बाबा साहब के आज के नुमाईंदे :
बाबा साहब के लोगों के बीच घूमते हुए कुछ अनुभव हुआ ।
कभी सोचता हूँ कि अगर बाबा साहब नहीं होते तो क्या होता आज ?
ये सोचने मात्र से ही चक्कर आने लगता है।
क्या हम ठंढा गर्म वाली कार में घूम पाते ?
क्या अपने घर में AC लगा कर 51 इंच का टेलीविजन का मजा ले रहे होते ?
क्या कोई घर पे आये तो उसके पास पंहुचने के लिए 4 दरवाजे का इंटरलॉक खोलकर जा पाते ?
या मेरा मन करे तो दरवाजा खोलें या बिना दरवाजा खोले ही उनसे बात करें ऐसा कर पाते ?
इतनी आरामदायक और सुरक्षित जिंदगी के सूत्रधार और कोई नहीं हमारे महापुरुष ही हैं।
क्या वे लोग ऐसी जिंदगी जी पाये ?
क्या वे इसके हकदार नहीं थे ?
फिर भी उन्होंने अपनी जिंदगी आराम करने में क्यों नहीं बिताई।
क्योंकि अगर वे सुख चैन की जिंदगी बिताये होते तो हमें सुख चैन और आनंद नहीं मिलता।
यही सही है।
इसलिए अगर हम अपनी आरामदायक जिंदगी जो कि हमारे महापुरुषों के बदौलत है को 30 मिनट के लिए त्याग करें और उनके विचारों से अपने समुदाय को जगाने में खर्च करें तो हमारी आने वाली पीढ़ी का जीवन भी आरामदायक हो जायेगा।
मैं हमेशा एक बात सोचता हूँ
कि मैं अपने परदादा का नाम तक नहीं जानता पर ज्योतिबा फुले को जानता हूँ।
ऐसा मैं सोचता हूँ।
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