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Wednesday, 6 April 2016

हर दुख तुम्हें निखारता हैजीवन दुख -ही-दुख नहीं है।यद्यपि दख यहाँ है।

हर दुख तुम्हें निखारता हैजीवन दुख -ही-दुख नहीं है।यद्यपि दख यहाँ है।

पर हर दुख तुम्हें निखारता है अौर बिना निखारे तुम सुख को अनुभव न कर सकोगे।हर दुख परीक्षा है।हर दुख प्रशिक्षण है।ऐसा ही समझो कि कोई वीणावादक तारोँ को कस रहा है।अगर तारों को होश हो तो लगेगा कि बडा दुख दे रहा है,तारों को कस रहा है,बडा दुख दे रहा है!

लेकिन वीणावादक तारों को दुख नहीँ दे रहा है; उनके भीतर से परम संगीतपैदा हो सके ,इसका आयोजन कर रहा है।ऐसा कोई दुख ही नहीँ है जो सुख का आयोजन न कर रहा हो।

हर दुख सुख के लिये पृष्ठभूमि है;सुख के रातों के लिये अमावस की रात है।इसे जानना मैं जीवन कीकला मानता हूं।तब यह सारा जगत अपूर्व सौंदर्य से भरा हुआ मालुम होगा।और उस अपूर्व सौंदर्य में ही परमात्मा की पहली झलक मिलती है।

खयाल रखो ,जिस जीवन में चुनौतियां नहीं हैं दुख की वह जीवन नपुंसक हो जाता है।जिस जीवन में बडे प्रश्न नहीं जगते उस जीवन में बडा चैतन्य पै दा नहीं होता।दुख को बदलो ।दुख को सुख की सेवा में लगाओ ।दुख को सुख का निखार बनाओ।दुख सेभागो मत ।जो भागता है,बुद्धिहीन है।जो जागता है,बुद्धिमान है।

अौर ध्यान रखना,दुख न हो तो जाग ही न सकोगे।इस जगत में जो दुख है वे जागरण के लिए उपाय हैं।यह जगत बिल्कुल सोया हुआ होता अगर यहां दुख न होते ।दुख न होता तो इस जगत में बुद्ध न होते

ओशो

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