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Friday, 1 April 2016

सभी दुख से डरते हैं!और जब तक दुख से डरेंगे, तब तक दुखी रहेंगे -- क्योंकि जिससे तुम डरोगे, उसे तुम समझ न पाओगे। और दुख मिटता है समझने से, दुख मिटता है जागने से, दुख मिटता है दुख को पहचान लेने से।इसलिये तो दुनिया दुखी है कि लोग दुख से डरते हैं और पीठ किये रहते हैं, तो दुख का निदान नहीं हो पाता।

सभी दुख से डरते हैं!और जब तक दुख से डरेंगे, तब तक दुखी रहेंगे -- क्योंकि जिससे तुम डरोगे, उसे तुम समझ न पाओगे। और दुख मिटता है समझने से, दुख मिटता है जागने से, दुख मिटता है दुख को पहचान लेने से।इसलिये तो दुनिया दुखी है कि लोग दुख से डरते हैं और पीठ किये रहते हैं, तो दुख का निदान नहीं हो पाता।

दुख पर अँगुली रखकर नहीं देखते कि कहाँ है, क्या है, क्यों है? दुख में उतरकर नहीं देखते कि कैसे पैदा हो रहा है, किस कारण हो रहा है। भय के कारण अपने ही दुख से भागे रहते हैं।तुम कहीं भी भागो, दुख से कैसे भाग पाओगे?

दुख तुम्हारे जीवन की शैली में है -- तुम जहाँ जाओगे, वहीं पहुँच जायेगा।दुख से डरे कि दुखी रहोगे। दुख से डरे कि नर्क में पहुँच जाओगे, नर्क बना लोगे।दुख से डरने की जरूरत नहीं है। दुख है तो जानो, जागो, पहचानो।जिन्होंने भी दुख के साथ दोस्ती बनाई, और दुख को ठीक से आँख भरकर देखा, दुख का साक्षात्कार किया, वे अपूर्व संपदा के मालिक हो गये --

कई बातें उनको समझ में आईं।एक बात तो यह समझ में आई कि दुख बाहर से नहीं आता, दुख मैं पैदा करता हूँ। और, जबमैं पैदा करता हूँ, तो अपने हाथ की बात हो गई। न करना हो पैदा, तो न करो! करना है, तो कुशलता से करो। जितना करना हो, उतना करो -- मगर फिर रोने-पछताने का कोई सवाल न रहा।

जिन्होंने दुख को गौर से देखा, उन्हें यह बात समझ में आ गई कि यह मेरे ही गलत जीने का परिणाम है, यह मेरा ही कर्मफल है!

प्यारे ओशो
"एस धम्मो सनंतनो"
प्रवचनमाला के 118वें प्रवचन का एक अंश

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