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Monday, 4 April 2016

આંખોમાં વસનારા જ રડાવી જાય છે... દસ્તુર તો જુઓઆ

આંખોમાં વસનારા જ રડાવી જાય છે...

દસ્તુર તો જુઓઆ દુનિયાનો
પોતાના મો ચડાવી બેઠા ને
પારકા હસાવી જાય છે...

જિંદગી તુ જેમ જેમ ઓછી થતી જાય છે

એમ એમ વધારે ગમતી જાય છે....

કયાં સમય છે આપણી પાસે
જીવતા માણસ સાથે
બેસવાનો,

આપણે તો માણસ મર્યા પછી જ "બેસવા" જઈએ છીએ.

જિંદગી તુ જેમ જેમ ઓછી થતી જાય છે
એમ એમ વધારે ગમતી જાય છે

પડે સવારને ઉઠે છે સૌ કોઈ પણ, જાગતું કોઈ નથી, યાદ તો બધા જ છે કાયમ પણ, સ્મરણ કોઈ નું નથી

પડે સવારને ઉઠે છે સૌ કોઈ પણ, જાગતું કોઈ નથી,
યાદ તો બધા જ છે કાયમ પણ, સ્મરણ કોઈ નું નથી.

માંગતા તો આવડે જ સૌ ને પણ, અધિકાર કોઈને નથી,
સ્વર્ગવાસી તો થવું છે હરેકને પણ, મરવું કોઈને નથી.

છે ભીડ ચિક્કાર મંદિર-મસ્જિદોમાં પણ, ધર્મમાં કોઈ નથી.
છપ્પન ભોગ ને ,બત્રીસ જાત ના ભોજન પણ, લિજ્જત નથી 

કરે લાડ ને હરખપદુડા સૌ કોઈ પણ, લાગણી કોઈને નથી,
રઘવાયા થઈને દોડે ચારેબાજુ પણ, કોઈ એક દિશા નથી.

જય જયકાર થાય વિશ્વભરમાં પણ, દેશમાં કોઈ ઈજ્જત નથી.
ભલે I LOVE YOU પર કરે PHD પણ, પ્રેમ કોઈને પણ નથી.

છો બંધાયા પ્રેમ ના પ્રતિક એના નામ... પણ એ હવે દિલદાર માં નથી.

છો બંધાયા પ્રેમ ના પ્રતિક એના નામ...
પણ એ હવે દિલદાર માં નથી.

થયા હજારો સર કલમ એના નામ પર.. 
પણ એ હવે ઈમાનદાર નથી.

નામ જેનું હતું દર્દના ઉપચાર માટે..
પણ હવે પહેલા જેવું સ્મરણ નથી.

દુરથી થતો જેને અણસાર આહ્ટનો..
હવે એને આવકારનો ઉમળકો નથી

દિન-રાતનો  સંગાથ જેને લાગતો ક્ષણભરનો..
અંતહીન  શૂન્યઅવકાશ તેને ગણકાર નથી.

સારી હતી ગરજ જેને દ્વારિકાધીશની..
કહે છે હવે એ દયાવાન નથી .

એક યુગ લગતી વિયોગની એક ક્ષ્રણ જેને..
તે હવે તારો તલબગાર નથી.

ન્યોછાવર કર્યું જેને જગતભરનું સમ્રાજ્ય..
ને હવે રહેવા તેને ઘર બાર નથી.

અન્ન જળ નો પર્યાય હતું જેનું  નામ..
ને હવે એ વફાદાર નથી.

ઘર  બાળી ને કર્યા જેને કાયમ તીરથ..
ને કહે છે તેને કે તારી ત્રેવડ નથી.

BABA SAHEB

"अन्याय" से लड़ते हुए
आपकी "मौत" हो जाती है तो,
आने वाली पीढियां उसका "बदला" अवश्य लेगी.
परंतु यदि "सहते-सहते मर जाओगे तो,
आगे की पीढियां भी "गुलाम" बनी रहेंगी..!!

                        डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर

એમ તારી ઉપર મરે કોઈ, ખુદ તને પણ અમર કરે કોઈ.

એમ તારી ઉપર મરે કોઈ,
ખુદ તને પણ અમર કરે કોઈ.

જે છે દાતાર ઓળખતા નથી,
હાથ ક્યાં ક્યાં જઈ ધરે કોઈ.

તારી સામે જ નાઝ હો ઓ ખુદા,
તારી સામે જ કરગરે કોઈ.

ચારે બાજુ બધું જ સરખું છે,
કઈ દિશામાં કદમ ભરે કોઈ.

થાક એનો કદી ઉતરતો નથી,
જ્યારે બેસી રહે ઘરે કોઈ.

એક ખૂણો નિરાંતનો બસ છે,
આખી દુનિયા શું કરે કોઈ.

પ્રાણ એક જ છે કંઈક છે હક્ક્દાર,
કોની ઉપર કહો મરે કોઈ.

રૂપના બે પ્રકાર જોયા છે,
ચાહ રે કોઈ, વાહ રે કોઈ.

એ જ હિંમતનું કામ છે ઓ ‘મરીઝ’,
ખુદના ચારિત્રથી ડરે કોઈ.

- 'મરીઝ'

" जय भीम " मत भूलिये बाबा साहब को उस इंसान को न भूलिये, जिसने संविधान बनाया था !

" जय भीम "
मत भूलिये बाबा साहब को उस इंसान को न भूलिये, जिसने संविधान बनाया था !

जानवरों से बदतर थे हम, उसने हमे इन्सान बनाया था !!

न पढने का हक था, न लिखने का हक था हमें !

न जीने की आजादी थी, न मरने का हवा था हमें !!

खुद चप्पलो पर बैठकर पढे और हमें विद्वान बनाया था !

उस इन्सान को न भूलिये, जिसने संविधान बनायाथा !!

वो भी जी सकते थे, एक आम इंसान की तरह!

जैसे आजकल हम जीते है, एक दूसरे से अंजान की तरह !!

लेकिन उसने दबाकर अपने अरमानो की,

दिल में हमारे लिए कुछ करने का अरमान जगाया था !

उस इंसान को न भूलिये, जिसने संविधान बनाया था !!

किया था सामना सारे जमाने का, सोचिए कितनी हिम्मत थी उसमें !

सबसे आगे निकल गया निहत्था, सोचिए कितनी ताकत थी उसमें !!

अपने उद्देश्य के लिए द्रढ इच्छा व द्रढ सन्कल्प और कलम को उसने हथियारबनाया था !

उस इंसान को न भूलिए, जिसने संविधान बनाया था !!

BABA SAHEB

बुद्ध धम्म की विजय।सम्राट अशोक महान की विजय।बोधिसत्व, भारत रत्न बाबासाहेब की विजय।

ये भारतीय संविधान की विजय है।आज जरूरत है बाबासाहब के कारवां को आगे बढ़ाने की और इतिहास के सही जानकारी की जिससे हमारे लोग अनभिज्ञ है ।

बाबासाहब ने सारी व्यवस्था संविधान के माध्यम से हमारे लिए कर रखी है । जरूरत है बस उसे अमलीजामा पहनाने की ।हमारे लोगो ने बाबासाहब के उस कोटेशन को कभी गम्भीरता से क्यों नहीं लिया ।

ये बात मुझे आज तक समझ नहीं आई की शोषितो जाओ और
अपने घरो की दीवारो पर लिख दो कि""
तुम्हे इस देश का हुक्मरान बनना हैंंं

"दिल से जयभीम ।

अस्तित्व के साथ जियो और चीजोें को खुदअपने आप घटने दो। यदि कोई तुम्हारा सम्मान करता है,तो यह उसका ही निर्णय है, तुम्हारा उससे कोई संबंध नही।

अस्तित्व के साथ जियो और चीजोें को खुदअपने आप घटने दो। यदि कोई तुम्हारा सम्मान करता है,तो यह उसका ही निर्णय है, तुम्हारा उससे कोई संबंध नही।

यदि तुम उससे अपना संबंध जोड़ते हो,तो तुम असंतुलित और बेचैन हो जाओगे, और यही कारण है कि यहाँ हर कोई मनोरोगी है। और तुम्हारे चारों तरफ घिरे बहुत से लोग तुमसे यह अपेक्षाएँ कर रहे हैं कि तुम यह करो, वह मत करो। इतने सारे लोग और इतनी सारी अपेक्षाएँ और तुम उन्हे पूरा करने की कोशिश कर रहे हो।

तुम सभी लोगों और उनकी सभी अपेक्षाओं को पूरा नही कर सकते। तुम्हारा पूरा प्रयास तुम्हे एक गहरे असंतोष से भर देगा और कोई भी संतुष्ट होगा ही नही। तुम किसी को संतुष्ट कर ही नही सकते, केवल यही संभव है कि केवल तुम स्वयम् ही संतुष्टहो जाओ। और यदि तुम अपने से संतुष्ट हो गये, तब थोड़े से लोग तुमसे संतुष्ट होंगे, लेकिन इससे तुम्हारा कोई संबंध न हो।

तुम यहाँ किन्ही और लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने, उनके नियमों और नक्शों के अनुसार उन्हे संतुष्ट करने के लिये नही हो। तुम यहाँ अपने अस्तित्व को परिपूर्ण जीने के लिये आये हो। यही सभी धर्मों में सबसे बड़ा और पूर्ण धर्म है कि तुम अपने होने में परिपूर्ण हो जाओ ।

यही तुम्हारी नियति या मंजिल है, इससे च्युत नही होना है। इससे बढ़कर और कुछ मूल्यवान नही।किसी का अनुगमन और अनुसरण न कर अपने अन्त: स्वर को सुनो। एक बार भी यदि तुमने अपने अन्त: स्वर का अनुभव कर लिया, तो फिर नियमों और सिद्धाँतों की कोई जरूरत रहेगी ही नही। तुम स्वयम् अपने आप में ही एक नियम बन जाओगे।

""ओशो"
(साभार- सत्य-असत्य)

राम और कृष्ण मैं फर्क.?हिंदू बहुत ही इस गणित में कुशल हैं। इसलिए राम को उन्होंने पूर्णावतार नहीं कहा; कृष्ण को कहा। क्योंकि कृष्ण में राम और रावण दोनों संयुक्त हो गए हैं। कृष्ण में बुराई भी

राम और कृष्ण मैं फर्क.?हिंदू बहुत ही इस गणित में कुशल हैं। इसलिए राम को उन्होंने पूर्णावतार नहीं कहा; कृष्ण को कहा। क्योंकि कृष्ण में राम और रावण दोनों संयुक्त हो गए हैं। कृष्ण में बुराई भी है, भलाई भी है, और दोनों के बीच एक तालमेल है। कृष्ण से ज्यादा बेईमान आदमी न खोज सकोगे।

ईमानदार भी खोजना मुश्किल है। वचन दे और तोड़ दे। कहा युद्ध में अस्त्र न उठाऊंगाऔर उठा लिया। यह कोई भरोसे का आदमी नहीं है। अगर तुम न समझो तो कृष्ण तुम्हें अवसरवादी मालूम पड़ेंगे। और अगर तुम समझो तो तुम्हें परम संत का दर्शन कृष्ण में हो जाएगा। क्योंकि कृष्ण क्षण-क्षण जीते हैं, और समग्रता से जीते हैं। क्षण का यथार्थ जो पैदा करवा देता है उसी को जीलेते हैं।

कृष्ण में राम और रावण का मेल हो गया है। और इसीलिए कृष्ण को हिंदुओं ने पूर्णावतार कहा है। राम अधूरे हैं।दो दिन पहले ही कोई मुझसे पूछता था। जो पूछता था व्यक्ति वे रामचरित मानस के कथा-वाचक हैं। तो वे मुझसे पूछते थे कि आप राम पर क्यों नहीं बोलते? तो मैंने कहा कि मुझे राम में ज्यादा रस नहीं है। उनको बड़ी चोट लगी होगी। पूछने लगे, क्यों रस नहीं है? मैंने कहा, यह जरा लंबी बात है। रस इसीलिए नहीं है कि राम अधूरे हैं। और कृष्ण में मुझे रस है, क्योंकि कृष्ण पूरे हैं।

और पूरा आदमी बेबूझ होगा। क्योंकि उसमें बुराई-भलाई दोनों का ऐसा सम्मिलन होगा कि तुम पहचान ही न पाओगे कि क्या बुरा है और क्या भला। पूरा आदमी अनूठा होगा; पकड़ मुश्किल हो जाएगी।राम को पकड़ना आसान है। इसलिए लोग राम के भक्त हैं। इसलिए राम का बड़ा व्यापी प्रभाव पड़ा।

कृष्ण का अगर कोई भक्त भी है तो वह भी चुनाव करता है; पूरे कृष्ण को नहीं मानता वह। कुछ हैं जो गीता के कृष्ण को मानते हैं; उनको भागवत का कृष्ण पसंद नहीं पड़ता। कुछ हैं जो कृष्ण के बाल-चरित्र को मानते हैं; उनका युवा चरित्र पसंद नहीं पड़ता।सूरदास को युवा चरित्र पसंद नहीं है। बच्चा लड़कियों के साथ छेड़खानी करे, चल सकता है; जवान आदमी छेड़खानी करे, बरदाश्त के बाहर है। तो सूरदास के कृष्ण बालक ही बने रहते हैं।

वे पैरों में घुंघरू बांध कर ही चलते रहते हैं। उनके पांव की पैजनियां बजती रहती है। उससे बड़ा नहीं होने देते वे उनको। क्योंकि उससे बड़ा हुआ तो यह आदमी खतरनाक है। बालक को हम पसंद कर लेते हैं। छोटा बच्चा अगर कपड़े चुरा कर चढ़ जाए स्त्रियों के वृक्ष पर तो कोई ऐसी बड़ी एतराज की बात नहीं है। लेकिन जवान? तो फिर जरा अड़चन शुरू होती है।

हमारी नीति को बाधा आनी शुरू होती है। तो यह हम रावण में तो बरदाश्त कर सकते हैं, लेकिन कृष्ण में कैसे बरदाश्त करेंगे?इसलिए हमने अशुभ को और शुभ को बिलकुल अलग-अलग कर रखा है। और ध्यान रखना, जिंदगी में दोनों इकट्ठे हैं। और जिंदगी का पूरा राज उसी ने जाना जिसने दोनों को साथ जी लिया। जिंदगी की आखिरी ऊंचाई उसी की है जिसने पूरे जीवन को जीया–बिना चुनाव किए, बिना काटे। कठिन तो जरूर है।

राम का जीवन आसान है, क्योंकि एकंगा है, साफ-सुथरा है, गणित पक्का है। जो-जो ठीक-ठीक है वह-वह करना है। जो गैर-ठीक है,बिलकुल नहीं करना है। रावण का जीवन भी साफ-सुथरा है। दोनों के गणित सीधे हैं। उलझन है कृष्ण के जीवन में। वहां गणित खो जाता है और पहेली निर्मित होती है। वहां साफ-सुथरापन विलीन हो जाता है और रहस्य का जन्म होता है। क्योंकि वहां सभी द्वंद्व एक साथ हो गए; सभी द्वैत मिल गए।

कृष्ण अद्वैत हैं।लाओत्से को अगर तुम्हें समझना हो तो लाओत्से उस परम बिंदु की तरफ इशारा कर रहा है। उसको वह कहता है मौलिक चरित्र। तुम्हारा स्वभाव उसी दिन प्रकट होगा जिस दिन राम और रावण तुम्हारे भीतर आलिंगनबद्ध हो जाएं। यह बहुत कठिन है। इससे कठिन और कुछ भी नहीं। लेकिन इसे बिना किए जीवन की निष्पत्ति नहीं होती।

जब तक यह घटित न हो जाए तब तक तुम अधूरे रहोगे और बेचैन रहोगे। पूरे होने की बेचैनी है। अधूरा कभी भी चैन को उपलब्ध नहीं हो सकता। यह तुम्हारा वर्तुल आधा न रहे, पूरा हो जाए, कि फिर परम चैन शुरू हो जाता है।

-ओशो -
ताओ उपनिषाद–
(भाग–5)
प्रवचन–100

राजगृह में चंदाभ नाम का एक ब्राह्मण रहता था।किसी पूर्व जन्म में भगवान कश्यप बुद्ध केचैत्य में चंदन लगाया करता था।कुछ और बड़ा कृत्य नहीं थापीछे।

राजगृह में चंदाभ नाम का एक ब्राह्मण रहता था।किसी पूर्व जन्म में भगवान कश्यप बुद्ध केचैत्य में चंदन लगाया करता था।कुछ और बड़ा कृत्य नहीं थापीछे।

लेकिन बड़े भाव से चंदन लगाया होगाकश्यप बुद्ध के चैत्य में, उनकी मूर्ति पर।असली सवाल भाव का है। बड़ीश्रद्धा से लगाया होगा। तब से ही उसमेंएक तरह की आभा आ गयीथी।

जहां श्रद्धा है, वहां आभा है।जहां श्रद्धा है, वहां जादू है।उस पुण्य के कारण, वह जो कश्यप बुद्ध के मंदिर मेंचंदन लगाने का जो पुण्य था, वह जो आनंद से इसनेचंदन लगाया था, वह जो आनंद से नाचा होगा। पूजाकी होगी, प्रार्थनाकी होगी। वह इसकेभीतर आभा बन गयीथी।

ज्योतिर्मय हो कर इसकेभीतर जग गयी थी।कुछ पाखंडी ब्राह्मण उसे साथ लेकर नगर-नगर घूमते थे। क्योंकि वह बड़ा चमत्कारीआदमी था। उसकी नाभि सेरोशनी निकलती थी। वेकपड़ा उघाड़ कर लोगों को उसकी नाभि दिखाते थे।नाभि देखकर लोग हैरान हो जाते थे। और उन्होंनेइसमें एक धंधा बना रखा था।

वे कहते थे। जो इसकेशरीर को स्पर्श करता है, वह चाहे जोपाता है। और जब तक लोग बहुत धन दान न करतेवह उसका शरीर स्पर्श नहींकरने देते थे। ऐसे वह काफी लोगों को लूटरहे थे।भगवान जेतवन में विहरते थे। तब वे उसे लिए हुएश्रावस्ती पहुंचे। जेतवनश्रावस्ती में था। संध्या समय था। और सारानगर भगवान के दर्शन और धर्म श्रवण के लिए जेतवनकी और जा रहा था।

उन ब्राह्मणों ने लोगोंको रोककर चंदाभ का चमत्कार दिखाना चाहा। लेकिन कोईरूकना नहीं चाहता था।जिसने भगवान को देखा हो, जिसने किसी बुद्धपुरूष को देखा हो। उसके लिए सारी दुनिया केचमत्कार फीके हो जाते है।

जिसने साक्षातप्रकाश को देखा हो, उसके लिए किसीकी नाभि से थोड़ी सीरोशनी निकल रही हो। इसकाकोई अर्थ नहीं है। इस तरहकी बातों में बच्चे ही उत्सुकही हो सकते है।कोई रुका नहीं। ये देख कर ब्राह्मणबहुत हैरान हुए। ऐसा तो कभी हुआनहीं था। उनके अनुभव में न आया था।जहां गए थे। वहीं भीड़ लगजाती थी।

तो उन्हें लगा कि जरूरइससे भी बड़ा चमत्कार कहींबुद्ध में घट रहा होगा। तभी लोग भागे जारहे है। तो बुद्ध का अनुभाव देखने के लिए—कि कौनहै यह बुद्ध। और क्या इसका प्रभाव है। क्याइसके चमत्कार है। वे ब्राह्मण चंदाभ को लेकर बुद्धके पास पहुँचे। भगवान के सामने जाते हीचंदाभ की आभा लुप्त हो गयी।हो ही जायेगी, होही जानी चाहिए। वहऐसी ही थी जैसेकोई दीया जलाएं सूरज के सामने आ जाए।

सूरज के सामने दीए कीरोशनी खो जाए, इसमे आश्चर्य क्या है।दीए की तो बात और, सुबहसूरज निकलता है, आकाश के तारे खो जाते है। अंधेरे मेंचमकते है; रोशनी में खो जाते है। सूरजकी विराट रोशनी तारोंकी रोशनी छीनलेती है। तारे कहीं जातेनहीं; जहां है, वहींहै। मगर दिन में दिखायी नहींपड़ने लगेंगे।यह चंदाभ की जो आभा थी।मिट्टी का छोटा सा दीया था।

बुद्धकी जो आभा थी, जैसे महा सूर्यकी आभा।लेकिन चंदाभ तो बेचारा यही समझा कि जरूरकोई मंत्र जानते होंगे। मेरी आभा को मिटादिया। वह दुःखी हुआ। चमत्कृतभी। उसने कहा: हे गौतम, मुझेभी आभा को लुप्त करने का मंत्रदीजिए। और उस मंत्र को काटनेकी विधि भी बताइए। तो मैं सदा-सदाके लिए आपका दास हो जाऊँगा। आपकीगुलामी करूंगा।

बुद्ध कभी मौका नहीं चूकते।कोई भी मौका मिले किसीभी बहाने मौका मिले, संन्यास का प्रसाद अगरबांटने का अवसर हो, तो वे जरूर बांटते थे। बुद्ध नेयही मौका पकड़ लिया। इसीनिमित चलो।उन्होंने कहा: देख, मंत्र दूँगा—मंत्र-वंत्र हैनहीं कुछ। पर पहले तूसन्यासी हो जा।मंत्र के लोभ वह आदमी संन्यास ले लेताहै। लेकिन बुद्ध ने देखा होगा कि इसआदमी में क्षमता तो पड़ी है।बीज तो पडा है। वह जो कश्यप बुद्ध केमंदिर में चंदन लगाया था।

वह जो भाव दशाइसकी सधन थी। वह आजभी मौजूद है। तड़फती है,मुक्त होने को। उस पर ही दयाकी होगी।यह आदमी ऊपर से तो भूल गया है। किसजन्म की बात है। कहां कीबात है। किसको याद रहता है। इसआदमी की बुद्धि में तो कुछभी नहीं है। सब भूल-भालगया है। इसकी स्मृति नहींहै। लेकिन इसके भीतर ज्योतिपड़ी है।कल एक युवक नार्वे से आया। मैंने लाख उपाय किया किवह संन्यस्त हो जाए। क्योंकि उसके ह्रदय को देखूतो मुझे लगे कि उसे संन्यस्त हो ही जानाचाहिए। और उसके विचारों को देखू, तो लगेकिउसकी अभी हिम्मतनहीं है।

सब तरह समझाया-बुझाया उसेकि वह संन्यस्त हो जाए। तरंग उसमे भीआ जाती थी। बीच-बीच में लगने लगता था कि ठीक।ह्रदय जोर मारने लगता ; बुद्धि थोड़ीक्षीण हो जाती। लेकिन फिरवह चौंक जाता।दो हिस्सों में बंटा है। सिर कुछ कह रहा है।ह्रदय कुछ कह रहा है। मुश्किल सेसुनायी पड़ती है। क्योंकि आवाजधीमी होती है।

हमने सदियों से सूनी नहींहै वह आवाज। तो सुनाई कैसे पड़े। आदत चूकगयी है।

प्यारे ओशो~~~~~~~~~~ वह कौन सा सपना है जिसे साकार करने के लिए आप तमाम रुकावटों और बाधाओं को p करते हुए पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से निरंतर क्रियाशील हैं?

प्यारे ओशो~~~~~~~~~~
वह कौन सा सपना है जिसे साकार करने के लिए आप तमाम रुकावटों और बाधाओं को p करते हुए पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से निरंतर क्रियाशील हैं?

सपना तो एक है, मेरा अपना नहीं, सदियों पुराना है, कहैं कि सनातन है । पृथ्वी के इस भू- माग में मनुष्य की चेतना की पहली किरण के साथ उस सपने को देखना शुरू किया था ,उस सपने की माला में कितने फूल पिरोये- कितने गौतम बुद्ध, कितने महाबीर, कितने कृष्ण, कितने नानक,उस सपने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर गये ।

वह सपना मनुष्य का, मनुष्य की अंतरात्मा का सपना है ।इस सपने को हमने एक नाम दे रखा है । हम इस अपने को भारत कहते हैं ।भारत कोई भूखंड नहीं है । न ही कोई राजनैतिक इकाई है, न ऐतिहासिक तथ्यों का कोई टुकड़ा है । न धन, न पद, न प्रतिष्ठा की पागल दौड है ।

भारत है एक अभीप्सा एक प्यास… सत्य को पा लेने की |उस सत्य को, जो हमारे हदय की धड़कन मेँ बसा है । उस सत्य को, जो हमारी चेतना की तहों में सोया है । वह जो हमारा भी हमें भूल गया है । उसका पुन: स्मरण उसकी पुन: घोषणा भारत हैअमृतस्य पुत्र:… हे अमृत के पुत्रो ', जिनने इस उदूघोषणा को सुना, वे ही केवल भारत के नागरिक हैं ।

भारत मेँ पैदा होने से कोई भारत का नागरिक नहीं हो सकताज़मीन पर कोई कही पैदा हो, किसी देश में, किसी सदी में, अतीत में या भविष्य में, अगर उसको खोज अतस की खोज है, वह भारत का निवासी है । मेरे लिए भारत और अध्यात्मपर्यायवाची हैं । भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची हैं ।

इसलिए भारत के पुत्र जमीन के कोने कोने मेँ हैं । ।ओर जो एक दुर्घटना की तरह केवल भारत में पैदा हो गए हैं, जब तक उन्हें अमृत की यह तलाश पागल न बना दे, तब तक वे भारत के नागरिक होने के अधिकरी नहीं हैं |भारत एक सनातन यात्रा है, एक अमृत पथ है,जो अनंत से अनंत तक फैला हुआ है इसलिए हमने कमी भारत का इतिहास नहीं लिखा । इतिहास भी कोई लिखने की बात है साधारण-भी दो कौडी की रोजमर्रा की घटनाओं का नाम इतिहास है ।

जो आज तूफान की तरह उठती हैं और कल जिनका कोई निशान भी नहीं रह जाता इतिहास तो धूल का बवंडर है ।भारत ने इतिहास नहीं लिखा ,भारत ने तो केवल उस चिरंतन को ही साधना ही है, बैसे ही जैसे चकोर चांद को एकटक बिना पलक झपके देखता रहता हैमैं भी उस अनंत यात्रा का छोटा मोटा यात्री हूं। चाहता था कि जो भूल गये हैं, उन्हें याद दिला दूं; जो सो गए हैं, उन्हें जगा दूं। और भारत अपनी आंतरिक गरिमा और गौरव को, अपनी हिमाच्छादित ऊंचाइयों को पुन: पा ले । क्योंकि भारत के भाग्य के साथ पूरी मनुष्यता का भाग्य जुड़ा हुआ है ।

यह केवल किसी एक देश की बात नहीं है अगर भारत अंधेरे में खो जाता है तो आदमी का कोई भविष्य नहीं हैऔर अगर हम भारत को पुन: उसके के पंख दे देते हैं, पुन: उसका अकाश दे देते हैं, पुन: उसकी आखों को सितारों की तरफ उड़ने की चाह से भर देते हैं तो हम केवल उनको ही नहीं बचा लेते हैं, जिनके भीतर प्यासहै ।

हम उनको भी बचा लेते हैं, जो आज सोये हैं, लेकिन कल जागेंगे; जो आज सोये हैं, लेकिन कल घर लौटेंगेभारत का भाग्य मनुष्य की नियति है |

---ओशो