ओशो-दर्शन
कुछ वर्ष पहले पहलगांव (कश्मीर) में एक घटना घटी, जो मुझे भूले नहीं भूलती। एक वृक्ष के नीचे बैठा था। ऊंचाई पर वृक्षमें छोटा—सा एक घोंसला था,
और जो घटना उस घोंसले में घट रही थी उसे मैं देर तक देखता रहा, क्योंकि वही घटना शिष्य और गुरु के बीच घटती है। कुछ ही दिन पहले अंडा तोड़कर किसी पक्षी का एक बच्चा बाहर आया होगा, अभी भी वह बहुत छोटा है।
उसके माता—पिता दोनों कोशिश कर रहे हैं कि वह घोंसले पर पकड़ छोड़ दे और आकाश में उड़े। वे सब उपाय करते हैं। वे दोनों उड़ते हैं आसपास घोंसले के, ताकि वह देख ले कि देखो हम उड़ सकते हैं, तुम भी उड़ सकते हो।
लेकिन अगर बच्चे को सोच—विचार रहा हो तो बच्चा सोच रहा होगा, तुम उड़ सकते हो, उससे क्या प्रमाण कि हम भी उड़ सकेंगे; तुम तुम हो, हम हम हैं; तुम्हारे पास पंखहैं—माना, लेकिन मेरे पास पंख कहां हैं?क्योंकि पंखों का पता तो खुले आकाश मेंउड़ो तभी चलता है;
उसके पहले पंखों का पता ही नहीं चल सकता है। कैसे जानोगे कि तुम्हारे पास भी पंख हैं, अगर तुम चले ही नहीं, उड़े ही नहीं?तो बच्चा बैठा है किनारे घोंसले के, पकड़े है घोंसले के किनारे को जोर से; देखता है, लेकिन भरोसा नहीं जुटा पाता। मां—बाप लौट आते हैं, फुसलाते हैं, प्यार करते हैं; लेकिन बच्चा भयभीत है।
बच्चा घोंसले को पकड़ रखना चाहता है, वह ज्ञात है। वह जाना—माना है। और छोटी जान और इतना बड़ा आकाश! घोंसला ठीक है, गरम है, सब तरफ से सुरक्षित है; तूफान भीआ जाए तो भी कोई खतरा नहीं है, भीतर दुबकरहेंगे।
सब तरह की कोशिश असफल हो जाती है। बच्चा उड़ने को राजी नहीं है।यह अश्रद्धालु चित्त की अवस्था है। कोई पुकारता है तुम्हें, आओ खुले आकाश में, तुम अपने घर को नहीं छोड़ पाते।
तुम अपने घोंसले को पकड़े हो। खुला आकाश बहुत बड़ा है, तुम बहुत छोटे हो। कौन तुम्हें भरोसा दिलाए कि तुम आकाश से बड़े हो? किस तर्क से तुम्हें कोई समझाए कि दो छोटे पंखों के आगे आकाश छोटा है?
कौन—सा गणित तुम्हें समझा सकेगा? क्योंकि नापजोख की बात हो तो पंख छोटे हैं, आकाश बहुत बड़ा है। पर बात नाप—जोखकी नहीं है। दो पंखों की सामर्थ्य उड़नेकी सामर्थ्य है: बड़े से बड़े आकाश में उड़ा जा सकता है।
और पंख पर भरोसा आ जाए तो आकाश शत्रु जैसा न दिखाई पड़ेगा, स्वतंत्रता जैसा दिखाई पड़ेगा; आकाश मित्र हो जाएगा।परमात्मा में छलांग लेने से पहले भी वैसा ही भय पकड़ लेता है।
गुरु समझाता है, फुसलाता है, डांटता है, डपटता है, सब उपाय करता है—किसी तरह एक बार…।
-ओशो -
सुन भई साधो–(प्रवचन–17)
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