आनंद के विपरीत कोई अवस्था ही नहीं है। और आनंद सुख नहीं है, अगर उसे सुख बनाया तो वह बात और होगी।
वह फिर दुख की दुनिया शुरू हो गई।तो साधारणतः हम कहते हैं, वह व्यक्ति आनंद को उपलब्ध होता है, जो दुख से मुक्त हो जाता है।लेकिन इस कहने में थोड़ी भ्रांति है।
कहना ऐसा चाहिए, आनंद को वह व्यक्ति उपलब्ध होता है, जो सुख-दुख से मुक्त हो जाता है।
क्योंकि वे जो सुख-दुख हैं, वे कोई दो चीजें नहीं हैं।और इसलिए साधारणजन को निरंतर यह गलती हो जाती है समझने में, वह समझता है, दुख से मुक्त हो जाना सुख है।इसलिए बहुत से लोग सत्य की खोज में या मोक्ष की खोज में भी वस्तुतः सुख की ही खोज में होते हैं।इसलिए महावीर ने एक बहुत बढ़िया काम किया।
सुख के खोजी को उन्होंने कहा, वह स्वर्ग का खोजी है। आनंद के खोजी को उन्होंने कहा, वह मोक्ष का खोजी है।मोक्ष और स्वर्ग में जो फर्क है, वह खोज का है।
दुख का खोजी नरक का खोजी है, सुख का खोजी स्वर्ग का खोजी है, लेकिन दोनों से जो मुक्ति का खोजी है, वह मोक्ष का खोजी है।
स्वर्ग मोक्ष नहीं है।
~ ओशो ~
(महावीर मेरी दृष्टि में, प्रवचन #24)
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