NEWS UPDATE

Blogger Tips and TricksLatest Tips And TricksBlogger Tricks

Thursday, 31 March 2016

जीवन की मृत्यु नहीं औरमृत का जीवन नहींएकबार ऐसा हुआ कि किसी साधु का शिष्य मर गया था।वह साधु उस शिष्य के घर गया।

जीवन की मृत्यु नहीं औरमृत का जीवन नहींएकबार ऐसा हुआ कि किसी साधु का शिष्य मर गया था।वह साधु उस शिष्य के घर गया।

उसके शिष्य की लाशरखी थी और लोग रोते थे। उस साधु नेजाकर जोर से पूछा, 'यह मनुष्य मृत है या जीवित?

'इस प्रश्न से लोग बहुत चौंके और हैरान हुए। यह कैसा प्रश्नथा! लाश सामने थी और इसमें पूछने कीबात ही क्या थी?

थोड़ी देरसन्नाटा रहा और फिर किसी ने साधु से प्रश्न किया,'आप ही बतावें?

' जानते हैं कि साधु ने क्या कहा? साधुने कहा, 'जो मृत था, वह मृत है; जो जीवित था, वहअभी भी जीवित है। केवलदोनों का संबंध टूटा है।

'जीवन की कोई मृत्युनहीं होती है और मृत का कोईजीवन नहीं होता है।जीवन कोजो नहीं जानते हैं, वे मृत्यु को जीवन काअंत कहते हैं।

जन्म जीवन का प्रारंभनहीं है और मृत्यु उसका अंत नहीं है।जीवन, जन्म और मृत्यु के भीतरभी है और बाहर भी है। वह जन्म केपूर्व भी है और मृत्यु के पश्चात भी है।

उसमें ही जन्म है, उसमें ही मृत्यु है;पर न उसका कोई जन्म है, न उसकी कोई मृत्यु है।एक शवयात्रा से लौटा हूं। वहां चिता सेलपटें उठीं, तोलोग बोले, 'सब समाप्त हो गया।' मैंने कहा, 'आंखें नहींहैं, ऐसा इसलिए लगता है।

'ओशो

No comments:

Post a Comment