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Saturday, 19 March 2016

सुख का अर्थ है, भीतर से संबंध जुड गया:ओशो--------------------------------------------------------------

सुख का अर्थ है, भीतर से संबंध जुड गया:ओशो--------------------------------------------------------------

भीतर से जब भी कोई जुड जाता है, सुख मिलता है ।और भीतर से जब भी संबंध छूट जाता है, दुख मिलता है ।

जहां -जंहा सुख मिलता हो वहां -वहां आंख बंद करके गौर से देखो ----भीतर से आ रहा या बाहर से ? तुम सदा पाओगे, भीतर से आ रहा है ।

और जंहा -जंहा जीवन में दुख मिलता हो, वहां भी गौर से देखना; तुम सदा पाओगे, दुख का इतना ही अर्थ होता है, भीतर से संबंध छूट गया ।

जिस घडी में भी तुम अपने से जुड जाते हो,सुख बरस जाता है । जिस घडी में भी तुम अपने से टुट जाते हो , दुःख बरस जाता है ।

किसी ने गाली देदी, दुःख मिलता है । लेकिनतुम समझना, गाली तुम्हें उत्तेजित कर देती है ।तुम भूल जाते हो अपने को । तुम्हारा भीतर से संबंध छूट जाता है । एक क्षण में तुम्हारे बावले हो जाते हो ।

उद्विग्न, विक्षिप्त । टूटे गया संबंध भीतर से ।मित्र आ गया बहुत दिन का बिछुड़ा, वर्षों की याद । हाथ में हाथ ले लिया, गले से गले लगा गए ।एक क्षण को भीतर से संबंध जुड गया।इस मधुर क्षण में, मित्र की मौजूदगी में तुम अपने से जुड गए ।

एक क्षण को भूल गईं चिंताएं, दिन के बोझ खो गए । एक क्षण को अपने में डूब गए । यह मित्र केवल निमित्त है ।

इस सत्य को धीरे-धीरे पहचानने लगता है जबकोई ,तो धीरे-धीरे निमित्त को त्यागने लगता है । फिर बैठ जाता है अकेला । इसी का नाम ध्यान है ।

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