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Monday, 28 March 2016

साधारणत: हम एक मिनट में कोई सोलह से लेकरबीस श्वास लेते हैं। धीरे— धीरे— धीरे— धीरे झेन फकीर अपनी श्वास को शांत करता जाता है। श्वास इतनी शांत और धीमी हो

साधारणत:
हम एक मिनट में कोई सोलह से लेकरबीस श्वास लेते हैं। धीरे— धीरे— धीरे— धीरे झेन फकीर अपनी श्वास को शांत करता जाता है। श्वास इतनी शांत और धीमी हो जाती है कि एक मिनट में पांच.. .चार—पांच श्वास लेता। बस, उसी जगह ध्यान शुरू हो जाता।

तुम अगर ध्यान सीधा न कर सको तो इतना ही अगर तुम करो तो तुम चकित हो जाओगे। श्वास ही अगर एक मिनट में चार—पांच चलने लगे, बिलकुल धीमी हो जाए तो यहां श्वास धीमी हुई, वहां विचार धीमे हो जाते हैं। वे एक साथ जुड़े हैं।

इसलिए तो जब तुम्हारे भीतरविचारों का बहुत आंदोलन चलता है तो श्वासऊबड़— खाबड़ हो जाती है। जब तुम पागल होने लगते हो तो श्वास भी पागल होने लगती है। जब तुम वासना से भरते हो तो श्वास भी आंदोलित हो जाती है। जब तुम क्रोध से भरते हो तो श्वास भी उद्विग्न हो जाती है,उच्छृंखल हो जाती है। उसका सुर टूट जाता है।, संगीत छिन्न—भिन्न हो जाता है, छंद नष्ट हो जाता है। उसकी लय खो जाती है।झेन

फकीर श्वास पर बड़ा ध्यान देते हैं। यह जो मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर रहा था, यह एक झेन फकीर के मस्तिष्क में यंत्र लगा कर जांच कर रहा था कि कब ध्यान ही अवस्था आती है। कब अल्फा तरंगें उठती हैं। बीच में अचानक अल्फा तरंगें रब्रो गईं एक सेकेंड को। और उसने गौर से देखा तो फकीर की श्वास गड़बड़ा गई थी।

फिर फकीर सम्हल कर बैठ गया, फिर उसने श्वास व्यवस्थित कर ली। फिर तरंगें ठीक हो गईं। फिर अल्फा तरंगें आनी शुरू हो गईं।झेन फकीर कहते हैं, श्वास इतनी धीमी होनी चाहिए कि अगर तुम अपनी नाक के पास किसी पक्षी का पंख रखो तो वह कंपे नहीं। इतनी शांत होनी चाहिए श्वास कि दर्पण रखो तो छाप न पड़े।


ऐसी घड़ी आती ध्यान में, जब श्वास बिलकुल रुक गई जैसी हो जाती है। कभी—कभी साधक घबड़ा जाता है कि कहीं मर तोन जाऊंगा! यह हो क्या रहा है?घबड़ाना मत, कभी ऐसी घड़ी आए— आएगी ही—जो भी ध्यान के मार्ग पर नल रहे हैं, जब श्वास, ऐसा लगेगा चल ही नहीं रही। जब श्वास नहीं चलती तभी।।न भी नहीं चलता। वेदोनों साथ—साथ जुड़े हैं।ऐसा ही पूरा शरीर जुड़ा है।

जब तुम शांत होते हो तो तुम्हारा शरीर भी एक अपूर्व शांति में डूबा होता है। तुम्हारे रोएं—रोएं में शांति की झलक होती है। तुम्हारे चलने में भी तुम्हारा ध्यान प्रकट होता है। तुम्हारे बैठने में भी तुम्हारा ध्यान प्रकट होता है। तुम्हारेबोलने में, तुम्हारे सुनने में।ध्यान कोई ऐसी बात थोड़े ही है कि एक घड़ी बैठ गए और कर लिया।

ध्यान तो कुछ ऐसी बात है कि जो तुम्हारे चौबीस घंटे के जीवन पर फैल जाता है। जीवन तो एक अखंड धारा है। घड़ी भर ध्यान और तेईस घड़ी ध्यान नहीं, तो ध्यान होगा ही नहीं। ध्यान जब फैल जाएगा तुम्हारे चौबीस घंटे की जीवन धारा पर…। ध्यानी को तुम सोते भी देखोगे तो फर्क पाओगे। उसकी निद्रा में भी एक परम शांति है।b

ओशोअष्टावक्र:
महागीता
(भाग–5)
प्रवचन–73

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