गुरु का एक ही अर्थ है: जो तुम्हारी नींद तोड़ दे। इसलिए तुम गुरु से बचोगे, भागोगे क्योंकि नींद बड़ी सुखद है। और नींद का टूटना हमेशा दुखद है। जो भी तुम्हारी नींद तोड़ेगा, उस पर तुम नाराज होओगे क्योंकि वह तुम्हें बेचैनी में डाल रहा है। तुम नींद से व्यवस्थित हो गये हो। सब ठीक चल रहा था, सपना भी अच्छा था, सब ठीक था। कोई आ गया, उसने नींद झकझोर दी। अब सब अस्त-व्यस्त होगा। अब पुराना सब जायेगा और नया फिर से संयोजन करना होगा। इसलिए गुरु शुरू में तो कष्टदायी मालूम पड़ता है, दुखदायी मालूम पड़ता है।इसलिए जो गुरु तुम्हें शुरू से सांत्वना देता हो, समझना कि वह नींद की दवा होगा; गुरु नहीं है। जो तुम्हें पुचकारता, थपकारता हो और कहता हो सब ठीक है, उससे बचना। वह गुरु नहीं है। जब तुम सो रहे होओगे, वह तुम्हारी जेब काट लेगा; और कुछ इससे ज्यादा होने वाला नहीं है।जब भी तुम गुरु के पास जाओगे तो वह कहेगा, कुछ भी ठीक नहीं है, तुम बिलकुल गलत हो। तुम पागल हो। तुम नींद में हो। तुम अस्वस्थ हो। वह तुम्हारे अहंकार को कोई तृप्ति न देगा।
वह सब तरफ से तुम्हें तोड़ेगा, मिटायेगा, जलायेगा।
गुरु तो मृत्यु जैसा है।
और मृत्यु से ही गुजरकर अमृत उपलब्ध होता है।
ओशो
बिन बाती बिन तेल–
(झेन कथा)प्रवचन–7
Sunday, 13 March 2016
OSHO गुरु का एक ही अर्थ है: जो तुम्हारी नींद तोड़ दे।
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