जहां-जहां अहंकार चेष्टा करता हैवहीं-वहीं बलात्कार हो जाता है।यह बलात्कार अनेक रूपों में है।लेकिन फिर भी हम जो देखेंगे,हम सदा ऐसा ही देखेंगे कि अगर एक व्यक्ति किसी स्त्री के साथ रास्ते पर बलात्कार कर रहा हो, तो सदा बलात्कार करनेवाला हीजिम्मेवार मालूम पड़ेगा।
लेकिन हमें खयाल नहीं है कि स्त्री बलात्कार करवाने के लिए कितनी चेष्टाएं कर सकती है। क्योंकि अगर पुरुष को इसमें रस आता है कि वह स्त्री को जीत ले तो स्त्री को भी इसमें रस आता है कि वह किसी को इस हालत में ला दे।
कीर्कगार्ड ने अपनी एक अदभुत किताब लिखी है— डायरी आफ ए सिडयूसर, एक व्यभिचारी की डायरी। उसमें कीर्कगार्ड ने लिखा है कि वह जो व्यभिचारी है, जो डायरी लिख रहा है, एक काल्पनिक कथा है।
वह व्यभिचारी जीवन के अंत में यह लिखताहै कि मैं बड़ी भूल में रहा, मैं समझता था,मैं स्त्रियों को व्यभिचारके लिए राजी कर रहा हूं। आखिर में मुझे पता चला कि वे मुझसे ज्यादा होशियार हैं कि उन्होंने ही मेरे साथ व्यभिचार करवा लिया था । दे सिडयूस्ड मी। दैट टेकनीक वाज निगेटिव।इसलिए मुझे भ्रम बना रहा।
कोई स्त्री कभी प्रस्ताव नहीं करती किसी पुरुष से विवाह करने का। प्रस्ताव करवा लेती है पुरुष से ही। इंतजाम सब करती है कि वह प्रस्ताव करे। प्रस्ताव करती नहीं है।यह स्त्री और पुरुष के मन का भेद है।स्त्री के मन का ढंग बहुत सूक्ष्म है।
आप देखते हैं कि अगर एक आदमी जा रहा है एक स्त्री को धक्का मारने, तो फौरन हमेंलगता है कि गलती इसने किया।और वह स्त्री घर से पूरा इंतजाम करके चली है कि अगर कोई धक्का न मारे तो उदास लौटेगी। धक्का मारे तो भी चिल्ला सकती है। लेकिन चिल्लाने का कारण जरूरी नहीं है कि धक्का मारने पर नाराजगी है।
चिल्लाने का सौ में निन्यानबे कारण यह है कि बिना चिल्लाये किसी को पता नहीं चलेगा कि धक्का मारा गया।पर यह बहुत गहरे में उसको भी पता न हो, इसकी पूरी संभावना है। क्योंकि स्त्रीजितनी बन-ठनकर, जिस व्यवस्था से निकल रही है, वह धक्का मारने के लिए पूरा का पूरा निमंत्रण है।
उस निमंत्रण में हाथ उनका है। हमारे सोचने के जो ढंग हैं वे एकदम हमेशा पक्षपाती हैं। हम हमेशा सोचते हैं,कुछ हो रहा है तो एक आदमी जिम्मेवार है। हमें खयाल ही नहीं आता कि इस जगत में जिम्मेवारी इतनी आसान नहीं, ज्यादा उलझी हुई है।दूसरा भी जिम्मेवार हो सकता है। और दूसरे की जिम्मेवारी गहरी भी हो सकती है। कुशल भी हो सकती है। चालाक भी हो सकती है। सूक्ष्म भी हो सकती है।
महावीर वाणी,
भाग-१,
प्रवचन#६,
ओशो
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