नहीं हो सकते। प्रसन्नता खो ही जाती है। तुम हसोगे भीतो झूठ। ओंठों पर रहेगी हंसी; तुम्हारेप्राण तक उसका कंपन न पहुंचेगा। तुम्हारे हृदय से न उठेगी। तुम्हारी आंखें कुछ और कहेंगी, तुम्हारे ओंठ कुछ और कहेंगे।

तुम धीरे-धीरे टुकड़े-टुकड़े में टूट जाओगे।तो न तो दूसरे पर क्रोध करने से तुम सुखी हो सकते हो, क्योंकि कोई दूसरे को दुखी करके कब सुखी हो पाया! और न तुम अपने भीतर क्रोध को दबाकर सुखी हो सकतेहो, क्योंकि वह क्रोध उबलने के लिए तैयार होगा, इकट्ठा होगा।

और रोज-रोज तुम क्रोध को इकट्ठा करते चले जाओगे, भीतर भयंकर उत्पात हो जाएगा।किसी भी दिन तुमसे पागलपन प्रगट हो सकता है। किसी भी दिन तुम विक्षिप्त होसकते हो।

एक सीमा तक तुम बैठे रहोगे अपने ज्वालामुखी पर, लेकिन विस्फोट किसी न किसी दिन होगा। दोनों ही खतरनाकहैं।

ओशो,
एस धम्मो सनंतनो,
भाग -2

एक महिला आयी और मुझसे उसने पूछा, ‘‘मैं यहां ठहर जाऊं आपके पास?” मैंने कहा, ‘‘बिलकुल ठहर जाओ।मुझे पता नहीं था कि मनु भाई पटेल को बड़ी तकलीफ हो जायेगी इस बात से। अगर मुझे पता होता तो संसद-सदस्य को मैं तकलीफ नहीं देता। मैं किसी को तकलीफ नहीं देना चाहता।

एक महिला आयी और मुझसे उसने पूछा, ‘‘मैं यहां ठहर जाऊं आपके पास?” मैंने कहा, ‘‘बिलकुल ठहर जाओ।मुझे पता नहीं था कि मनु भाई पटेल को बड़ी तकलीफ हो जायेगी इस बात से। अगर मुझे पता होता तो संसद-सदस्य को मैं तकलीफ नहीं देता। मैं किसी को तकलीफ नहीं देना चाहता।

कहता, ‘‘देवी, तुम्हारे ठहरने से मुझे तकलीफ नहीं हैं, लेकिन मनु भाई पटेल को, बड़ौदा वालों को तकलीफ हो जायेगी। और किसी को तकलीफ देना अच्छा नहीं है। तो तुम्हें ठहरना है तो जाओ, मनु भाई के कमरे में ठहर जाओ; यहां मेरे पास किस लिए ठहरती हो।

”लेकिन मुझे पता ही नहीं था। पता होता तो यह भूल न होती। यह भूल हो गयी अज्ञान में। वह आकर सो गई मेरे कमरे में, लेकिन दूसरे दिन बड़ी तकलीफ हो गयी। मुझे पता चला कि मनु भाई को और उनके मित्रों को बहुत कष्ट हो गया है इस बात से कि मेरे कमरे में वह सो गयी।

मैं तो हैरान हुआ कि वह मेरे कमरे में सोयी, तकलीफ उनको हो गयी!लेकिन आदमी कंधे पर उन चीजों को ढोने लगता है, जिनको लेकर उसके भीतर कोई लड़ाईजारी रहती है। पता नहीं चलता, खयाल में नहीं आता कि यह सब भीतर क्या हो रहा है।

तो मैंने सोचा कि वह मनु भाई मुझे मिलें तो उनसे कहूं कि ‘सर, यू आर स्टिल कैरिग हर आन योर शोल्डर?’ अभी भी ढो रहे हैं उस औरत को अपने कंधों पर? मैने उनकोवहीं दिल्ली में कहा कि मनु भाई, पीछे तकलीफ होगी। पीछे यह बात चलेगी, मिटने वाली नहीं है।

तो यह बात अभी कर लें सबके सामने। तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या बात करनी है; कुछ हर्जा नहीं; जो हो गया, हो गया।”लेकिन मैं जानता था, बात तो उठेगी; बात तो करनी ही पड़ेगी। फिर वे संसद-सदस्य हैं। संसद-सदस्य को मुझ जैसे फकीरों के आचरण का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो मुल्क का आचरण बिगाड़ देंगे।

और फिर ऐसे संसद-सदस्य हैं, इसलिए तो मुल्क का आचरण इतना अच्छा है, नहीं तो कभी भी बिगड़ जाता! धन्य भाग है, हमारे मुल्क का आचरण कितना अच्छा है, अच्छे संसद-सदस्यों के कारण! जो पता लगाते हैं कि किसके कमरे में कौन सो रहा है! इसका हिसाब रखते हैं! ये लोक-सेवक हैं! लोक-सेवक ऐसा ही होना चाहिए।

मुझे तो जैसे खबर मिली, मैंने सोचा कि इस बार एलेक्शन के वक्त अगर मुझे वक्त मिला तोजाऊंगा बड़ौदा में, लोगों से कहूंगा कि मनु भाई को ही वोट देना, इस तरह के लोगोंकी वजह से देश का चरित्र ऊंचा है। लेकिन, यह जो दिमाग है, यह दिमाग कहां सेपैदा होता है? यह दिमाग कहां से आता है?यह भीतर क्या छिपा हुआ है…?यह भीतर है, दमन की लम्बी परम्परा। यह एक आदमी का सवाल नहीं है।

यह हमारे पूरे जातीय संस्कार का सवाल है; यह मनु भाई का सवाल नहीं है। वह तो प्रतिनिधि हैं-हमारे और आपके; हमारी सब बीमारियों के-वह जो हमारे भीतर छिपा है, उसके। हमारे भीतर क्या छिपा है…?

हमने एक अजीब सप्रेशन की धारा में अपनेको जोड़ रखा है! दबा रहे हैं, सब! वह दबायाहुआ घाव हो जाता है। वह घाव पीड़ा देता है। उस घाव की वजह से हमें बाहर वही-वहीदिखायी पड़ने लगता है, जो-जो हमारे भीतर है।

सारा जगत एक दर्पण बन जाता है।यह सप्रेशन की लम्बी धारा, यह दमन की लम्बी यात्रा व्यक्तित्व को नष्ट करतीहै। इसने जीवन के स्रोतों को पॉयजन से भर दिया है, जहर से भर दिया है। जीवन के सारे स्रोत विकृत और कुरूप हो गये हैं।

इसलिए यh तीसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हूं कि दमन से बचना।अगर जीवन को और सत्य को जानना हो, और कभीप्रभु के, परमात्मा के द्वार पर दस्तक देनी हो, तो दमन से बचना।

संभोग से समाधि की ओर–
49ओशो

एक आदमी के पास बहुत धन था। इतना कि अब और धन पाने से कुछ सार नहीं था। जितना था, उसका भी उपयोग नहीं हो रहा था। मौत करीब आने लगी थी। न बेटे थे, न बेटियां थीं, कोई पीछे न था। और

एक आदमी के पास बहुत धन था। इतना कि अब और धन पाने से कुछ सार नहीं था। जितना था, उसका भी उपयोग नहीं हो रहा था। मौत करीब आने लगी थी। न बेटे थे, न बेटियां थीं, कोई पीछे न था। और जीवन धन बटोरने में बीत गया।

गया वह तथाकथित महात्माओं के पास, कि मुझे कुछ आनंद का सूत्र दो। महात्मा, पंडित, पुरोहित, सब के द्वार खटखटाए। खाली हाथ गया, खाली हाथ लौटा। फिर किसी ने कहा कि एक सूफी फकीर को हम जानते हैं, शायद वही कुछ कर सके। उसके ढंग जरूर अनूठे हैं; इसलिए चौंकना मत।

उसके रास्ते उसके निजी हैं;उसकी समझाने की विधियां भी थोड़ी बेढब होती हैं। मगर अगर कोई न समझा सके, तो जिनका कहीं कोई इलाज नहीं है, उस तरह के लोगों को हम वहां भेज देते हैं। रहा होगा फकीर मेरे जैसा। जिनका कहीं कोई इलाज नहीं, उनके लिए सुनिश्चित यहां उपाय है।

उस धनी ने एक बड़ी झोली भरी हीरे—जवाहरातों से और गया फकीर के पास। फकीर बैठा था एक झाड़ के नीचे। पटक दी उसने झोली उसके सामने और कहा कि इतने हीरे—जवाहरात मेरे पास हैं, मगर सुख का कण भी मेरे पास नहीं।

मैं कैसे सुखी होऊं?फकीर ने आव देखा न ताव, उठाई झोली और भागा! वह आदमी तो एक क्षण समझ ही नहीं पाया कि यह क्या हो रहा है। महात्मागण ऐसा नहीं करते! एक क्षण तो ठिठका रहा, अवाक! फिर उसे होश आया कि इस आदमी ने तो लूट लिया, मारे गए, सारी जिंदगी भर की कमाई ले भागा।

हम सुख की तलाश में आए थे,और दुःखी हो गए। भागा, चिल्लाया कि लुट गया, बचाओ! चोर है, बेईमान है, भागा जा रहा है!पूरे गांव में उस फकीर ने चक्कर लगवाया। फकीर का गांव तो जाना—माना था, गली—कूंचे से पहचान थी, इधर से निकले, उधर से निकल जाए। भीड़ भी पीछे हो ली—भीड़ तो फकीर को जानती थी! कि जरूर होगी कोई विधि! गांव तो फकीर से परिचित था, उसके ढंगों से परिचित था।

धीरे—धीरे आश्वस्त हो गया था कि वह जो भी करे, वह चाहे कितना बेबूझ मालूम पड़े, भीतर कुछ राज होता है। लेकिन उस आदमी को तो कुछ पता नहीं था। वह पसीना—पसीना, कभी भागा भी नहीं था जिंदगी में इतना, थका—मांदा, फकीर उसे भगाता हुआ, दौड़ाता हुआ, पसीने से लथपथ करता हुआ वापिस अपने झाड़ के पास लौट आया।

जहां उसका घोड़ा खड़ा था। लाकर उसने थैली वहींपटक दी झाड़ के पीछे छिप कर खड़ा हो गया। वह आदमी लौटा; झोला पड़ा था, घोड़ा खड़ा था; उसने झोला उठा कर छाती से लगा लिया और कहा कि हे परवरदिगार! हे परमात्मा! तेरा शुक्र है! तेरा धन्यवाद! आज मुझ जैसा प्रसन्न इस दुनिया में कोई भी नहीं! फकीर झांका वृक्ष के उस तरफ से औरबोला, कहा : कुछ सुख मिला? यही राज है।

यही झोली तुम्हारे पास थी, इसी को लिए तुम फिर रहे थे, और सुख का कोई पता नहीं था। यही झोली वापिस तुम्हारे हाथ में है, लेकिन बीच में फासला हो गया, थोड़ी देर को झोली तुम्हारे हाथ में न थी, थोड़ी देर को झोली से तुम वंचित हो गए थे,अब तुम कह रहे हो—शर्म नहीं आती?—कि हे प्रभु, धन्यवाद तेरा कि आज मैं आह्लादित हूं, आज पहली दफा आनंद की थोड़ीझलक मिली।

बैठो घोड़े पर और भाग जाओ, नहीं तो मैं झोली फिर छीन लूंगा। रास्ते पर लगो! रास्ता तुम्हें मैंने बता दिया।लोग ऐसे हैं। लोग ही नहीं, सारा अस्तित्व ऐसा है। हम जिसे गंवाते हैं, उसका मूल्य पता चलता है। जब तक गंवाते नहीं तब तक मूल्य पता नहीं चलता। जो तुम्हें मिला है, उसकी तुम्हें दो कौड़ी कीमत नहीं है। जो खो गया, उसके लिए तुम रोते हो।

जो खो गया, उसका अभाव खलता है। जिंदगी तुम्हें मिली है और तुमने परमात्मा को धन्यवाद नहीं दिया।

राम दुवारे जो मरे, प्रवचन-६,
ओशो

जो कुछ है मेरे दिल में वो सब जान जाएगा । उसको जो मैं मनाऊँ तो वो मान जाएगा ।

जो कुछ है मेरे दिल में वो सब जान जाएगा ।
उसको जो मैं मनाऊँ तो वो मान जाएगा ।

बरसों हुए न उससे मुलाकात हो सकी,
दिल फिर भी कह रहा है, वो पहचान जाएगा ।

दामन तेरे करम का, न मुझको अगर मिला,
तू ही बता कहाँ मेरा अरमान जाएगा ।

'अंदाज़' बढ़ती जाएगी दीवानगी यूँ ही,
मेरी तरफ अगर न तेरा ध्यान जाएगा ।

- अनिल कुमार 'अंदाज़'

मन में रहे उमंग तो समझो होली है जीवन में हो रंग तो समझो होली है तन्हाई का दर्द बड़ा ही जालिम है प्रिय मेरा हो संग तो समझो होली है

मन में रहे उमंग तो समझो होली है
जीवन में हो रंग तो समझो होली है

तन्हाई का दर्द बड़ा ही जालिम है
प्रिय मेरा हो संग तो समझो होली है

स्वारथ की हर मैल चलो हम धो डालें
छिड़े अगर यह जंग तो समझो होली है

मीठा हो, ठंडाई भी हो साथ मगर
थोड़ी-सी हो भंग तो समझो होली है

निकले हैं बाहर लेकिन क्यों सूखे हैं
इन्द्रधनुष हो अंग तो समझो होली है

दिल न किसी का कोई यहाँ दुखाए बस
हो सुंदर ये ढंग तो समझो होली है

तन में रंग और भंग हो ज़ेहन में
पूरा घर हो तंग तो समझो होली है

दुश्मन को भी गले लगाना सीख ज़रा
जागे यही उमंग तो समझो होली है

रूखी-सूखी खा कर के भी मस्त रहो
बाजे मन का चंग तो समझो होली है

इक दिन सबको बुढऊ होना है 'पंकज'दिल हो लेकिन 'यंग' तो समझो होली है-

गिरीश पंकज