मेरे पास लोग आ जाते हैं— आध्यात्मिक किस्म के लोग—वे कहते हैं—आप हर किसी कोसंन्यास दे देते हैं! पात्रता तो सोचिए! मैं कहता हूँ—परमात्मा हर किसी को जीवन दे देता है और पात्रता नहीं सोचता, मैं बीच में पात्रता सोचनेवाला कौन?
अगर जीवन दिया जा सकता है अपात्रों को, तो संन्यास क्यों नहीं? अगर अपात्रों को परमात्मा जिलाए रखता है रोज—चोरों को भी, बेईमानों को भी—श्वास देता है, प्राणदेता है, आत्मा देता है, तो संन्यास क्यों नहीं?
जब परमात्मा ही हर किसी को देने को राजी है, तो मैं क्यों शर्तें लगाऊँ? जिसको लेना हो ले ले, जिसको न लेना हो न ले। हालाँकि यह सच है—केवल वे ही ले पाएँगे जो पात्र होंगे और वे वंचित रह जाएँगे जो अपात्र होंगे। क्योंकि देने से ही तुम्हें थोड़े मिल जाता है।
संतो मगन भया मन मेरा -
10ओशो