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Thursday, 17 March 2016

महावीर बारह वर्ष तक मौन खड़े रहे, जंगलों में, पर्वतों में, पहाड़ों में। जब अतिशय रस का अतिरेक हुआ, भागे आए। भाग गये थे जिस ब

महावीर बारह वर्ष तक मौन खड़े रहे, जंगलों में, पर्वतों में, पहाड़ों में। जब अतिशय रस का अतिरेक हुआ, भागे आए। भाग गये थे जिस बस्ती से, उसी में वापिस लौट आए; ढूंढ़ने लगे लोगों को, पुकारने लगे, बांटने लगे। अब घटा था अब इसे रखना कैसे संभव है! जैसे एक घड़ी आती है, नौ महीने के बाद, मां का गर्भ परिपक्व हो जाता है। फिर तो बच्चा पैदा होगा। फिर तो उसे नहीं गर्भ में रखा जा सकता।

अब तक संभाला, अब तो नहीं संभाला जा सकता। उसे बांटना होगा।शास्त्रों ने बहुत कुछ बात बहुत तरह सेमहावीर, बुद्ध और ऐसे पुरुषों का संसार का त्याग करके पहाड़ों और वनों में चले जाना, इसकी कथा कही है। लेकिन वह कथा अधूरी है। दूसरा हिस्सा, जो ज्यादा महत्वपूर्ण है, उन्होंने छोड़ ही दिया।

दूसरा हिस्सा जो ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह है उनका वापिस लौट आना लोक-मानस के बीच। एक दिन जरूर वे जंगल चले गये थे। तब उनके पास कुछ भी न था। जब गये थे तब खाली थे। खाली थे, इसीलिए गये थे, ताकि भर सकें। इस भीड़-भाड़ में, इस उपद्रव में, इस विषाद में, इस कलह में शायद परमात्मा से मिलना न हो सके।

तो गये थे एकांत में, गये थे मौन में, शांतिमें, ताकि चित्त थिर हो जाए, पात्रता निर्मित हो जाए। लेकिन भरते ही भागे वापिस।वह दूसरा हिस्सा ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि दूसरे हिस्से में ही वह असली में महावीर हुए हैं।

पहले हिस्से में वर्धमान की तरह गये थे। जब लौटे तो महावीर की तरह लौटे। जब बुद्ध गये थे तो गौतम सिद्धार्थ की तरह गये थे। जब आए तो बुद्ध की तरह आए। यह कोई और ही आया। यह कुछ नया ही आया।

जिन-सूत्र,
ओशो

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