NEWS UPDATE

Blogger Tips and TricksLatest Tips And TricksBlogger Tricks

Sunday, 8 May 2016

वीर्य का ऊर्ध्वगमन ◆◆◆◆◆◆◆◆◆एक वीर्य-कण दो चीजों से बना है। तभी तोआपका पूरा शरीर भी दो चीजों से बन पाता है -- एक तो वीर्य-कण की देह -- दिखाई पड़ने वाली और एक वीर्य-कण की आत्मा है, ऊर्जा है -

वीर्य का ऊर्ध्वगमन ◆◆◆◆◆◆◆◆◆एक वीर्य-कण दो चीजों से बना है। तभी तोआपका पूरा शरीर भी दो चीजों से बन पाता है

-- एक तो वीर्य-कण की देह -- दिखाई पड़ने वाली और एक वीर्य-कण की आत्मा है, ऊर्जा है -- न दिखाई पड़ने वाली।संभोग में वीर्य-कण जैसे ही स्त्री योनि में प्रवेश करते हैं, दो घंटे तक जीवित रहते हैं।

अगर इस दो घंटे के बीच में उन्होंने स्त्री अंडे को उपलब्ध कर लिया, पा लिया, तो जो वीर्य-कण स्त्री अंडे के निकट पहुंचकर स्त्री अंडे में प्रवेश कर जाएगा, जन्म हो गया -- एक नए व्यक्तित्व का।

लेकिन लंबी यात्रा है वीर्य-कणों के लिए।एक संभोग में लाखों वीर्य-कण छूटते हैं और उनमें से एक पहुंच पाता है। लाखों नष्ट हो जाते हैं। और एक भी सदा नहीं पहुंच पाता, कभी-कभी पहुँच पाता है। शेष समय तो सभी नष्ट हो जाते हैं।

इसका मतलब यह हुआ कि वीर्य-कण जीवित भी होते हैं और मुर्दा भी होते हैं।वीर्य के दो अंग हैं। जब तक वीर्य जीवित है, तब तक उसमें दो चीजें हैं -- उसकी देह भी है, और उसकी ऊर्जा, आत्मा भीहै। दो घंटे में ऊर्जा मुक्त हो जाएगी, वीर्य कण मुर्दा पड़ा रह जाएगा।

अगर इस ऊर्जा-कण के रहते ही स्त्री-कण से मिलनहो गया, तो ही जीवन का जन्म होगा। अगर इसऊर्जा के हट जाने पर मिलन हुआ, तो जीवन का जन्म नहीं होगा।इसलिए वीर्य-कण तो केवल देह है, वाहन है।

वह जो ऊर्जा है, जो उसे जीवित बनाती है, वही असली वीर्य है। वीर्य-कण की देहतो उत्थान को उपलब्ध नहीं हो सकती, उसकातो पतन ही होगा।लेकिन उस छोटे से न दिखाई पड़ने वाले वीर्य-कण में जो जीवन की ऊर्जा है, वह ऊपर की तरफ भाग रही है।

उसके लिए मार्ग की कोई जरूरत नहीं है। वह अदृश्य है। अगर यही जीवन-ऊर्जा स्त्री-कण से मिल जाएगी, तो एक व्यक्ति का जन्म हो जाएगा।अगर यही ऊर्जा योग और तंत्र की प्रणालीसे मुक्त कर ली जाए वीर्य-कण से, तो आपके सहस्रार तक पहुंच सकती है।

और जब सहस्रार तक पहुंचती है यह वीर्य-ऊर्जा,तो आपके लिए नए लोक का जन्म होता है।आप का पुनर्जन्म हो जाता है। इस वीर्य-ऊर्जा के जाने के लिए कोई स्थूल, भौतिक मार्ग आवश्यक नहीं है। यह बिना भौतिक मार्ग के यात्रा कर लेती है।

इसलिए जिनसप्त चक्रों की हम बातें करते हैं, वे सात चक्र दृश्य नहीं हैं।उन अदृश्य चक्रों से ही यह ऊर्जा ऊपर की तरफ उठती है। इस ऊर्जा का नाम"वीर्य" है।

वीर्य बीज है, जैसे पौधों का बीज है, ऐसेआदमी का बीज है। उस बीज को तोड़कर भीतर की ऊर्जा का पता नहीं चलता। क्योंकि तोड़ते ही वह ऊर्जा आकाश में लीन हो जाती है।आपका वीर्य-कण दो तरह की आकांक्षाएं रखता है। एक आकांक्षा तो रखता है बाहर की स्त्री से मिलकर, फिर एक नए जीवन की पूर्णता पैदा करने की।एक और गहन आकांक्षा है,

जिसको हम अध्यात्म कहते हैं, वह आकांक्षा है, स्वयं के भीतर की छिपी स्त्री या स्वयंके भीतर छिपे पुरुष से मिलने की।अगर बाहर की स्त्री से मिलना होता है, तो संभोग घटित होता है। वह भी सुखद है, क्षण भर के लिए।अगर भीतर की स्त्री से मिलना होता है, तो समाधि घटित होती है। वह महासुख है, और सदा के लिए।

क्योंकि बाहर की स्त्रीसे कितनी देर मिलिएगा ?भीतर की स्त्री से मिलना शाश्वत हो सकता है। उस शाश्वत से मिलने के कारण ही समाधि फलित होती है।

~ ओशो ~