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Saturday, 26 March 2016

कल मुझसे कोई पूछता था कि मोरारजी देसाई खादी में पोलिएस्टर मिलाकर पोलिएस्टर खादी बनाना चाहते हैं। आपका इस संबंध मेंक्या ख्याल है?वे खादी पहनने

कल मुझसे कोई पूछता था कि मोरारजी देसाई खादी में पोलिएस्टर मिलाकर पोलिएस्टर खादी बनाना चाहते हैं। आपका इस संबंध मेंक्या ख्याल है?वे खादी पहनने वाले व्यक्ति हैं। और उनकोइससे बड़ा दुख हो रहा है कि खादी अशुद्ध होजाएगी। मैंने कहा: भाड़ में जाए तुम्हारी खादी। पोलिएस्टर अशुद्ध हो जाएगा। मैं सौ प्रतिशत पोलिएस्टर पहनता हूं। पोलिएस्टर अशुद्ध तो न करो। खादी तो तुम्हारी जाए जहां जाना हो।

खादी से मुझेकुछ लेना—देना नहीं है। खादी की बकवास इस देश को गरीब रखेगी। मैं तो पोलिएस्टर के पक्ष में हूं; मगर सौ प्रतिशत पोलिएस्टर! उसमें और खादी मिलाकर क्यों खराब करते हो? हर चीज को अशुद्ध करने को क्यों मोरारजी भाई तुले हैं?अब मजा यह है, अस्सी प्रतिशत उसमें पोलिएस्टर होगा, वह जो खादी बनने वाली है। उसका पोलिएस्टर खादी नाम होगा।

अस्सी प्रतिशत पोलिएस्टर होगा, बीस प्रतिशत खादी होगी। क्यों धोखा देते हो दुनिया को? क्या प्रयोजन है? साफ—साफ क्यों नहीं कहते कि पोलिएस्टर की जरूरत है, खादी की जरूरत नहीं है। यह बेईमानी क्यों कर रहे हो? अस्सी प्रतिशत पोलिएस्टर है तो सौ ही प्रतिशत क्यों नहीं? कम से कम शुद्ध तो होगा।

यह बीस प्रतिशत खादी डालकर किसको धोखा दे रहे हो?मगर हमारी पुरानी धारणाएं, उनको हम छोड़नानहीं चाहते। इसको हम पोलिएस्टर खादी कहेंगे। मगर खादी बनी रहेगी, खादी नहीं जाएगी। अब चरखे बना लिए हैं उन्होंने जो बिजली से चलेंगे। मगर उसको कहेंगे चरखा! चरखा ही चलाना है बिजली से, तो मिलों का क्या कसूर है? मगर हम अपनी पुरानी लीकों को बड़ी मुश्किल से छोड़ते हैं।

हम उनको पकड़े ही रखते हैं। जो चीज हमारी जिंदगी को खराब किए है, उसको भी हम जोर से पकड़े रखते हैं। हम चिल्लाए चले जाते हैं कि यह तो हम छोड़ेंगे नहीं। और अगर कभी मजबूरी में छोड़ना भी पड़ता है, क्योंकि जीवन बदला जाता है, सारा जगत बदल जाता है, तो भी हम आवरण रखते हैं।

बीस प्रतिशत खादी मिला देंगे, खादी का बहाना तो रहेगा। कहने को तो रहेगा, हम खादी पहने हुए हैं।गए दिन खादी के। और खादी के साथ कोई देश अमीर नहीं हो सकता। और मैं कोई कारण नहीं देखता कि देश अमीर क्यों न हो! मैं कोई कारण नहीं देखता कि लोग समृद्ध क्यों न हों! मैं कोई कारण नहीं देखता कि समृद्धि सादगी के विपरीत है। समृद्धि की भी एक सादगी होती है; सादगी की भी एक समृद्धि होती है।

दरिद्रता को ही सादगी के साथ क्यों जोड़ रखा है? दीनता को सादगी के साथ क्यों जोड़ रखा है? सौंदर्य की भी एक सादगी होती है।

आभिजात्य में भी एक सादगीहोती है। अगर सादगी ही चुननी है, तो कुछ ऊंचाई की सादगी चुनो, जो ज्यादा रसपूर्ण होगी, ज्यादा रुचिकर होगी।

कहै वाजिद पुकार,
    प्रवचन-९,
     ओशो

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