तुम अपने प्रेम को शुद्ध करो। तुम उसे प्रार्थना बनाओ। तुम दो ,और मांगने की इच्छा मत करो। और तुम जिसे दो, उस पर कब्जा न करो। और तुम जिसे दो, उस से अपेक्षा धन्यवाद की भी मत करो।
उतनी अपेक्षा भी सौदा है। और तुम दो, क्योंकितुम्हारे पास है। और मैं तुम से कहता हूं कि तुम अगर दोगे, तो हजार गुना तुम्हारे पास आएगाःमगर मांगो मत। भिखमंगों के पास नहीं आता है, सम्राटों के पास आता है।
जो मांगते हैं उनके पास नहीं आता। तुम मांगो ही मत। एक बार यह भी तो प्रयोग करके देखो कि तुम चाहो और दो, मगर मांगो मत।नेकी कर और कुएं में डाल। पीछे लौटकर ही मत देखो, धन्यवाद की भी प्रतीक्षा मतकरो।
और तुम पाओगे, कितने लोग तुम्हारे निकट आते हैं! कितने लोग तुम्हारे प्रेम के लिए आतुर हैं! कितने लोग तुम्हारे पास बैठना चाहते है! कितने लोग तुम्हारी मौजूदगी से अनुगृहीत हैं!
दुनिया में प्रेम बहुत शक्तिशाली संजीवनी है; प्रेम से अधिक कुछ भी गहरा नहीं जाता। यह सिर्फ शरीर का ही उपचार नहीं करता, सिर्फ मन का ही नहीं, बल्कि आत्मा का भी उपचार करता है।
यदि कोई प्रेम कर सके तो उसके सभी घाव विदा हो जाएंगे।तब तुम पूर्ण हो जाते हो--और पूर्ण होना पवित्र होना है। अब जब तक कि तुम पूर्ण नहीं हो, तुम पवित्र नहीं हो।
शारीरिक स्वास्थ्य सतही घटना है। यह दवाई के द्वारा भी हो सकता है, यह विज्ञान के द्वारा भी हो सकता है।लेकिन किसी का आत्यंतिक मर्म प्रेम से ही स्वस्थ हो सकता है।
वे जो प्रेम का रहस्य जानते हैं वे जीवन का महानतम रहस्य जानते हैं। उनके लिए कोई दुख नहीं बचता, कोई बुढ़ापा नहीं, कोई मृत्यु नहीं।
निश्चित ही शरीर बूढ़ा होगा और शरीर मरेगा, लेकिन प्रेम यह सत्य तुम पर प्रगट करता है कि तुम शरीर नहीं हो।तुम शुद्ध चेतना हो, तुम्हारा कोई जन्म नहीं है, कोई मृत्यु नहीं है। और उस शुद्ध चेतना में जीना जीवन की संगति में जीना है.........
�ओशो
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