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Thursday, 17 March 2016

★★★★ सजगता है एक मात्र उपाय ★★★★ छींकने जैसे बहुत सरल कृत्य भी उपाय कीतरह काम में लाए जा सकते हैं। क्योंकि वे कितने ही सरल दिखे, दरअसल वे बहुत जटिल हैं। और जो आंतरिक व्यवस्था है वहबहुत नाजुक चीज है।जब भी तुम्हें लगे कि छींक आ रही है, सजगहो जाओ।

★★★★ सजगता है एक मात्र उपाय ★★★★

छींकने जैसे बहुत सरल कृत्य भी उपाय कीतरह काम में लाए जा सकते हैं। क्योंकि वे कितने ही सरल दिखे, दरअसल वे बहुत जटिल हैं। और जो आंतरिक व्यवस्था है वहबहुत नाजुक चीज है।जब भी तुम्हें लगे कि छींक आ रही है, सजगहो जाओ।

संभव है कि सजग होने पर छींक न आए, चली जाए। कारण यह है कि छींक गैर - स्वैच्छिक चीज है -- अचेतन। तुम स्वेच्छा से, चाह कर नहीं छींक सकते हो, तुम जबरदस्ती नहीं छींक सकते हो।जब तुम छींक के आने के पूर्व सजग हो जाते हो - तुम उसे ला नहीं सकते,

लेकिन वह जब अपने आप ही आ रही हो और तुम सजग हो जाते हो - तो संभव है कि वह न आए। क्योंकि तुम उसकी प्रक्रिया में कुछ नयी चीज जोड़ रहे हो, सजगता जोड़ रहे हो।और जब सजगता आती है तो संभव है कि छींक नआए।

अगर तुम सचमुच सजग होगे, तो वह नहीं आएगी। शायद छींक एकदम खो जाए। तब तीसरीबात घटित होती है। जो ऊर्जा छींक की राह से निकलने वाली थी वह अब कहां जाएगी?वह ऊर्जा तुम्हारी सजगता में जुड़ जाती है। अचानक बिजली सी कौंधती है।

जो ऊर्जा छींक बनकर बाहर निकलने जा रही थीवही ऊर्जा तुम्हारी सजगता में जुड़ जाती है और तुम अचानक अधिक सावचेत हो जाते हो। बिजली की उस कौंध में बुद्धत्व भी संभव है।

~ ओशो ~
(तंत्र सूत्र, भाग #3, प्रवचन #41)

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