मैं मृत्यु सिखाता हूं: ओशोagyatagyaniमैं मृत्यु सिखाता हूं यहरहस्य 99% लोगो कीसमझ से उपर का विषय है ! ओशो की मृत्यु का रहस्य उसका सम्बन्ध शरीर या आत्मा से नही है! यह पहला रहस्य है ! जो नही है उस मृत्यु को सिखाने का रहस्य है ओशो का ! जिसे हम मैं या मैं हूँ यह समझते है !लेकिन मैं हूँ या नही हूँ या यह हम है तो कौन है ! हमारे होने का जो भ्रम है उस मृत्यु की बाते ओशो करते थे ! यहा पर सब कुछ सत्य है यह शरीर भी सत्य आत्मा भी सत्य है लेकिन यह मन सत्य है या नही है इसे जान लेना या परम को जान लेना एक ही बात है !और ओशो मृत्यु शब्द एक मन की समझ का रूपांतरण का एक मृत्यु शब्द संकेत है !हमारा यह जड़ शरीर मरता है लेकिन यह भी मरता नही है सिर्फ यह शरीर जिससे बना जहा से बना वे तत्व अपनी जगह वापस चले जाते है! शरीर पञ्चतत्व में विलय हो जाता है लेकिन शरीर तत्व भी मरते नही है ! और नही आत्मा मरती जहा से प्राण आये थे वहा वापिस प्राण चले जाते है ! पंचतत्व और चेतना का एक खेल था एक जोड़ था उस खेल की समाप्ति को मृत्यु कहते है! यह मृत्यु आम साधारण की मृत्यु हो गई लेकिन इस मृत्यु के सम्बधं में ओशो ने " मैं मृत्यु सिखाताहूं" इस विषय से कोई तालुकात नही है ! यह मृत्यु के सम्बन्ध से जुडी वह मृत्यु है! शरीर और प्राण परमात्मा का बनाया हुआ खेलहै वही बनाता है वही मिटाता है ! मन का खेलहम बनांते है लेकिन इस खेल को हम बना सकतेहै लेकिन मिटा नहीपाते , हमने मन को बनानासिख लिया है मन को बड़ा करना सिख लिया, मन की माया बनाना सिख लिया, लेकिन हम इस मायाको मिटा नही सकते है ! हमारेद्वारा बनाई मन की माया है जो अपनी ही बनाई माया को मिटा दे वह परम हो जाता है !वह ब्रहम बन जाता है ! जिसने बनना सिखा और मिटना भी सिख लिया वह समझो समस्त उपलब्धियों से विजय हो गया !99.99% लोग बनना चाहते है लेकिन मिटना नही चाहते है इस मन के खेल के लिए शरीर के नियम की तरह मृत्यु होनी आवश्यक है तब इसी शरीर में रह कर मुक्ति.समाधि.दर्शन.परमअनुभूति,मोक्ष .सर्वग की उपलब्धीहोती है इसी मृत्यु में बुद्धत्त्व घटित होता है बह्रमचर्य घटित होता है!
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