NEWS UPDATE

Blogger Tips and TricksLatest Tips And TricksBlogger Tricks

Tuesday, 15 March 2016

ओशो वैश्या के घर भिक्षु का चातुर्मासबुद्ध के जीवन में ऐसा उल्लेख है। एक भिक्षु बुद्ध कागांव से गुजरा, गांव की नगरवधू ने, वेश्या ने उस भिक्षुको आते देखा, भिक्षा मागते देखा। वह थोड़ीचकित हुई, क्योंकि वेश्याओं के मुहल्ले में भिक्षुभिक्षा मांगने आते नहीं थे।

यह भिक्षु कैसे यहां आगया? और यह भिक्षु इतना भोला और निर्दोषलगता था।इसीलिए आ भी गया था।

सोचा ही नहीं किवेश्याओं का मौहल्ला कहां है! नहीं तो साधु पहलेपूछ लेते हैं, वेश्याओं का मुहल्ला कहाँ है?

जहां नहींजाना, वहां का पहले पक्का कर लेना चाहिए। जानेवाला भी पता कर लेता है, न जाने वाला भी पताकर लेता है।

दोनों के मन वहीं अटके हैं’।वह वेश्या नीचे उतरकर आ गयी। उसने इससेज्यादासुंदर व्यक्ति कभी देखा नहीं था।

संन्यस्त से ज्यादासौंदर्य हो भी नहीं सकता। संन्यास का सौंदर्यअपरिसीम है। क्योंकि व्यक्ति अपने मेंथिर होता है।

सारी उद्विग्नता खो गयी होती है। सारे ज्वर खोगए होते हैं। एक गहन शांति और शीतलता होती है।

ध्यान की गंध होती है। अनासक्ति का रस होता है।विराग की वीणा बजती है।तो सन्यासी से ज्यादा सुंदर कोई व्यक्ति कभीहोता ही नहीं।

इसलिए तो बुद्धों के सौंदर्य को,सदियां बीत जाती हैं, भूला नहीं जा सकता। औरजितनी स्त्रियां संन्यासियों के सौंदर्य पर मोहितहोती हैं, उतनी किसी के सौंदर्य पर मोहित नहींहोतीं।

महावीर के भिक्षु थे दस हजार, भिक्षुणियांथीं तीस हजार। वही अनुपात बुद्ध का था।वहीअनुपात जीसस का भी था। जहा एक पुरुष आया,वहां तीन स्त्रिया आयीं।

इतना, तीन गुना फर्कथा। स्वभावत: स्त्रियां निष्कलुष सौंदर्य को जल्दीपरख पाती हैं, ज्यादा आंदोलित हो जाती हैं,ज्यादा भावाविष्ट हो जाती हैं।

उस वेश्या ने इस भिक्षु को कहा, इस वर्षाकाल तुममेरे घर रुक जाओ। चार महीने वर्षा के बौद्ध भिक्षुनिवास करते थे एक स्थान पर। तो उसने कहा, इसवर्षाकाल तुम मेरे घर रुक जाओ।

मैं सब तरह तुम्हारीसेवा करूंगी। उस भिक्षु ने कहा, मैं जाकर अपने गुरु कोपूछ लूं। कहा उन्होंने, कल हाजिर हो जाऊंगा। नहींकहा, तब मजबूरी है।

भिक्षु ने जाकर बुद्ध को पूछा भरी सभा में, उनके दसहजार भिक्षु मौजूद थे, उसने खड़े होकर कहा कि मैंएक गांव में गया, एक बड़ी सुंदर स्त्री ने निमंत्रणदिया है।

दूसरे भिक्षु ने खड़े होकर कहाकि क्षमाकरना, वह सुंदर स्त्री नहीं है, वेश्या है। सारे भिक्षुओंमें खबर पहुंच गयी थी। सारे भिक्षु उत्तेजित हो रहेथे।

उस भिक्षु ने कहा, मुझे कैसे पता हो कि वह वेश्याहै या नहीं है? फिर इससे मुझे प्रयोजन क्या? उसनेनिमंत्रण दिया है,

आपकी आज्ञा हो तो चारमहीने उसके घर वर्षाकाल निवास करूं। आपकी आशान हो तो बात समाप्त हो गयी।

और बुद्ध ने आज्ञा दी कि तू वर्षाकाल उसके घरबिता। आग लग गयी और भिक्षुओं में। उन्होंने कहा,यह अन्याय है।

यह भ्रष्ट हो जाएगा। फिरतो हमेंभी इसी तरह की आशा चाहिए। बुद्ध ने कहा, इसनेआशा मांगी नहीं है, मुझ पर छोड़ी है।

इसने कहा नहींहै कि चाहिए। और मैं इसे जानता हूं। चार महीने बादसोचेंगे। जाने भी दो। अगर वेश्या इसके संन्यास कोडुबा ले, तो संन्यास किसी काम का ही न था।

अगरयह वेश्या को उबार लाए, तो ही संन्यास का कोईमूल्य है। तुम्हारे संन्यास की नाव में अगर एक वेश्याभी यात्रा न कर सके, तो क्या मूल्य है!

वह भिक्षु वेश्या के घर चार महीने रहा।चार महीनेबाद आया तो वेश्या भी पीछे चली आयी। उसनेदीक्षा ली, वह संन्यस्त हुई।

बुद्ध ने पूछा, तुझे किसबात ने प्रभावित किया? उस वेश्या ने कहा, आपकेभिक्षु के सतत अप्रभावित रहने ने। आपका भिक्षुकिसी चीज से प्रभावित होता ही नहीं

मालूमपड़ता। जो मैंने कहा, उसने स्वीकार किया। संगीतसुनने को कहा, तो सुनने को राजी। नृत्य देखने कोकहा, तो नृत्य देखने को राजी। जैसे कोई चीज उसेछूती नहीं।भीतर घाव न हो तो कोई चीज छूती नहीं।

एस धम्मो सनंतनो ( भाग 5 )

No comments:

Post a Comment