जितना काम दमित होगा, उतने बलात्कार होंगेअखबारों में खबर थी कि गुंडे बंबई में एक स्त्री को उसके पतिऔर बच्चों से छीनकर लेगए और धमकी दे गए कि अगर पुलिस को खबरकी तो पत्नी का खात्मा कर देंगे। रात भर पति परेशान रहा, सो नहीं सका। कैसे सोएगा? प्रतीक्षा करता रहा!
सुबह-सुबह पत्नीआई।इसके पहले कि पति कुछ बोले, पत्नी ने कहा कि पहले मैं स्नान कर लूँ, फिर पूरी कहानीबताऊँ। वह बाथरूम में चली गई। वहाँ उसने कैरोसिन का तेल अपने ऊपर डाल कर आग लगा लीऔर खतम हो गई।अब सब तरफ निंदा हो रही है उन बलात्कारियों की। निंदाहोनी चाहिए।लेकिन ये लक्षण हैं। ये मूल बीमारियाँ नहीं हैं। बलात्कारियों की अगर तुम ठीक-ठाक खोज करोगे तो इनके पीछे महात्मागण मिलेंगे मूल कारण में। और उनकी कोई फिक्र नहीं करता।
वही महात्मागण निंदा कर रहे हैं कि पतन हो गया, कलियुगआ गया, धर्म भ्रष्ट हो गया। इन्हीं नासमझों ने यह उपद्रव खड़ाकरवा दिया है। जब तुम काम को इतना दमित करोगे तो बलात्कार होंगे। अगर काम को थोड़ी सी स्वतंत्रता दो, अगर काम को तुम जीवन की एकसहज सामान्य साधारण चीज समझो, तो बलात्कार अपने आप बंद हो जाए।
क्योंकि न होगा दमन, न होगा बलात्कार।अब ये जो गुंडे इस स्त्री को उठा ले गए, ये स्वभावतः ऐसे लोग नहीं हो सकते जिन्होंने जीवन में स्त्री का प्रेम जाना हो। ये ऐसे लोग हैं जिनको स्त्री का प्रेम नहीं मिला। और शायद इनको स्त्री काप्रेम मिलेगा भी नहीं। स्त्री का प्रेम ये जबरदस्ती छीन रहे हैं। जबरदस्ती छीनने को कोई तभी तैयार होताहै जब उसे सहज न मिले। और प्रेम का तो मजा तब है जब वह सहज मिले।
जबरदस्ती लिए गए प्रेम का कोई मजा ही नहीं होता, कोई अर्थ ही नहीं होता।तो सहज तो प्रेम के लिए सुविधा नहींजुटाने देते तुम। और अगर सहज प्रेम की सुविधा जुटाओ तो कहते हो- समाज भ्रष्ट होरहा है। ये समाज भ्रष्ट हो रहा है चिल्लाने वाले लोग ही बलात्कारियों को पैदा करते हैं। और फिर दूसरी तरफ भी गौर करो। किसी ने भी इस तरफ गौर नहीं किया। यहस्त्री घर आई, इसने आग लगा कर अपने को मार डाला, इसकी निंदा किसी ने भी नहीं की।
बलात्कारियों की निंदा की। जरूर की जानी चाहिए। लेकिन इस स्त्री ने भी मामले को बहुत भारी समझ लिया। क्योंकिइसको भी समझाया गया है, इसका सब सतीत्व नष्ट हो गयां।क्या खाक नष्ट हो गया! सतीत्व आत्माकी बात है, शरीर की बात नहीं। क्या नष्ट हो गया? जैसे आदमी धूल से भर जाता है तो स्नान कर लेता है, तो कोई शरीर नष्ट थोड़े ही हो गया, कि शरीरगंदा थोड़े ही हो गया।यहगलत हुआ। मैं इसके समर्थन में नहीं हूँ कि ऐसा होना चाहिए।
लेकिन मैं इसके भी विरोध में हूँ कि किसी स्त्री को हम इस हालत में खड़ा कर दें कि उसको आग लगा कर मरना पडे। इसकेलिए हम भी जिम्मेवार हैं। बलात्कारी जिम्मेवार हैं और हम भी जिम्मेवार हैं। क्योंकि अगर यह स्त्री जिंदा रह जाती तो इसकोजीवन भर लांछन सहनापड़ता।
जो इसको लांछन देते, वे सब इसके पापमें भागीदार हुए। अगर यह स्त्री जिंदा रहजाती तो इसका पति भी इसको नीची नजर से देखता, इसके बच्चे भी इसको नीची नजरसे देखते, इसके पड़ोसी भी कहते कि अरे यह क्याहै, दो कौड़ी कीऔरत! हाँ, अब वे सब कह रहे हैं कि सती हो गई! बड़ा गजब का कामकिया! बड़ामहान कार्य किया! अब सती का चौरा बना देंगे। चलो एक और ढांढन सती हो गई! अब इनकी झाँकी सजाएँगे। वही मूढ़ता।
तुम सब जिम्मेवार हो इस हत्या में। बलात्कार करवाने में जिम्मेवार हो। इस स्त्री की हत्या में जिम्मेवार हो। इस स्त्री की भीनिंदा होनी चाहिए। इसमें ऐसा क्या मामला हो गया? इसका कोई कसूर न था। यह कोई स्वेच्छा से उनके साथ गई नहीं थी। अगर कोई जबरदस्ती तुम्हारे बाल काट ले रास्ते में, तो क्या तुम आग लगा कर अपने को मार डालोगे? कि हमारा सब भ्रष्ट हो गया! हमारा मामला ही खतम हो गया!.
रहिमन धागा प्रेम का
ओशो