अशांति का नाम ही मन है। जब तक अशांति है तब तक मन है; नहीं तो मन भी नहीं। जहां शांति हुई वहां मन तिरोहित हुआ।
ऐसा समझें—तूफान आया है, लहरों में सागर की। फिर हम कहते हैं, तूफान शांत हो गया। जब तूफान शांत हो जाता है तो क्या सागर तट परखोजने से शांत तूफान मिल सकेगा?
हम कहते हैं, तूफान शांत हो गया तो पूछा जा सकता है, शांत तूफान कहां है? शांत तूफान होता ही नहीं। तूफान का नाम ही अशांति है।
शांत तूफान—मतलब तूफान मर गया, अब तूफान नहीं है। शांत मन का अर्थ, मन मर गया, अब मननहीं है।
चाह के छूटने का अर्थ, संसार गया,अब नहीं है।
जहां चाह नहीं, वहां परमात्मा है।
जहां चाह है, वहां संसार है। इसलिए परमात्मा की चाह नहीं हो सकती और अनचाहा संसार नहीं हो सकता।
यह दो बातें नहीं हो सकतीं।मैं कहता आँखन देखी -
32ओशो
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