एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था।
एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ' ओ जुम्मा ! आकेपैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है।
"मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथोंके ? "वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो ! रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं।
' हर कोई तो सुनता नहीं , लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है। ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ।
"सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया- " पानी कैसे पीते हो ? "उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाताहै। तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ।
"मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदिमच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "वह बोला - " तब शरीर को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ।
"हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है ! शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता।
परन्तु यह भीतो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ? इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो!स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं।कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले।
हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले।यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है जो हमें परमात्मा के बताये मार्ग पर चलने सिखाये।ये हाथ प्राणी मात्र की सेवा करने को मिले हैं।
ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो परम पद तक जाता हो।ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जो जिसमे परम पद पाने का मार्ग बताया जाताहो।ये जिह्वा प्रभु का गुण गान करने को मिली है।ये मन उस प्रभु का लगातार शुक्र और सुमिरन करने को मिला है।
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