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Thursday, 17 March 2016

मुल्ला नसरुद्दीन इंग्लैंड घूमने गया। लंदन हवाई अड्डे से होटल की दूरी लगभग दस मील थी। नसरुद्दीन को बोर होताहुआ देख टैक्सी ड्राइवर बोला :

मुल्ला नसरुद्दीन इंग्लैंड घूमने गया। लंदन हवाई अड्डे से होटल की दूरी लगभग दस मील थी। नसरुद्दीन को बोर होताहुआ देख टैक्सी ड्राइवर बोला :

“आपको होटल तक पहुंचने में करीब आधा घंटा लगेगा, तब तक आप कहीं ऊब न जाएं, इसलिए आपसे एक सवाल पूछता हूं; सवाल बड़ा कठिन नहीं है!”

मुल्ला ने कहा : “पूछो—पूछो! मेरे लिए कुछ कठिन नहीं है?”टैक्सी ड्राइवर बोला :”मेरे मां—बाप की एक ही संतान है, जो न मेरा भाई और न मेरी बहन है; बताइए वह कौन है?”

नसरुद्दीन बड़ी उलझन में फंस गया। उसने बहुत सिर मारा, लेकिन समझ ही न आए कि ऐसाहो ही कैसे सकता है! मां—बाप की संतान या तो भाई होगा या बहन होगी। अंततः सोचते—सोचते समय बीत गया, होटल आ गया।ड्राइवर ने व्यंग्य से पूछा :

“कहिए, महाशय जी! मैंने पहले ही कहा था न, सवाल बड़ा कठिन है; अच्छे—अच्छों को जवाब नहीं सूझता!”बेचारे मुल्ला ने हार मान ली। ड्राइवर ने बताया, “अरे, सीधी—सी बात है, मैं खुद अपने मां—बाप की संतान हूं,

एकमात्र, मगर न मैं खुद का भाई हूं, न खुद की बहन हूं।”जब नसरुद्दीन भारत वापस आया तो उसके मित्रों ने वापस लौटने की खुशी में एक पार्टी दी। मौका मिलते ही मुल्ला ने दोस्तों से वही सवाल पूछा। वह तो मौके की तलाश में ही था। बोला : “यारो, एक प्रश्न पूछता हूं। मेरे मां—बाप की एकऔलाद है, जो न रिश्ते में मेरा भाई लगता है और न बहन लगती है, तो बताओ वह कौन है?”

इस प्रश्न को सुनकर ढब्बूजी ने दांतों तले अंगुली दबा ली, चंदूलाल अपनी चांद पर हाथ फेरने लगे और मटकानाथ ब्‌राह्मचारी अपनी भारी—भरकम तोंद पर। भोंदूमल से तो फिर कोई आशा ही न थी। सबने पराजित होकर कहा :

मुल्ला, तुम्हीं जवाब दो, हमारी तो अक्ल काम नहीं करती, कि जो तुम्हारे मां—बाप की ही संतान है, किंतु न तुम्हारा भाई है, नबहन है, तो आखिर वह कौन हो सकता है फिर?”

गर्व से छाती फुलाकर नसरुद्दीन बोला : “अरे, वही लंदन का टैक्सी ड्राइवर!”उधार ज्ञान बस ऐसा ही हो सकता है। वह तुम्हारी प्रतिभा नहीं। वह तुम्हारी प्रज्ञा नहीं। वह तुम्हारा बोध नहीं। तुम दोहरा सकते हो, लेकिन दोहराने से तुम्हारे जीवन में कोई क्रांति घटित नहीं हो सकती है। और मैं चाहता हूं तुम्हारे जीवन में क्रांति घटित हो। मैं चाहता हूं तुम्हारे भीतर पड़ा हुआ बीज वृक्ष बने। फूल बने।

|| ओशो |•

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