दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं--संसारीऔर संन्यासी। संसारी का अर्थ है, जोअभी इस चेष्टा में संलग्न है कि भुला लूंगा, कोई न कोईरास्ता खोज लूंगा कि भूल जाएगी बात; और थोड़ा धनहोगा, और थोड़ा बड़ा मकान होगा, और सुंदर स्त्रीहोगी, बच्चा पैदा हो जाएगा, लड़के कीनौकरी लग जाएगी, बच्चे कीशादी हो जाएगी, बच्चों के बच्चे होंगे--कुछ रास्ता होगा कि मैं भूल जाऊंगा और यह झंझट मिटजाएगी।
झंझट को भूलने में संसारी और झंझटखड़ी करता जाता है। इसलिए ज्ञानियों ने संसार कोप्रपंच कहा है। मिटाने के लिए चलते हो, औरबन जाता है।सुलझाने चलते हो, और उलझ जाता है। जितना सुलझानेकी कोशिश करते हो उतनी हीगांठ उलझती जाती है; उतनीही मुश्किलें खड़ी होतीचली जाती हैं।
एक समाधान खोजते हो,एक समाधान से दस समस्याएं और खड़ी होजाती हैं। और जो एक जिसे हल करने चले थे वह तोअपनी जगह बनी रहती है,दस नई खड़ी हो जाती हैं। ऐसे विस्तारहोता चला जाता है। मरते-मरते तक आदमी अपनेही जाल में फंस जाता है। उसने ही रचाथा। उसने ही ये गङ्ढे खोदे थे। उसने बड़ीआशा से ये जंजीरें ढाली थीं।उसे खयाल भी न था कि ये मेरे ही हाथ मेंपड़ जाएंगी।
मैंने सुना है रोम में एक बहुत प्रसिद्ध लोहार हुआ।उसकी प्रसिद्धि सारी दुनिया मेंथी, क्योंकि वह जो भी बनाता था वहचीज बेजोड़ होती थी। उसलोहार की दुकान पर बनी तलवार का कोईसानी न था। और उस लोहार की दुकान परके सामानों का सारे जगत् में आदर था; दूर-दूर के बाजारों मेंउसकी चीजें बिकतीथीं, उसका नाम बिकता था।
फिर रोम पर हमला हुआ।और रोम में जितने प्रतिष्ठित लोग थे, पकड़ लिए गए। रोम हार गया।वह लोहार भी पकड़ लिया गया। वह तोकाफी ख्यातिलब्ध आदमी था। उसके बड़ेकारखाने थे। और उसके पास बड़ी धन-सम्पत्तिथी, बड़ी प्रतिष्ठा थी। वहभी पकड़ लिया गया। तीस रोम के प्रतिष्ठितजो सर्वशत्तिमान आदमी थे पकड़ कर दुश्मनों नेजंजीरों और बेड़ियों में बांध कर पहाड़ों में फेंक दिया मरनेके लिए। जो उनतीस थे वे तो रो रहे थे, लेकिन वहलोहार शांत था।
आखिर उन उनतीसों ने पूछा कि तुम शांतहो, हमें फेंका जा रहा है जंगली जानवरों के खाने केलिए! उसने कहा, फिक्र मत करो, मैं लोहार हूं। जिंदगीभर मैंने बेड़ियां और हथकड़ियां बनाई हैं, मैं खोलना भीजानता हूं। तुम घबड़ाओ मत। एक दफा इनको फेंककर चले जानेदो, मैं खुद भी छूट जाऊंगा, तुम्हें भी छोड़लूंगा। तुम डरो मत।तो लोगों को हिम्मत आ गई, आशा आ गई। बात तो सचथी, उससे बड़ा कोई कारीगर न था। जरूरजिंदगीभर ही लोहे के साथ खेल खेला है,तो जंजीरें न खोल सकेगा! खोल लेगा।
यह बातभरोसेकी थी। फिर दुश्मन उन्हें फेंककर गङ्ढोंमें, चले गए। वे सब घिसट कर किसी तरह उस लोहारके पास पहुंचे। पर वह लोहार रो रहा था। उन्होंने पूछा कि मामलाक्या है? तुम और रो रहे हो? और हमने तो तुमपर भरोसा कियाथा। और हम तो तुम्हारी आशा से जीतेरहे अब तक। हम तो मर ही गए होते। तुम क्यों रोरहे हो? हुआ क्या? अब तक तो तुम प्रसन्न थे।
उसने कहा कि मैं रो रहा हूं इसलिए कि मैंने जब गौर सेजंजीरें देखीं तो उन पर मेरे हीहस्ताक्षर हैं, वे मेरी ही बनाई हुई हैं।मेरी बनाई जंजीरें तो टूट हीनहीं सकतीं। ये किसी औरकी बनाई होती तो मैंने तोड़ दीहोतीं। लेकिन यही तो मेरीकुशलता है कि मेरी बनाई जंजीर टूटही नहीं सकती। असंभव है।यह नहीं हो सकता। मरना ही होगा।उस लोहार की कहानी जब मैंनेपढ़ी तो मुझे याद आयाः
यह तो हर संसारीआदमी की कहानी है।आखीर में तुम एक दिन पाओगे कि तुम्हारीही जंजीरों में फंसकर तुम मर गए। तुमनेबड़ी कुशलता से उनको ढाला था। तुम्हारे हस्ताक्षर उनपर हैं। तुम भलीभांति पहचान लोगे कि यह अपनेही हाथ का जाल है। इस पूरे सिद्धांत का नाम कर्महै। तुम ही बनाते हो। तुम्हीं येसींखचे ढालते हो। तुम्हीं ये पिंजरे बनातेहो। फिर कब तुम इनमें बंद हो जाते हो, कब द्वार गिर जाता है,कब ताले पड़ जाते हैं, तुम्हें समझ में नहीं आता। तालेभी तुम्हारे बनाए हुए हैं।
शायद तुमनेकिसी और कारण से दरवाजा लगा लिया था--सुरक्षा केलिए। लेकिन अब खुलता नहीं। शायद हाथ में तुमनेजंजीरें पहन ली थीं, आभूषणसमझ कर। अब जब पहचान आई है तो अब खुलतीनहीं, क्योंकि आभूषण तो नहींजंजीरें थीं।जिनको तुमने मित्र समझा था वे शत्रु सिद्ध हुए हैं। और जिनकोतुमने सोचा था कि जीवन के मार्ग को प्रशस्त करने केलिए बना रहे है, उनसे ही नरक का रास्ता प्रशस्तहुआ।
कहावत हैः नरक का रास्ता शुभ आकांक्षाओं से भरा पड़ा है।अच्छी-अच्छी आकांक्षाएं करकेही तो आदमी नरक का रास्ता तय करताहै। नरक का रास्ता तुम्हारे सपनों से ही पटा है।तुम्हारी योजनाओं के पत्थर ही नरक सेरास्ते पर लगे हैं; उन्हीं से नरक का रास्ता बना है।
~~~ ओशो —
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