NEWS UPDATE

Blogger Tips and TricksLatest Tips And TricksBlogger Tricks

Sunday, 20 March 2016

न तो दूसरे पर क्रोध फेंको, न अपने भीतर क्रोध को दबाओ, क्रोध को रूपांतरित करो। घृणा उठे, क्रोध उठे, ईर्ष्या उठे, इन शक्तियों का सदुपयोग करो। मार्ग के पत्थर भी, बुद्धिमान व्यक्ति मार्ग की सीढ़ियां बना लेते हैं।और तब तुम बड़े सुख को उपलब्ध होओगे।

न तो दूसरे पर क्रोध फेंको, न अपने भीतर क्रोध को दबाओ, क्रोध को रूपांतरित करो। घृणा उठे, क्रोध उठे, ईर्ष्या उठे, इन शक्तियों का सदुपयोग करो। मार्ग के पत्थर भी, बुद्धिमान व्यक्ति मार्ग की सीढ़ियां बना लेते हैं।और तब तुम बड़े सुख को उपलब्ध होओगे।

दो कारण से। एक तो क्रोध करके जो दुख उत्पन्न होता, वह नहीं होगा। क्योंकि तुमने किसी को गाली दे दी इससे कुछ सिलसिला अंत नहीं हो गया। वह दूसरा आदमी फिर गाली देने की प्रतीक्षा करेगा। अब उसके ऊपर क्रोध घिरा है, वह भी तो क्रोध करेगा।अगर तुमने क्रोध को दबा लिया तो तुम्हारे भीतर के स्रोत विषाक्त हो जाते हैं। क्रोध जहर है।

तुम्हारे जीवन का सुख धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।तुम फिर प्रसन्न नहीं हो सकते। प्रसन्नता खो ही जाती है। तुम हसोगे भीतो झूठ। ओंठों पर रहेगी हंसी; तुम्हारेप्राण तक उसका कंपन न पहुंचेगा। तुम्हारे हृदय से न उठेगी। तुम्हारी आंखें कुछ और कहेंगी, तुम्हारे ओंठ कुछ और कहेंगे।

तुम धीरे-धीरे टुकड़े-टुकड़े में टूट जाओगे।तो न तो दूसरे पर क्रोध करने से तुम सुखी हो सकते हो, क्योंकि कोई दूसरे को दुखी करके कब सुखी हो पाया! और न तुम अपने भीतर क्रोध को दबाकर सुखी हो सकतेहो, क्योंकि वह क्रोध उबलने के लिए तैयार होगा, इकट्ठा होगा।

और रोज-रोज तुम क्रोध को इकट्ठा करते चले जाओगे, भीतर भयंकर उत्पात हो जाएगा।किसी भी दिन तुमसे पागलपन प्रगट हो सकता है। किसी भी दिन तुम विक्षिप्त होसकते हो।

एक सीमा तक तुम बैठे रहोगे अपने ज्वालामुखी पर, लेकिन विस्फोट किसी न किसी दिन होगा। दोनों ही खतरनाकहैं।

ओशो,
एस धम्मो सनंतनो,
भाग -2

No comments:

Post a Comment