धार्मिक लोगों ने कैसी-कैसी तरकीबें निकाली हैं।
पाप करते हैं गंगा में स्नान कर आते हैं।
अब गंगा में स्नान करने का और पाप के मिटने से क्या संबंध हो सकता है!
दूर का भी कोई संबंध नहीं हो सकता। गंगा का कसूर क्या है,
पाप तुमने किया! और ऐसे अगर गंगा धो-धोकर सबके पाप लेती रही, तो गंगा के लिए तो नर्क में भी जगह न मिलेगी।
इतने पाप इकट्ठे हो गए होंगे!
और अगर इतना ही आसान हो-पाप तुम करो, गंगा में डुबकी लगा आओ और पाप हल हो जाएं-तब तो पाप करने में बुराई ही कहा रही?
सिर्फ गंगा तक आने-जाने का श्रम है। तो जो गंगा के किनारे ही रह रहे हैं, उनका तो फिर कहना ही क्या!तुमने तीर्थ बना लिए।
तुमने छोटे-छोटेपुण्य की तरकीबें बना लीं, ताकि बड़े-बड़े पापों को तुम झुठला दो, भुला दो। छोटा-मोटा अच्छा काम कर लेते हो,
अस्पताल को दान दे देते हो-दान उसी चोरी में से देते हो जिसका प्रायश्चित्त कर रहे हो-लाख की चोरी करते हो, दस रुपया दान देते हो। लेकिन लाख की चोरी को दस रुपए के दान में ढांक लेना चाहते हो!
तुम किसे धोखा दे रहे हो?या, इतना भी नहीं करता कोई। रोज सुबह बैठकर पांच-दस मिनट माला जप लेता है। माला के गुरिए सरका लेता है, सोचता है हल हो गया।
या राम-राम जप लेता है। या रामनाम छपी चदरिया ओढ़ लेता है। सोचता है मामला हल हो गया। जैसे राम पर कुछ एहसान हो गया।
अब राम समझें! चदरिया ओढ़ी थी। कहने को अपने पास बात हो गई। मंदिर गए थे, हिसाब रख लिया है।
जीवन अंधेरे से भरा रहे और प्रकाश की ज्योति भी नहीं जलती! सिर्फ अंधेरी दीवालों पर तुम प्रकाश शब्द लिख देते हो, या दीए के चित्र टल देते हो।
प्यास लगी हो तो पानी शब्द से नहीं बुझती। अंधेरा हो तो दीए शब्द से नहीं मिटता।मंजरे-तस्वीर दर्दे-दिल मिटा सकता नहीं,आईना पानी तो रखता है पिला सकता नहीं..
ओशो, एस धम्मो सनंतनो, भाग -2
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