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Thursday, 17 March 2016

महावीर और बुद्ध के कारण भारत के वे भूमिखंड जहां वे जीए, "विहार' कहलाने लगा। लेकिन विहार शब्द को समझना। विहार का मतलब है

महावीर और बुद्ध के कारण भारत के वे भूमिखंड जहां वे जीए, "विहार' कहलाने लगा। लेकिन विहार शब्द को समझना। विहार का मतलब है-

विहार बड़े सुख की, महासुख की दशा है--जब चित्त बिलकुल स्थिर हो जाता है, जब कोई चीज डांवांडोलनहीं करती, कोई विकल्प मन में नहीं रह जाते और चित्त निर्विकल्प होता है; जब तुम्हारी दिशा सत्य की तरफ सीधी और साफहो जाती है, जब तुम रोज-रोज रास्ते नहींबदलते, जब तुम्हारा प्रवाह संयत हो जाता है, तब तुम्हारे जीवन में एक महासुख का आविर्भाव होता है

वैसे महासुखी का जहां-जहां विचरण होता है, वह भूमिखंड भी सुख से भर जाता है; वह भूमिखंड भी, हवा के कण भी, वृक्ष-पहाड़-पर्वत भी, नदी-नाले भी उसकी आंतरिक-आभा को झलकाने लगते हैं।कथाएं हैं बड़ी प्यारी कि महावीर जहां से निकल जाते, कुम्हलाये वृक्ष हरे हो जाते। महावीर जहां से निकल जाते, असमय में वृक्षों में फूल लग जाते। ऐसा हुआ होगा, ऐसा मैं नहीं कहता हूं। ऐसा होना चाहिए, ऐसा जरूर कहता हूं।

जिन्होंने ये कहानियां गढ़ी हैं, उन्होंने बड़े गहरे काव्य को अभिव्यक्ति दी है। उन्होंने जीवन के सत्य को बड़ी गहरी भाषा दी है। मानता नहीं कि वृक्षों ने ऐसा किया होगा--आदमी नहीं करते, वृक्षों की तो बात क्या; आदमी नहीं खिलते, तो वृक्षों की तो बात क्या है--लेकिन ऐसा होना चाहिए। लेकिन अगर वृक्षों में फूल न खिले हों तो जिन्होंने कहानी लिखी उनका कोई दोष नहीं,

वृक्षों की भूल रही होगी। वे चूक गये। इसमें कवि क्या करे! कवि ने तो बातठीक-ठीक कह दी, ऐसा होना चाहिए था। नहींहुआ, वृक्ष नासमझ रहे होंगे। अगर असमय फूल न खिले, तो चूक फूलों की है; उसमें महावीर क्या करें? महावीर ने स्थिति तो पैदा कर दी थ

वृक्षों में थोड़ी भी समझ होती तो फूल खिलने चाहिए थे। वातावरण मौजूद था--और मौसम क्या चाहिए,महावीर मौजूद थे! अब किसकी और प्रतीक्षा थी? और किस वसंत की अब अभीप्सा है? वसंत मौजूद था। इससे बड़ा वसंत कभी पृथ्वी पर आया है? खिले हों तोठीक, न खिले हों, फूलों की गलती; महावीर का कोई कसूर नहीं है।

तुममें से भी बहुत महावीर के पास से गुजरे होंगे, क्योंकि नया तो यहां कोई भी नहीं है। सभी बड़े पुराने यात्री हैं। जराजीर्ण! सदियों-सदियों चले हैं। तुममें से भी कुछ जरूर महावीर के पास गुजरे होंगे। नहीं महावीर, तो मुहम्मद के पास गुजरे होंगे। नहीं मुहम्मद, तो कृष्ण के पास गुजरे होंगे।

ऐसा तो असंभव है इस विराऽऽऽट और अनंत की यात्रा में तुम्हें कभी कोई महावीर-जैसा पुरुष न मिला हो। अगर तुम्हारे फूल न खिले, तो कसूर तुम्हारा है। मौसम तो आया था, द्वार पर खड़ा था, वसंत ने तो दस्तक दी थी, तुम सोये पड़े रहे। तालमेल बैठ जाए, फूल खिल जाते हैं।

जिन-सूत्र,
भाग-२,
ओशो

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