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Tuesday, 15 March 2016

,,,,,,,संभोग से समाधिकी और,,,,,,एक आदमी बीमार था और बीमारी कुछ उसे ऐसी थी कि दिन रात उसेभूख लगता थी। सच तो यह है कि उसे बीमारी कुछ भी नहीं थी। भोजन केसंबंध में उसने कुछ विरोध की किताबें पढ़ली थी। उसने पढ़ लिया था कि भोजन पाप है। उपवास पुण्य है। कुछ भी खाना हिंसा है।

जितना वह यह सोचने लगा कि भोजन करना पाप है, उतना ही भूख को दबाने लगा। जितना भूख को दबाने लगा, भूखअसर्ट करने लगी। जो से प्रकट होने लगी।

तो वह दो चार दिन उपवास करता था और एक दिन पागल की तरह से कुछ भी खा जाता था। जब कुछ भी खा लेता था तो बहुत दुख होता था।

क्योंकि फिर खाने की तकलीफ झेलनी पड़ती थी। फिर पश्चाताप में दो-चार दिन उपवास करता था। और फिर कुछ भी खा लेता था।

आखिरउसने तय किया कि यह घर रहते हुए न हो सकेगा ठीक मुझे जंगल चल जानचाहिए।वह पहाड़ पर गया। एक हिल स्टेशन परजाकर एक कमरे में रहा।

घर के लोग भी परेशान हो गये। उसकी पत्नी ने यह सोच कर की शायद वह पहाड़ पर अब जाकर भोजन की बीमारियों से मुक्त हो जायेगा।

उसने बहुत से फूल पहाड़ पर भिजवाये। और कहलवाया कि मैं बहुत खुश हूं कि तुम शायद पहाड़ से स्वस्थ होकर लौटोगे। मैं शुभ कामना के रूप में ये फूल भेज रही हूं।

उस आदमी का वापस तार आय। तार में लिख था—‘’मेनी थैंक्स फॉर दी फ्लावर्स, दे आर सो डैलिसियस’’ उसने तार किया कि बहुत धन्यवाद फूलों के लिए, बड़े स्वादिष्ट है।

वह फूलों को खा गया, वहां पहाड़ पर जो फूल उसको भेजे गये थे। अब कोई आदमी भोजन से लड़ाई शुरू कर देगा। वह फूलों को खा सकता है।

आदमी सेक्स से लड़ाई शुरू किया ओर उसने क्या-क्या सेक्स के नाम पर खाया,इसका आपने कभी हिसाब लगाया? आदमी कोछोड़ कर, सभ्य आदमी को छोड़ कर, होमोसेक्सुअलिटीकहीं है? जंगल में आदिवासी रहते है, उन्होंने कभी कल्पना भीनहीं की कि होमोसेक्सुअलिटीभी कोई चीज होती है।

कि पुरूष और के साथ संभोग कर सकता है। ये सब कल्पना के बहार की बात है।मैं आदि वासियों के पास रहा हूं, मैंने कहां की सभ्य लोग इस तरह भी करते है, वे कहने लगे हमारे विश्वास के बहार की बातहै। यह कैसे हो सकता है?लेकिन अमेरिका में उन्होंने आंकड़े निकाले है—

पैंतीस प्रतिशत लोग होमोसेक्सुअल है। और बेल्जियम और स्वीडन और हॉलैंड मेंहोमोसेक्सुअल के क्लब हे, सोसाइटी है, अख़बार निकलते है और सरकार से यह दावा करते है कि होमोसेक्सुअलिटीके ऊपर से कानून उठा दिया जाना चाहिए।

हम तो यह मानते है होमोसेक्सुअलिटीठीक है। इसलिएहमको हकमिलना चाहिए। कोई कल्पना नहीं कर सकता कि यह होमोसेक्सुअलिटीकैसे पैदा हो गई।

सेक्स के बाबत लड़ाई का यह परिणाम है।जिन सभ्य समाज है, उतनी वेश्याएं है। कभी आपने सोचा कि वेश्याएं कैसे पैदा हो गयी? किसी आदिवासी गांव में जाकर वेश्या खोज सकते हे आप। आज भी बस्तर के गांव में वेश्या खोजनी मुश्किल है।

और कोई कल्पना में भी मानने को राज़ी नहीं होगा कि स्त्रीयां ऐसी भी हो सकती है। जो अपनी इज्जतबेचती हो। अपना संभोग बेचती हो।

लेकिन सभ्य आदमी जितना सभ्य होता चला गया। उतनी वेश्याएं बढ़ती चली गयी—क्यों?यह फूलों को खाने की कोशिश शुरू हुई है। और आदमी की जिंदगी में कितने विकृत रूप से सेक्स ने जगह बनायी है,

इसका अगर हम हिसाब लगाने चलेंगे तो हैरान रह जायेंगे कि आदमी को क्या हुआ है? इसका जिम्मा किस पर, किन लोगों पर।इसका जिम्मा उन लोगों पर है, जिन्होंने आदमी को—सेक्स कोसमझना नहीं लड़ना सिखाया। जिन्होंने सप्रेशन सिखाया है,

जिन्होंने दमन सिखाया हे। दमनके कारण सेक्स की शक्ति जगह-जगह से फूट कर गलत रास्तों से बहनी शुरू हो गयी है। हमारा सारा समाज रूग्ण और पीड़ित हो गया है।

इस रूग्ण समाज को अगर बदलना है तो हमें यह स्वीकार कर लेना होगा कि काम का आकर्षण है।क्यों है काम का आकर्षण? ,,,

         ओशो

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