एक सूफी फकीर हज की यात्रा पर गया। बूढ़ा फकीर था, तो शिष्यों ने सोचा कि उसके लिए एक गधा ले आना ठीक है। उन इलाकों में लोग गधों से यात्रा करते। तो गधा ले आए। लेकिन बड़े चकित हुए। क्योंकि फकीर जब उस पर बैठा तो उलटा बैठा। गधे के सिर की तरफ उसने पीठ कर ली और पूंछ की तरफ मुंह कर लिया।
शिष्य कुछ कह न सके। क्या कहें? गुरु बहुत मान्य था और वह जो भी करता सदा ठीक ही करता। कोई राज होगा, मगर यह बड़ा बेहूदा लगता है।वे सब चले। जैसे ही गांव में प्रविष्ट हुए, लोग हंसने लगे। भीड़ लग गई। आवारा बच्चे पत्थर-कंकड़ फेंकने लगे। लोग बाहर निकल आए घरों के। बड़ा तमाशा होने लगा।
आखिर शिष्यों को भी बड़ी बेचैनी लगने लगी। वे भी नीचा देख कर चल रहे हैं,कि जिस गुरु के साथ हम जा रहे हैं, वह गधे पर उलटा बैठा हुआ है। बदनामी तो हमारी भी हो रही है। उनकी तो हो ही रही है, मगर हम भी तो उनके पीछे चल रहे हैं, तो लोग हम पर हंस रहे हैं।लोग उनसे भी कहने लगे, किसके पीछे जा रहे हो, दिमाग खराब हो गया है?
यह हज की यात्रा हो रही है? बहुत यात्राएं देखीं। यह तुम्हारा गुरु गधे पर उलटा क्यों बैठा है?आखिर उन्होंने कहा कि सुनिए–अपने गुरु को–कि इस बात को आप साफ ही कर दें।राज जरूर होगा। मगर हम बड़े मुश्किल मेंपड़ गए हैं।गुरु ने कहा, ऐसा है कि अगर मैं गधे पर सीधा बैठूं, तो मेरी पीठ तुम्हारी तरफ होगी। और कभी किसी गुरु की पीठ अपने शिष्यों की तरफ नहीं हुई। अगर तुम मेरेपीछे चलो, मैं गधे पर सीधा बैठूं तो मेरी पीठ तुम्हारी तरफ होगी। यह भी हो सकता है। क्योंकि मैंने सभी विकल्प सोच लिए तुम आगे चलो, मैं गधे पर पीछे बैठकर सीधा चलूं तो तुम्हारी पीठ गुरु की तरफ होगी। जब गुरु की पीठ भी क्षमा योग्य नहीं है कि शिष्य की तरफ हो, तो शिष्य की पीठ गुरु की तरफ हो तो यह तो अक्षम्य अपराध हो जाएगा।
तो यही एक सुगम उपाय है, कि मैं गधे पर उलटा बैठूं,तुम मेरे पीछे चलो। आमने-सामने हम रहे।कहानी बड़ी प्रीतिकर है। बड़ी रहस्यपूर्ण है।कबीर कहते हैं, आगे थे सदगुरु मिला।गुरु सदा आगे से मिलता है। गुरु सदा तुम्हारे आमने-सामने मिलता है। वह तुम्हारी आंखों में आंखें डाल कर देखेगा। वह तुम्हारे हृदय से हृदय की बातें कहेगा।वह तुम्हारे सम्मुख होगा। वह तुम्हें अपने सम्मुख करेगा। यह मिलन सीधा-सीधा है। आमने-सामने है। यह साक्षात्कार है।
कहे कबीर दीवाना,
प्रवचन-२, ओशो
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