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Sunday, 20 March 2016

एक महिला आयी और मुझसे उसने पूछा, ‘‘मैं यहां ठहर जाऊं आपके पास?” मैंने कहा, ‘‘बिलकुल ठहर जाओ।मुझे पता नहीं था कि मनु भाई पटेल को बड़ी तकलीफ हो जायेगी इस बात से। अगर मुझे पता होता तो संसद-सदस्य को मैं तकलीफ नहीं देता। मैं किसी को तकलीफ नहीं देना चाहता।

एक महिला आयी और मुझसे उसने पूछा, ‘‘मैं यहां ठहर जाऊं आपके पास?” मैंने कहा, ‘‘बिलकुल ठहर जाओ।मुझे पता नहीं था कि मनु भाई पटेल को बड़ी तकलीफ हो जायेगी इस बात से। अगर मुझे पता होता तो संसद-सदस्य को मैं तकलीफ नहीं देता। मैं किसी को तकलीफ नहीं देना चाहता।

कहता, ‘‘देवी, तुम्हारे ठहरने से मुझे तकलीफ नहीं हैं, लेकिन मनु भाई पटेल को, बड़ौदा वालों को तकलीफ हो जायेगी। और किसी को तकलीफ देना अच्छा नहीं है। तो तुम्हें ठहरना है तो जाओ, मनु भाई के कमरे में ठहर जाओ; यहां मेरे पास किस लिए ठहरती हो।

”लेकिन मुझे पता ही नहीं था। पता होता तो यह भूल न होती। यह भूल हो गयी अज्ञान में। वह आकर सो गई मेरे कमरे में, लेकिन दूसरे दिन बड़ी तकलीफ हो गयी। मुझे पता चला कि मनु भाई को और उनके मित्रों को बहुत कष्ट हो गया है इस बात से कि मेरे कमरे में वह सो गयी।

मैं तो हैरान हुआ कि वह मेरे कमरे में सोयी, तकलीफ उनको हो गयी!लेकिन आदमी कंधे पर उन चीजों को ढोने लगता है, जिनको लेकर उसके भीतर कोई लड़ाईजारी रहती है। पता नहीं चलता, खयाल में नहीं आता कि यह सब भीतर क्या हो रहा है।

तो मैंने सोचा कि वह मनु भाई मुझे मिलें तो उनसे कहूं कि ‘सर, यू आर स्टिल कैरिग हर आन योर शोल्डर?’ अभी भी ढो रहे हैं उस औरत को अपने कंधों पर? मैने उनकोवहीं दिल्ली में कहा कि मनु भाई, पीछे तकलीफ होगी। पीछे यह बात चलेगी, मिटने वाली नहीं है।

तो यह बात अभी कर लें सबके सामने। तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या बात करनी है; कुछ हर्जा नहीं; जो हो गया, हो गया।”लेकिन मैं जानता था, बात तो उठेगी; बात तो करनी ही पड़ेगी। फिर वे संसद-सदस्य हैं। संसद-सदस्य को मुझ जैसे फकीरों के आचरण का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो मुल्क का आचरण बिगाड़ देंगे।

और फिर ऐसे संसद-सदस्य हैं, इसलिए तो मुल्क का आचरण इतना अच्छा है, नहीं तो कभी भी बिगड़ जाता! धन्य भाग है, हमारे मुल्क का आचरण कितना अच्छा है, अच्छे संसद-सदस्यों के कारण! जो पता लगाते हैं कि किसके कमरे में कौन सो रहा है! इसका हिसाब रखते हैं! ये लोक-सेवक हैं! लोक-सेवक ऐसा ही होना चाहिए।

मुझे तो जैसे खबर मिली, मैंने सोचा कि इस बार एलेक्शन के वक्त अगर मुझे वक्त मिला तोजाऊंगा बड़ौदा में, लोगों से कहूंगा कि मनु भाई को ही वोट देना, इस तरह के लोगोंकी वजह से देश का चरित्र ऊंचा है। लेकिन, यह जो दिमाग है, यह दिमाग कहां सेपैदा होता है? यह दिमाग कहां से आता है?यह भीतर क्या छिपा हुआ है…?यह भीतर है, दमन की लम्बी परम्परा। यह एक आदमी का सवाल नहीं है।

यह हमारे पूरे जातीय संस्कार का सवाल है; यह मनु भाई का सवाल नहीं है। वह तो प्रतिनिधि हैं-हमारे और आपके; हमारी सब बीमारियों के-वह जो हमारे भीतर छिपा है, उसके। हमारे भीतर क्या छिपा है…?

हमने एक अजीब सप्रेशन की धारा में अपनेको जोड़ रखा है! दबा रहे हैं, सब! वह दबायाहुआ घाव हो जाता है। वह घाव पीड़ा देता है। उस घाव की वजह से हमें बाहर वही-वहीदिखायी पड़ने लगता है, जो-जो हमारे भीतर है।

सारा जगत एक दर्पण बन जाता है।यह सप्रेशन की लम्बी धारा, यह दमन की लम्बी यात्रा व्यक्तित्व को नष्ट करतीहै। इसने जीवन के स्रोतों को पॉयजन से भर दिया है, जहर से भर दिया है। जीवन के सारे स्रोत विकृत और कुरूप हो गये हैं।

इसलिए यh तीसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हूं कि दमन से बचना।अगर जीवन को और सत्य को जानना हो, और कभीप्रभु के, परमात्मा के द्वार पर दस्तक देनी हो, तो दमन से बचना।

संभोग से समाधि की ओर–
49ओशो

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