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Saturday, 26 March 2016

मैंने सुना है, एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात जोर की वर्षा हो रही थी। फकीर था; छोटी—सी झोपड़ी थी। स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे। आधी रात किसी ने द्वार पर दस्तक दी। फकीर ने अपनी पत्नीसे कहा: उठ

मैंने सुना है, एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर…रात जोर की वर्षा हो रही थी। फकीर था; छोटी—सी झोपड़ी थी। स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे। आधी रात किसी ने द्वार पर दस्तक दी। फकीर ने अपनी पत्नीसे कहा: उठ, द्वार खोल दे। पत्नी द्वार के करीब सो रही थी। पत्नी ने कहा: इस आधी रात में जगह कहां है?

कोई अगर शरण मांगेगा तो तुम मना न कर सकोगे। वर्षा जोर की हो रही है। कोई शरण मांगने के लिए ही द्वार आया होगा। जगह कहां है? उसफकीर ने कहा: जगह? दो के सोने के लायक काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी होगी।

तू दरवाजा खोल! लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है। दरवाजा खोला। कोई शरण ही मांग रहा था; भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी। तीनों बैठकर गपशप करने लगे। सोने लायक तो जगह न थी।थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी। फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा: खोल।

पत्नी ने कहा: अब करोगे क्या, जगह कहां है? अगर किसी ने शरण मांगी? उस फकीर ने कहा: अभी बैठने लायक जगह है, फिरखड़े रहेंगे; मगर दरवाजा खोल। फिर दरवाजा खोला। फिर कोई आ गया। अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे। इतना छोटा झोपड़ा!और तब अंततः एक गधे ने आकर जोर से आवाज की, दरवाजे को हिलाया। फकीर ने कहा: दरवाजा खोलो। पत्नी ने कहा: अब तुम पागल हुए हो, यह गधा है, आदमी भी नहीं!

फकीर ने कहा: हमने आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारणखोला था। हमें गधे और आदमी में क्या फर्क? हमने मेहमानों के लिए दरवाजा खोला था। उसने भी आवाज दी है। उसने भी द्वार हिलाया है। उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम पूरा करना है। दरवाजा खोलो! उसकी औरत ने कहा: अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है!

उसने कहा: अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर सटकर खड़े होंगे। और याद रख एक बात कि यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो! यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!यह कहानी मैंने पढ़ी, तो मैं हैरान हुआ। उसने कहा: यह कोई अमीर का महल नहीं है जिसमें जगह न हो। यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है।

जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह हृदयों में होती है। अक्सर तुम पाओगे, गरीब कंजूस नहीं होता। कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं। पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे—जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे कंजूस होने लगता है; क्योंकि जैसे—जैसे पकड़ने को होता है, वैसे—वैसे पकड़ने का मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है। निन्यानबे का चक्कर पैदा हो जाता है। जिसके पास निन्यानबे रुपए हैं, उसका मन होता है कि किसी तरह सौ हो जाएं। तुम उससे एक रुपया मांगो, वह न दे सकेगा, क्योंकि एक गया तो अट्ठानबे हो जाएंगे।

अभी सौ की आशा बांध रहा था, अब हुए पूरे, अब हुए पूरे। नहीं दे पाएगा। लेकिन जिसके पास एक ही रुपया है, वह दे सकता है। क्योंकि सौ तो कभी होने नहीं हैं। यह चला ही जाएगा रुपया।

कहै वाजिद पुकार,
प्रवचन-९, ओशो

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