((((((एक अनूठी घटना मैंने घटते देखी, ))))))
कई बार कुछ शराबियों ने आकर मुझसे संन्यास ले लिया। फंस गए भूल में। सोच कर यह आये कि यह आदमी तो कुछ मना करता ही नहीं है,कि पीओ कि न पीओ, कि खाओ, कि यह न खाओ, वह न खाओ, कोई हर्जा नहीं। वे बड़े प्रसन्न हुए।
उन्होंने कहा कि आप की बात हमें बिलकुल जंचती है,यह किसी ने बताई ही नहीं। लेकिन जैसे—जैसे ध्यान बढ़ा, जैसे—जैसे संन्यास का रंग छाया,वैसे—वैसे उनके पैर मधुशाला की तरफ जानेबंद होने लगे,
दूसरी मधुशाला पुकारने लगी।एक शराबी ने छह महीने ध्यान करने के बाद मुझे कहा कि पहले मैं शराब पीता था क्योंकि मैं दुखी था, तो दुख भूल जाता था;अब मैं थोड़ा सुखी हूं शराब पीता हूं? तो सुख भूल जाता है।
अब बड़ी मुश्किल हो गई।सुख तो कोई भुलाना नहीं चाहता। यह आपने क्या कर दिया?मैंने कहा, अब तुम चुन लो।
वह कहने लगा कि अब शराब पी लेता हूं,तो ध्यान खराब हो जाता है,नहीं तो ध्यान की धीमी—धीमी धारा भीतर बहती रहती है, शीतल—शीतल, मंद—मंद बयार बहती रहती है।
शराब पी लेता हूं तो दो—चार दिन के लिए ध्यान की धारा अस्तव्यस्त हो जाती है; फिर बामुश्किल सम्हाल पाता हूं। अब बड़ी मुश्किल हो गई है।तो मैंने कहा, अब तुम चुन लो,तुम्हारे सामने है।
ध्यान छोड़ना है, ध्यान छोड़ दो, शराब छोड़नी है, शराब छोड़ दो।दोनों साथ तो चलते नहीं,तुम्हें दोनों साथ चलाना हो, साथ चला लो।उसने कहा, अब मुश्किल है। क्योंकि ध्यान से जो रसधार बह रही है, वह इतनी पावन है और वह मुझे ऐसी ऊंचाइयों पर ले जा रही है,
जिनका मुझे कभी भरोसा न था कि मुझ जैसा पापी और कभी ऐसे अनुभव कर पायेगा!आपको छोड़ कर किसी दूसरे को तो मैं कहता हीनहीं, क्योंकि मैं दूसरों को कहता हूं तो वे समझते हैं कि शराबी है, ज्यादा पी गया होगा।
वे कहते हैं :होश में आओ, होश की बातें करो।मैं भीतर के भाव की बात करता हूं तो वे समझते हैं कि ज्यादा पी गया होगा। उन्हेंभरोसा नहीं आता।
मेरी पत्नी तक को भरोसा नहीं आता। वह कहती है कि बकवास बंद करो। तुम ये ज्ञान—वान की बातें नहीं,तुम ज्यादा पी गए हो।
मैं कहता हूं,मैंने आज महीने भर से छुई नहीं है।तो आप से ही कह सकता हूं वह शराबी कहने लगा, आप ही समझेंगे। और अब छोड़ना मुश्किल है ध्यान।
जीवन को विधायक दृष्टि से लो। तुम सुखी होने लगो, तो जो चीजें तुमने दुख के कारण पकड़ रखी थीं, वे अपने—आप छूट जायेंगी।ध्यान आये तो शराब छूट जाती है। ध्यान आये तो मांसाहार छूट जाता है।
ध्यान आये तो धीरे —धीरे काम—ऊर्जा ब्रह्मचर्य में रूपांतरित होने लगती है।बस ध्यान आये। तो मैं ध्यान की शराब पीने को तुमसे कहता हूं;समाधि की मधुशाला में पियक्कड़ों की जमात में सम्मिलित हो जाने को कहता हूं।
अष्टावक्र महागीता, भाग-१, प्रवचन#१०
OSHO
No comments:
Post a Comment