कबीर कहते हैं, त्यागी, भोगी दोनों नष्ट कर देते हैं चदरिया को। और बीच में जो मनुष्य है, वह खिचड़ी जैसा है। सुबह त्यागी, दोपहर भोगी; शाम त्यागी, रात भोगी। वह चौबीस घंटे में कई दफा बदलता है।चौबीस घंटे भी देर की बात हो गई।उन्होंने अभी अमरीका में एक छोटी सी घड़ी बनाई है, और घड़ी में डायलर पर निक्सन की फोटो बनाई है और हर सेकेंड निक्सन की नजर बदलती है—उस घड़ी में। मजाक है, लेकिन अच्छी चीज बनाई है। हर सेकेंड पर आंख डोलती है। पर वह सब आदमी की तस्वीर है। हर सेकेंड पर तुम बदलते हो। भूख लगी, तुम एकदम भोगी हो जाते हो; पेट भर गया, तुम एकदम त्यागी बन जाते हो; संभोग कर लिया, करवट लेकर एकदम त्यागी हो जाते हो, ब्रह्मचर्य का विचार करने लगते हो। सोचतेहो, सब बेकार; क्या रखा है इस सब में! यह तुम कई बार कर चुके हो। संभोग के बाद विषाद न आए, ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है। संभोग के बाद ऊर्जा का क्षय होता है। तुम थके—हारे और कुछ पाते नहीं; और कितना सोचते थे, कितना सपना बांधते थे—यह मिलेगा, यह मिलेगा, यह मिलेगा! कुछ मिलता नहीं, विषाद से भर जाते हो।संभोग के बाद हर आदमी ब्रह्मचर्य का विचार करता है। लेकिन कितनी दूर? चौबीस घंटे में फिर ऊर्जा इकट्ठी होगी—भोजन से,हवा से, श्रम से। फिर भोजन ऊर्जा को बना देगा। चौबीस घंटे बाद फिर वासना जगेगी, फिर स्त्री का विचार उठेगा। तब तुम बिलकुल भूल जाओगे कि चौबीस घंटे पहले ब्रह्मचर्य बड़ा महत्वपूर्ण मालूम पड़ा था। अब स्त्री महत्वपूर्ण मालूम पड़ेगी।और यह वर्तुल घूमता रहा है सदा से। और तुम अनेक बार दोनों काम कर चुके हो। संभोग के बाद तुम सोचने लगते हो त्याग। फिर भूख जागती है, फिर तुम सोचने लगते हो भोग। दोनों के बीच में—त्यागी और भोगी अतियां हैं—इन दोनों के मध्य में खड़ा हुआ मनुष्य है। और मनुष्य बिलकुल खिचड़ी है, कनफ्यूजन है। दोनों का समय बंटा हुआ है।तुम अगर अपना कैलेंडर रखो, तो तुम बराबर लिख सकते हो: सुबह त्यागी, दोपहर भोगी, फिरत्यागी, फिर भोगी, फिर मंदिर चले गए, फिर दुकान आ गए, फिर दुकान पर बैठे, मंदिर की सोचने लगे; फिर मंदिर में बैठे, दुकान की सोचने लगे। तुम पाओगे कि तुम दोनों का मिश्रण हो। जब दोनों शुद्ध त्यागी और भोगी नष्ट कर देते हैं तो तुम तो दोहरा नष्ट कर दोगे। तुम त्याग और भोग दोनों की धारणाओं से चादर को नष्ट कर दोगे। त्यागी बायीं करवट सो रहा है, भोगी दायीं करवट सो रहा है। तुम करवटें बदल रहे हो। तुम चादर बिलकुल ही नष्ट कर दोगे। वे कम से कम थिर हैं, अपनी—अपनी दिशा में लगे हैं। तुम घूम रहे हो। तुम्हारी उत्तेजित अवस्था इससूक्ष्म चादर को बिलकुल ही नष्ट कर देगी।इसलिए कबीर कहते हैं, सोइ चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी के मैली कीनी चदरिया। दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया।लेकिन दास कबीर ने बड़े सम्हाल कर ओढ़ी, बड़ी सावचेतता से ओढ़ी, बड़े जतन से, होश से ओढ़ी, बड़े ध्यान से ओढ़ी—और ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया—जैसी दी थी परमात्मा ने, वैसी ही वापस कर दी।
-सुन भई साधो–
(प्रवचन–05)झीनी झीनी बिनी चदरिया—(प्रवचन—पांचवां)
Sunday, 13 March 2016
OSHO कबीर कहते हैं, त्यागी, भोगी दोनों नष्ट कर देते हैं चदरिया को।
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