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Tuesday, 5 April 2016

मेरे पास लोग आ जाते हैं— आध्यात्मिक किस्म के लोग—वे कहते हैं—आप हर किसी कोसंन्यास दे देते हैं! पात्रता तो सोचिए! मैं कहता हूँ—परमात्मा

मेरे पास लोग आ जाते हैं— आध्यात्मिक किस्म के लोग—वे कहते हैं—आप हर किसी कोसंन्यास दे देते हैं! पात्रता तो सोचिए! मैं कहता हूँ—परमात्मा हर किसी को जीवन दे देता है और पात्रता नहीं सोचता, मैं बीच में पात्रता सोचनेवाला कौन?

अगर जीवन दिया जा सकता है अपात्रों को, तो संन्यास क्यों नहीं? अगर अपात्रों को परमात्मा जिलाए रखता है रोज—चोरों को भी, बेईमानों को भी—श्वास देता है, प्राणदेता है, आत्मा देता है, तो संन्यास क्यों नहीं?

जब परमात्मा ही हर किसी को देने को राजी है, तो मैं क्यों शर्तें लगाऊँ? जिसको लेना हो ले ले, जिसको न लेना हो न ले। हालाँकि यह सच है—केवल वे ही ले पाएँगे जो पात्र होंगे और वे वंचित रह जाएँगे जो अपात्र होंगे। क्योंकि देने से ही तुम्हें थोड़े मिल जाता है।

संतो मगन भया मन मेरा -
10ओशो

असंतोष का तर्क समझो। असंतोष की व्यवस्था समझो। असंतोष की व्यवस्था यह है कि जो मिल गया, वही व्यर्थ हो जाता है।

असंतोष का तर्क समझो। असंतोष की व्यवस्था समझो। असंतोष की व्यवस्था यह है कि जो मिल गया, वही व्यर्थ हो जाता है।

सार्थकता तभी तक मालूम होती है जब तक मिले नहीं। जिस स्त्री को तुम चाहते थे, जब तक मिले न तब तक बड़ी सुंदर। मिल जाए, सब सौंदर्य तिरोहित।

जिस मकान को तुम चाहते थे—कितनी रात सोए नहीं थे! कैसे—कैसे सपने सजाए थे!—फिर मिल गया और बात व्यर्थहो गयी। जो भी हाथ में आ जाता है, हाथ में आते ही से व्यर्थ हो जाता है।

इस असंतोष को तुम दोस्त कहोगे? यही तो तुम्हारा दुश्मन है। यह तुम्हें दौड़ाता है—सिर्फ दौड़ाता है—और जब भी कुछ मिल जाता है, मिलते ही उसे व्यर्थ कर देता है। फिर दौड़ाने लगता है। यह दौड़ाता रहा है जन्मों—जन्मों से तुम्हें। वह जो चौरासी कोटियों में तुम दौड़े हो, असंतोष की दोस्ती के कारण दौड़े हो।

दस हजार रुपए पास में हैं—क्या है मेरे पास, कुछ भी तो नहीं! लाख हो जाएँ तो कुछ होगा! लाख होते ही तुम्हारा असंतोष—तुम्हारामित्र, तुम्हारा साझीदार—कहेगा, लाख में क्या होता है?

ज़रा चारों तरफ देखो, लोगों ने दस—दस लाख बना लिए हैं। अरे मूढ़, तू लाख में ही बैठा है! अब लाख की कीमत ही क्या रही? अब गए दिन लाखों के, अब दिन करोड़ों केहैं। करोड़ बना! तो कुछ होगा।

संतो मगन भया मन मेरा
-7ओशो

મેં જે કાર્ય કર્યુ છે, તે જીવનભર સખત પરિશ્રમ કરીને અનેક મુસીબતો સહન કરીને અને વિરોધીઓની સામે ઝઝુમીને જ કરી શક્યો છું.

મેં જે કાર્ય કર્યુ છે,
તે જીવનભર સખત પરિશ્રમ કરીને અનેક મુસીબતો સહન કરીને અને વિરોધીઓની સામે ઝઝુમીને જ કરી શક્યો છું.

અમેરીકા અને ઈંગ્લેન્ડ માં બ્રેડનાં બે ટુકડા અને તે પણ ન મળે તો માત્ર પાણી પી,
અર્ધભુખ્યો રહીને અભ્યાસ કર્યો છે.

ધરમાં પૈસા ન હોય ત્યારે ત્રણ-ચાર રુપિયા જેવી નજીવી રકમ માટે હાથ લંબાવવો પડતો.

દારુણ ગરીબીને કારણે મારી સમ્યકદર્શિની પત્ની રમા અર્ધભુખી રહેતી.

આમ મેં મારું સમગ્ર જીવન મારા ગરીબ શોષિત-પીડિત બાંધવોને સમર્પિત કરી તેમને બંધારણીય અધિકારો અપાવ્યા છે.

મારા અનુયાયિઓએ મારા આ "ક્રાંતિરથ" ને આગળ ધપાવવો જોઈએ,
જો તેઓ અસમર્થ હોય,
તો તેને ત્યાં જ છોડી દેવો જ્યાં તે છે.

પરંતુ આ "ક્રાંતિરથ" ને કોઈપણ પરિસ્થિત માં પાછળ હટવા ન દેવો.

મારા વ્હાલા બાંધવો ને મારો આ જ સંદેશ છે.

- ડૉ.આંબેડકર