!! यह राजमहल है !!
एक गांव के संबंध में मैंने सुना है किवहां एक दिन एक जादूगर आ गया थाऔर उस गांव के कुएं में उसने एकपुड़िया डाल दी थी औरकहा था किइस कुएं का पानी जो भी पीएगा,वह पागल हो जाएगा।
एक ही कुआं था उस गांव में।एक कुआं और था,लेकिन वह गांव का कुआं न था,वह राजा के महल में था।सांझ होते —होते तक गांव के हरआदमी को पानी पीना पड़ा।चाहे पागलपन की कीमतपर भी पीना पड़े,लेकिन मजबूरी थी।प्यास तो बुझानी पड़ेगी,चाहे पागल ही क्यों न हो जाना पड़े।
गांव के लोग अपने को कब तक रोकते,उन्होंने पानी पीया। सांझ होते —होते पूरा गांव पागल हो गया।सम्राट बहुत खुश था,उसकी रानियां बहुत खुश थीं,महल में गीत और संगीत का आयोजन हो रहा था।उसके वजीर खुश थे कि हम बन गए,लेकिन सांझ होते —होते उन्हें पता चलाकिगलती में हैं वे,क्योंकि सारा महल सांझ होते—होते गांव के पागलों ने घेर लिया।
पूरा गांव हो गया था पागल।राजा के पहरेदार औरसैनिक भी हो गए थे पागल।सारे गांव ने राजा के महल कोघेर कर आवाज लगाई किमालूम होता है किराजा का दिमाग खराब हो गया है।हम ऐसे पागल राजा को सिंहासनपर बर्दाश्त नहीं कर सकत
महल के ऊपर खड़े होकर राजा ने देखा किबचाव का अब कोई उपाय नहीं है।राजा अपने वजीर से पूछने लगा किअब क्या होगा?हम तो सोचते थे कि भाग्यवान हैंहम कि हमारे पास अपना कुआं है।आज यह महंगा पड़ गया है।सभी राजाओं को एकन एक दिन अलग कुआं महंगा पड़ता है।
सारी दुनिया में पड़ रहा है।जो अभी भी राजा हैं,कल उनको भी कुआं महंगा पड़ेगा।अलग कुआं खतरनाक है।लेकिन तब तक खयाल नहीं था।वजीर से राजा कहने लगा, क्या होगा अब?वजीर ने कहा, अब कुछ पूछने की जरूरत नहीं है।
आप भागे पीछे के द्वार से,और गांव के उस कुएं का पानीपीकर जल्दी लौट आएं।अन्यथा यह महल खतरे में है।सम्राट ने कहा, उसे कुएं का पानी!क्या तुम मुझे पागल बनाना चाहते हो?वजीर ने कहा, अब पागल बनेबिना बचने का कोई उपाय नहीं है।राजा भागा, उसकी रानियां भागी।
उन्होंने जाकर उस कुएं का पानी पी लिया।उस रात उस गांव में एक बड़ाजलसा मनाया गया।सारे गांव के लोगों ने खुशी मनाई,बाजे बजाए, गीत गाएऔर भगवान को धन्यवाद दिया किहमारे राजा का दिमाग ठीक हो गया है।क्योंकि राजा भी भीड़ में नाच रहा थाऔर गालियां बक रहा था।
अब राजा का दिमाग ठीक हो गया।चूंकि हमारी नींद सार्वजनिक है,सार्वभौमिक है,क्योंकि हम जन्म से ही सोए हुए हैं,इसलिए हमें पता नहीं चलता है।इस नींद में हम क्या समझ पाते हैं जीवन को?इतना ही कि यह शरीर जीवन है।इस शरीर के भीतर जरा भी प्रवेश नहीं हो पात
यह समझ वैसी ही है,जैसे किसी राजमहल के बाहर दीवाल केआसपास कोई घूमता हो औरसमझता हो कि यह राजमहल है।दीवाल पर, बाहर की दीवाल पर,चारदीवारी पर, परकोटे पर,परकोटे के बाहर कोई घूमता होऔर सोचता हो कि राजमहल है-
मैं मृत्यु सिखाता हूं–
(प्रवचन–1)
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