सदियों से मंदिर और मस्जिद ने शराब का विरोध किया है। चर्च और गुरुद्वारे ने शराब का विरोध किया है। लेकिन शराब जाती नहीं।
मंदिर-मस्जिद उखड़ गए हैं, मधुशाला जमी है। मंदिर-मस्जिदों में कौन जाता है अब? जो जाते हैं वे भी कहां जाते हैं? वे भी कोई औपचारिकता पूरी कर आते हैं। जाना पड़ता है इसलिए जाते हैं।
वहां बैठकर भी वहां कहां होते हैं? मन तो उनका कहीं और ही होता है।यह जरूरत अपने को भुलाने की इसीलिए है कि तुम्हें अपना पता ही नहीं। और जो तुमने अपने को समझा है वह काटे जैसा चुभ रहा है।
तुम्हें मैं वही दे देना चाहता हूं, जो तुम्हारे पास है और जिससे तुम्हारे संबंध छूट गए हैं। उसको पा लेना ही सिद्ध हो जाना है। सिद्ध को भुलाने की कोई जरूरत ही नहीं रह जाती।
सिद्ध का अर्थ क्या होता है? सिद्ध का अर्थ इतना ही होता है कि जो बीज की तरह था तुम्हारे भीतर, वह वृक्ष की तरह हो गया फूल लग गए। सिद्ध का इतना ही अर्थ है, जो तुम होने को हुए थे हो गए। जो तुम्हारी नियति थी, परिपूर्ण हुई।गंगा जहां सागर में गिरती है, वहा सिद्धहो जाती है।बीज जहां फूल बन जाता है, वहां सिद्ध हो जाता है।
ओशो,
एस धम्मो सनंतनो,
भाग -3
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