तुमने कभी अपने साथ लुका-छिपी खेली? कभी तुमने ताशों का खेल खेला अकेले ही? कभी-कभी ट्रेन में मैं यात्रा करता था, तो कुछ लोग मिल जाते अकेले, मेरे डिब्बेमें होते। वे कहते,’’ आप साथ देंगे’’? ‘’मैं जरा और दूसरे खेल में लगा हूं, आप बाधा न दें’’। तो फिर वे अकेले ही ताश बिछा लेते।
अकेले ही दोनों तरफ से चालें चल रहे हैं।परमात्मा दोनों तरफ से चालें चल रहा है। राम में भी वही है और रावण में भी वही। और अगर रामायण पढ़कर तुम को यह न दिखाई पड़ा कि रावण में भी वही है तो तुम चूक गए, रामायण समझ न पाए।
अगर यही दिखाई पड़ा कि राम में ही केवल है तो बस भूल गए, भटके। रावण में भी वही है।अंधेरा भी उसी का है, रोशनी भी उसी की है। बोलता भी वही मुझसे है, सुनता भी वही तुममें है। तुम जिसे खोज रहे हो वह तुम में ही छिपा है। खोजता भी वही है, खोजा जा रहा भी वही है।
जिस दिन जानोगे, जागोगे, उस दिन हसोगे।झेन फकीर बोकोजू परम ज्ञान को उपलब्ध हुआ तो लोगों ने उससे पूछा कि’’ परम ज्ञान को उपलब्ध होने के बाद तुमने पहली बात क्या की’’ उसने कहा,’’ और क्या करते? ’’ एक प्याली चाय की मांगी’’। लोगों ने कहा,’’ प्याली चाय की! परम ज्ञान और प्याली चाय की’’ ! उसने कहा,’’ और क्या करते?
जब सारा खेल समझ में आया कि अरे, वही खोज रहा है, वही खोजा जा रहा है। तो और क्या करते? सोचा कि चलो बहुत हो गया, बड़ी लंबी खोज को गये, एक प्याली चाय की पी लें। हंसे खूब’’!
भक्ति-सूत्र(नारद),
प्रवचन-१६,
ओशो
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