ओशो से किया गया पृश्न और उसका उत्तरपहला प्रश्न :आपने कहा कि सब आदर्श गलत हैं। लेकिन क्या अपने गंतव्य को, अपनी नियति को पाने का आदर्श भी उतना ही गलत है?
आदर्श गलत है; किस बात को पाने का आदर्शहै, इससे कोई भेद नहीं पड़ता। आदर्श का अर्थ है : भविष्य में होगा। आदर्श का अर्थ है : कल होगा। आदर्श का अर्थ है. आजउपलब्ध नहीं है। आदर्श स्थगन है—भविष्य के लिए।जो तुम्हारी नियति है उसे तो आदर्श बनाने की कोई भी जरूरत नहीं;
वह तो होकरही रहेगा, वह तो हुआ ही हुआ है।नियति का अर्थ है, जो तुम्हारा स्वभाव है। इस क्षण जो पूरा का पूरा तुम्हें उपलब्ध है, वही तुम्हारी नियति है। सब आदर्श नियति—विरोधी हैं।आदर्श का अर्थ ही यह होता है कि तुम वह होना चाहते हो जो तुम पाते हो कि हो न सकोगे।
गुलाब तो गुलाब हो जाता है, कमल कमल हो जाता है। कमल के हृदय में कहीं कोई आदर्श नहीं है कि मैं कमल बनूं। अगर कमल कमल बनना चाहे तो पागल होगा, कमल नहीं हो पाएगा।जो तुम हो वह तो तुम हो ही—बीज से ही हो। उससे तो अन्यथा होने का उपाय नहीं है।इसलिए नियति के साथ, स्वभाव के साथ आदर्श को जोड़ना तो विरोधाभास है। पर हमारे मन पर आदर्श की बड़ी पकड़ है।
सदियों से हमें यही सिखाया गया है कि कुछ होना है, कुछ बनना है, कुछ पाना है। दौड़ सिखाई गई, स्पर्धा सिखाई गई, वासनासिखाई गई—अनत— अनंत रूपों में।अष्टावक्र का उदघोष यही है कि जो तुम्हें होना है वह तुम हो ही। कुछ होना नहीं है, जीना है।
इस क्षण तुम्हेंसब उपलब्ध है। एक क्षण भी टालने की कोई जरूरत नहीं है। एक क्षण भी टाला तो भ्रांति में पड़े। तुम जीना शुरू करो—तुम परिपूर्ण हो।समस्त अध्यात्म की मौलिक उदघोषणा यही है कि तुम परिपूर्ण हो, जैसे तुम हो। होने को कुछ परमात्मा ने बाकी नहीं छोड़ा है। और जो परमात्मा ने बाकी छोड़ा है, उसे तुम पूरा न कर पाओगे। जो परमात्मा नहीं कर सका, उसे तुम कर सकोगे—यह अहंकार छोड़ो। जो हो सकता था, हो गया है। जो परमात्मा के लिए संभव था, वह घट गया है।
तुम जीना शुरू करो, टालो मत।परम अध्यात्म की घोषणा यही है कि उत्सवकी घड़ी मौजूद है, तुम तैयारी मत करो। एक तैयारी करने वाला चित्त है जो उत्सवमें कभी सम्मिलित नहीं होता, सदा तैयारी करता है. यह तैयार कर लूं वह तैयार कर लूं वह हमेशा टाइम—टेबल देखता रहता है; कभी ट्रेन पर सवार नहीं होता। ट्रेन सामने भी खड़ी हो तो वह टाइम—टेबल में उलझा होता है। वह सदा बिस्तर बांधता है, लेकिन कभी यात्रा पर जाता नहीं। वह सदा मकान बनाता है, लेकिनकभी उसमें रहता नहीं।
वह धन कमाता है, लेकिन धन को कभी भोगता नहीं। बस वह तैयारी करता है।तुम ऐसे तैयारी करने वाले करोड़ों लोगों को चारों तरफ देखोगे—वही हैं, उन्हीं की भीड़ है। वे सब तैयारी कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, कल भोगेंगे, परसों भोगेंगे।
इनमें सांसारिक भी हैं, इनमें आध्यात्मिक जिनको तुम कहते हो वे भी सम्मिलित हैं—तुम्हारे तथाकथित साधु—संत और महात्मा। वे कहते हैं यहां क्या रखा है, स्वर्ग में भोगेंगे! उनका कल और भी आगे है : मरने केबाद भोगेंगे यहां क्या रखा है! यहां तो सब क्षणभंगुर! यहां तो सिर्फ पीड़ित होना है, परेशान होना है और कल की तैयारी करनी है।
लेकिन तुमने देखा, कल कभी आता नहीं! कल कभी आया ही नहीं। इसलिए मैं तुमसे कहताहूं : स्वर्ग कभी आता नहीं, कभी आया ही नहीं। स्वर्ग तो कल का विस्तार है। कल ही नहीं आता, स्वर्ग कैसे आएगा?जिस आदमी ने कल में अपने स्वर्ग को देखा है, उसका आज नर्क होगा—बस इतना पक्का है। कल तो आएगा नहीं। और जब भी कल आएगा आज होकर आएगा। और अगर तुमने यह गलत आदत सीख ली कि तुम कल में ही नजर लगाए रहे तो तुम आज को सदा चूकते जाओगे।
और जब भी आएगा आज आएगा; जो भी आएगा आज की तरह आएगा। और तुम्हारी आंखें कल पर लगी रहेंगी। कल कभी आता नहीं। ऐसे तुम वंचित हो जाओगे। ऐसे तुम,जो मिला था उसे न भोग पाओगे। जो हाथ में रखा था उसे न देख पाओगे। जो मौजूद था, जोनृत्य—गीत चल ही रहा था, उसमें तुम सम्मिलित न हो पाओगे।
अध्यात्म की आत्यंतिक घोषणा यही है कि समय के जाल में मत पड़ो। समय है मन का जाल। अस्तित्व मौजूद है—उतरो, छलांग लो! तैयारी सदा से पूरी है, सिर्फ तुम्हारी प्रतीक्षा है। तुम नाचो! तुम यह मत कहो कि कल नाचेंगे, और तुम यह मत कहो कि आयन टेढ़ा है, नाचे कैसे? जिसे नाचना आता है, वह टेढ़े आंगन में भी नाच लेता है। और जिसे नाचना नहीं आता, अपान कितना ही सीधा, चौकोर हो जाए तो भी नाच नपाएगा।
अष्टावक्र: महागीता–
(भाग–2)प्रवचन–24