मैं जब पढ़ता था। तो मेरे एक प्रोफेसर थे उनकी काम पर बड़ी नजर थी। उनके घर भी जाएंतो पहले ही वह पूछते थे कैसे आए? पहली दफाआए थे तो मैं रास्ते से निकला था तो मैं उनके घर गया,तो उन्होंने कहा कैसे आए।
मैंने कहा मैं वापस लौटा जाता हूं। क्योंकि कैसे का कोई उत्तर नहीं, मैं किसी काम से अया नहीं। और आप सोचते होंगे बिना काम आना ठीक नहीं। तो बात खतम हो गई आगे कभी आऊँगा नहीं।
लेकिन इतना मैं कह जाता हूं कि जो काम से आते है वह आपके पास नहीं आते, वह अपने काम से आते है। आप गौण होते है, काम ही सब कुछ होता है। आप केवल साधन होते है। काम ही सब कुछ होता है।
जिस आदमी से हमारा काम का संबंध है हमने उसे अभी आदमी भी स्वीकार नहीं किया, इंस्टुमेंट माना हुआ है। जिससे हमारा काम का संबंध नहीं है उससे ही हमारा प्रेम का संबंध शुरू हो जाता है। और प्रेम अकेली एक चीज है जो इस दुनिया में काम नहीं है।
बाकी फिर सभी काम है। सभी काम है। मगर हमारा सबका सोचना ऐसा हो गया है। हर चीज को हम लक्ष्य और उद्देश्य और प्रयोजन उसमें बाँध के देखते है। अर्थहीन जैसे कुछ भी नहीं है।
ओशो टाइम्स वार्षिक अंक
1996