एक छोटा सा बच्चा समुद्र की रेत पर अपने हस्ताक्षर कर रहा था। वह बड़ी बारीकी से, बड़ी कुशलता से अपने हस्ताक्षर बना रहा था। एक का उससे कहनेलगा, पागल, तू हस्ताक्षर कर भी न पाएगा, हवाएं आएंगी और रेत बिखर जाएगी। व्यर्थ मेहनत कर रहा है, समय खो रहा है, दुख को आमंत्रित कर रहा है।
क्योंकि जिसे तू बनाएगा और पाएगा कि बिखर गया, तो दुख आएगा। बनाने में दुख होगा, फिर मिटने में दुख होगा। लेकिन तू रेत पर बना रहा है, मिटना सुनिश्चित है। दुख तूबो रहा है। अगर हस्ताक्षर ही करने हैं तो किसी सख्त, कठोर चट्टान पर कर, जिसे मिटाया न जा सके।
मैंने सुना है कि वह बच्चा हंसने लगा और उसने कहा, जिसे आप रेत समझ रहे हैं, कभी वह चट्टान थी; और जिसे आप चट्टान कहते हैं, कभी वह रेत हो जाएगी।बच्चे रेत पर हस्ताक्षर करते हैं, बूढ़े चट्टानों पर हस्ताक्षर करते हैं, मंदिरों के पत्थरों पर। लेकिन दोनों रेत पर बना रहे हैं।
रेत पर जो बनाया जा रहा है वह झूठ है, वह असत्य है। हम सारा जीवन ही रेत पर बनाते हैं। हम सारी नावें ही कागज की बनाते हैं। और बड़े समुद्र में छोड़ते हैं, सोचते हैं कहीं पहुंच जाएंगे। नावें ड़बती हैं, साथ हम ड़बते हैं।
रेत के भवन गिरते हैं, साथ हम गिरते हैं। असत्य रोज—रोज हमें रोज—रोज पीड़ा देता और हम रोज—रोज असत्य की पीड़ा से बचने को और बड़े असत्य खोज लेते हैं। तब जीवन सरल कैसे हो सकता है?
असत्य को पहचानें कि मेरे जीवन का ढांचा कहीं असत्य तो नहीं है? और हम इतने होशियार हैं कि हमने छोटी—मोटी चीजों में असत्य पर खड़ा किया हो अपने को, ऐसा ही नहीं है, हमने अपने धर्म तक को असत्य पर खड़ा कर रखा है।
जीवन रहस्य ( प्रवचन 12)
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