NEWS UPDATE

Blogger Tips and TricksLatest Tips And TricksBlogger Tricks

Sunday, 13 March 2016

OSHO मुझसे कोई पूछता है कि क्या हम ध्यान कर सकते है और रिश्वत भी ले सकते है?

मुझसे कोई पूछता है कि क्या हम ध्यान कर सकते है और रिश्वत भी ले सकते है? मैं उनसे कहता हूं कि मजे से रिश्वत लो और ध्यान किए जाओ। क्योंकि जैसे ही ध्यान का बीज थोड़ा—सा भी टूटेगा, रिश्वत लेना मुश्किल हो जाएगा, कठिन होता जाएगा और एक घड़ी आएगी कि पांच रुपए लेते वक्त अमूल्य ध्यान को छोड़ने की क्षमता न रह जाएगी, मुश्किल हो जाएगा।संन्यास इस बात की घोषणा है जगत के प्रति, और अपने प्रति भी, कि मैं अब परमात्मा की तरफ जाने का सचेतन निर्णय लेता हूं। निश्रित ही उस निर्णय को लेने के बाद उस यात्रा में जाने के लिए जो साधन है उसको करना आसान हो जाता है। इधर मैंने देखा है सैकंड़ों व्यक्तियों को कि संन्यास लेते ही उनमें रूपांतरण हो जाता है। जब कुछ करेंगे तब की तो बात अलग, निर्णय लेते ही बहुत कुछ बदल जाता है। लेकिन यह लेना भी बहुत कुछ करना है। एक निर्णय पर पहुंचना, एक दाव लगाना, एक साहस जुटाना, एक छलांग कीतैयारी भी छलांग है। आधी छलांग तो तैयारी में ही लग जाती है।तो निश्रित ही ध्यान की गहराई बढ़ेगी संन्यास से। संन्यास की गहराई बढ़ती है ध्यान से। वे अन्योन्याश्रित है।

मै कहता आंखन देखी
       ।ओशो।

No comments:

Post a Comment