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Monday, 11 April 2016

भगवान! पंडित -पुरोहित मनुष्य कोजगाने के क्यों सदा सेविरोधी है? और जन -सामान्य क्यों उनकेजालों में बार-बारउलझ जाता है? ‘रामस्वरूप!पंडित -पुरोहित का

भगवान! पंडित -पुरोहित मनुष्य कोजगाने के क्यों सदा सेविरोधी है? और जन -सामान्य क्यों उनकेजालों में बार-बारउलझ जाता है?

‘रामस्वरूप!पंडित -पुरोहित का अर्थहोता है! वह जो स्वयं तोजागा हुआ नहीं है, लेकिनजागे हुए लोगों के वचनोंका व्यापार कर रहा है।जो स्वयं तो अनुभव नहींकिया है, लेकिन अनुभवीजो संपदा छोड़ गये हैं उसपर फन मारकर बैठ गयाहै, उस पर कब्जा करलिया है।

जो खुद भी कुछनहीं समझता कि जिससंपदा पर उसने कब्जाकिया है वह क्या है,लेकिन फिर भी लोगों मेंयह भ्रांति बनाए रखताहै कि वह समझता है। शब्दसमझता है, सार नहींसमझता। शास्त्र समझताहै, सत्य नहीं समझता। औरये सत्य का जो जगत है,अनुभव का जगत है, विचारका जगत नहीं है।

पंडित -पुरोहित बड़ेविचारपूर्ण हैं; मगर सत्यका अनुभव ही विचार सेनहीं हैं, ध्यान से है। बुद्धपैदा होंगे तो उनके पासआसपास प्रेमियों की,पियक्कड़ों की जमातबनेगी। लेकिन बुद्ध ने जानेपर अड़चन आएगी। बुद्ध केजाते ही पंडित इकट्ठे होजायेंगे।

स्वभावत: उस भीड़– भाड़ में जो सर्वाधिकमुखर होंगे, बोलने में समर्थहोंगे, समझाने में समर्थहोंगे-वें नेता हो जाएंगे।चाहे वे अनुभवी हों या नहों लेकिन चूंकि बोल सकतेहैं, वे नेता, और नेतृत्वग्रहण कर लेंगे। धीरे –धीरे अनुभवियों को तो वेबाहर कर देंगे, क्योंकिअनुभवियो के कारण उनकोअड़चन होगी। उनकागिरोह इकट्ठा होजाएगा। और अनुभवी काचिंता भी नहीं है नेतृत्वकरने की। और अनुभवी कोकोई जनता के ऊपर कब्जाभी नहीं करना है।

औरअनुभवी को कोई जनताको शोषण भी नहीं करनाहै। लेकिन ये पंडित मौकान छोड़ेंगे। इन पंडितों कीजमात फिर सदियों तकलोगों का शोषण करेगी।नाम चलेगा बुद्ध का, बुद्धके नाम की आडू में पंडितकी दुकान चलेगी। यहपंडित कैसे राजी होगाकि कोई दूसरा बुद्धलोगों को जगाए?

क्योंकिअगर लोग जाग जायें तोइसके ग्राहक कम होजाएंगे, उसकी दुकानटूटती है।एक होटल में दो बैरे बातकर रहे हैं।पहला बैरा : यह आदमीशराब पी कर टेबल पर हीसो गया है। उसे दो बारजगा चुका हूं, अब तीसरीबार जगाने जा रहा हू।दूसरा बैरा : उसे बाहरक्यों नहीं निकाल देते?पहला बैरा : वह मैं नहींकर सकता, क्योंकि हरबार जगाने पर वह बिलअदा करता है और फिर सोजाता है।

ऐसे आदमी को बाहर कैसेकरो! सोये लोगों कीजमात है, इसमें पंडित खूबशोषण कर रहा है। अगरकोई जगाने वाला आएगातो पंडित को दुश्मनमालूम होगा। अगर बुद्धस्वयं लौटें तो बुद्ध के हीभिक्षु और पंडित बुद्ध काविरोध करेंगे। अगर जीससवापिस लौटें तो पोप -पादरी ही उनका विरोधकरेंगे। स्वाभाविक,क्योंकि कोई भी जो जगादेगा, फिर लोग पंडित केजाल में नहीं पडेंगे।

पंडित तो चाहता है : औरलाओ अफीम। और दोअफीम! और पिलाओ अफीम!कार्ल मार्क्स ने ठीक हीकहा है कि धर्म अफीम कानशा है। निन्यानबेप्रतिशत यह बात सच है,सिर्फ एक प्रतिशत गलतहै। बुद्ध -महावीर, कृष्ण-क्राइस्ट के संबंध में गलतहै, बाकी निन्यानबेप्रतिशत-शंकराचार्य औरवेटिकन के पोप और जामामस्जिद के इमाम, इन सबकेसंबंध में तो बिलकुल सहीहै।पंडित की इतनी पकड़क्यों है जन-मानस पर?

तुमपूछते हो… जन-मानस क्योंउसके जालों में फंस जाताहै? क्योंकि उसके पाससुंदर -सुंदर शब्द हैं, भाषाहै, तर्कजाल है।जज ने चोर से पूछा : तुम उसघर में क्यों घुसे थे? चोरकोई साधारण चोर नहींथा, संस्कृत भाषा काजानकार था।

असफल होगया था परीक्षाओं में,इसलिए पंडित न होजाया सो चोर हो गयाथा। सो उस चोर ने बड़ेसरल भाव से जवाब दिया: मैं क्या करता, दरवाजेपर स्वागतम लिखा था,इसलिए।शब्द ही समझ में आते हैं कुछलोगों को। शब्द ही उनकीनौका, शब्द ही उनकासार – सर्वस्व। और जनताको भी शब्द ही समझ मेंआते हैं। और शब्द अगर बहुतदिन तक दोहराए जायेंतो उनमें ऐसी प्रतीतिहोने लगती है कि सत्य हैं।

जैसे अगर सदियों -सदियोंतक कोई बात कही गयी हैतो तुम मान ही लेते होकि ठीक होगी, अन्यथाइतने दिन इतने लते कैसेमानते! जार्ज बर्नार्डशॉ को किसी आदमी नेकहा…।जार्ज बर्नार्ड शॉ नेबहुत व्यंग्य किए हैं और बड़ेमहत्वपूर्ण व्यंग्य किए हैं।अस सदी के कुछ समझदारलोगों में एक आदमी था।किसी आदमी ने कहा किआन बहुत-सी ऐसी बातेंकहते हैं जिनको दुनिया मैंकोई भी नहीं मानता।इतने लोग गलत कैसे होसकते हैं?

जार्ज बर्नार्ड शॉ नेपता है क्या उत्तर दिया!जार्ज बर्नार्ड शॉ नेकहा कि इतने लोग सहीकैसे हो सकते हैं? सही तोकभी कोई एकाध होता है।जागा तो कोई कभीएकाध होता है। बर्नार्डशॉ की बात में बल है, जोउसने पूछा कि इतने लोगसही कैसे हो सकते हैं।जार्ज बर्नार्ड शॉअमरीका मैं बोल रहा था,एक भाषणमाला दे रहाथा।

जैसे उसकी आदत थी,लोगों को चौंका देने की,कभी उल्टी-सीधी बातेंकह देने की, तो उसने शुरूही व्याख्यान इस तरहकिया… चारों तरफ देखाखड़े होकर मंच पर और कहाकि मैं देखता हूं कि यहांकम-से -कम पचासप्रतिशत महामूढ़ बैठे हुएहैं। अमरीका जैसा देश,लोग एकदम नाराज होगये! हों-हल्ला मच गया।लोगों ने कहा। : यह क्यामजाक है?

अपने शब्दवापिस लो!थोड़ी देर तो बर्नार्डशॉ खड़ा रहा, शोरगुलसुनता रहा। जब लोग खूबचिल्लाने लगे और कुर्सियोंफेंकने की नौबत करीब आनेलगी तो उसने कहा :अच्छा भाई, मैं अपने शब्दवापिस लेता हूं। यहांपचास प्रतिशत बड़ेबुद्धिमान लोग आए हुए हैं।और लोग प्रसन्न हो गये,और अपनी- अपनी जगह बैठगये। लोगों की समझ हीइतनी है। इससे ज्यादाकोई उसकी गर्दन पकड़लेगा जिसके भी हाथ मेंगर्दन आ जाए उसकी।जिनके भी करीब पड़ गया,वे ही उसकी गर्दन पकड़लेंगे। उसका पिलाने लगेंगे।घुटी के दूध के साथ, चलोरामायण, गीता, कुरान।उसे होश ही नहीं है, तुमउसे पिलाए जा रहे हो।

जब तक उसे होश आएगा तबतक उसकी हड्डी-मांस -मज्जा में समा गयीतुम्हारी बकवास। बस तुमहनुमान जी को पूजते हो,वह भी पूजने लगा। तुमहनुमान-चालीसा पढ़तेहो, वह भी पढ्ने लगा। तुममानते हो कि हनुमान-चालीसा में बड़ी शक्ति है,वह भी मानने लगा किहनुमान-चालीसा में बड़ीशक्ति है।हनुमान-चालीसा में क्याशक्ति हो सकती है?हनुमान की पूजा कैसे चलपड़ी? अगर तुम इसकेभीतर जाओ तो तुम्हें बड़ीहैरानी होगी। यह वैसाही जैसे अगर तुम्हें दिल्लीमें मोरारजी भाई तकपहुंचना हो तो पहलेकिसी चमचे को पकड़ो।चमचा-चालीसा! हनुमानजी सेवक हैं

रामचंद्र जीके, रामचंद्र जी तक सीधीपहुंच होना तो जरामुश्किल है, हनुमान जी कोपकड़ो! और ये रहे बंदर, सोजरा इनको फुसलाया,पीठ थपथपायी, जरा पूंछपर तेल-मालिश की, ये खुशहो गये। इन्होंने कंधे परबिठाया और ले चले किचलो रामचंद्र जी सेमिलवा दें! और इनके लिएतो सब द्वार खुले हैं,रामचंद्र जी के हों किसीता मैया के हों, ये तोकहीं भी घूस जाएं। ये तोअशोक वाटिका में घुस गयेथे। तो इनको तो कौनरोकेगा, कहां रोकेगा!हनुमान-चालीसा पढ़ो!तो तुम भी पढ्ने लगे।हनुमान जी की मूर्तिजाती है रास्ते में, तुम्हेंपता ही नहीं रहता कितुमने कब सिर झुका लिया।एक सज्जन मेरे साथ घूमनेजाते थे रोज सुबह। जो भीमंदिर इत्यादि मिलताजल्दी से वे सिर झुका लेते।दों-चार दिन मंजने देखा।मैंने उनसे कहा कि यह तुमहोश से करते हो कि ये एकयंत्रवत आदत हो गई है?

तो उन्होंने कहा : नहीं -नहीं होश से करता हूं। मैंनेकहा : तो फिर एक कामकरो, कल होश रखना किनहीं करना है। अगर होशसे करते हो तो कल एकदिन सबूत दो इस बात काकि नहीं करना है।कल मैं उनको लेकर फिरनिकला। बस पहले हीहनुमान जी का मंदिरआया कि मैंने कहा, कहो।…‘मैं भूल ही गया। ‘ फिर वेकहने लगे : डर भी लगता है,रात में मैं सोचता भी रहाकि एक दिन के प्रयोग केलिए और अपनी जिंदगी-भर की तपश्चर्याछोड़ना! और कहीं हनुमानजी नाराज हो जाएं,फिर? तो भय भी है!जनता भयभीत है औरलोभी है और मूड है औरसोई हुई है।

इसका शोषणबिलकुल आसान है। किसीभी तरह का इसका शोषणकर सकते हो।मैं सूरत गया। एक मित्र नेआ कर कहा कि आपकी बातेंसुनकर प्रीतिकर लगीं। मैंएक ऐसे संप्रदाय मैं पैदाहुआ हूं जहां एक अजीबसिलसिला है। वहसिलसिला यह है कि तुमलाख रुपया अभी दान करदो मौलवी को, जोप्रधान है संप्रदाय काउसको लाख रुपया अभीदान कर दो तो वहचिट्ठी लिख कर दे देता हैकि लिख दी भगवान केनाम कि सनद रहे, किइसने लाख रुपया दिया है,सो इसको ठीक -ठीकइंतजाम कर देनाइत्यादि…।

जो -जो लाखरुपये में हो सकता हैइंतजाम स्वर्ग में, वह सबचिट्ठी पर लिख कर देदेता है। और जब तुम मरोगेतो वह चिट्ठी तुम्हारीछाती पर रखकर कब्र मेंरख दी जाती है और लोगये कर रहे हैं। पैसा भगवानतक पहुंचता नहीं। औरचिट्ठी भी नहीं पहुंचती,क्योंकि चिट्ठी वहां कब्रमें पड़ी रहती है, वहचिट्ठी कहां जाने वाली!कौन चिट्ठी ले जाएगा?

मैंने उनसे कहा : तुम जरादों-चार कब्रें तो खोद करदेखो, चिट्ठी वहीं कीवहीं पड़ी होगी। उन्होंनेकहा कि वह तो पड़ी हीहै, वह जानी कहां हैचिट्ठी!मगर लोग दे रहे हैं लोभ!आदमी इतना कमजोर हैकि उसका शोषण करनाबहुत आसान है। उसे डरादेना बहुत आसान है। उसेघबड़ा देना बहुत आसान है।और पंडितों की सारीकला यह है कि घबड़ाओ,डराओ, भयभीत करो औरयह दावा करो कि हममध्यस्थ हैं। अगर तुमनेहमारी सुनी तो हमतुम्हारी सुरक्षा काइंतजाम करवा देंगे।

मौत केबाद, अगर तुमने अभीहमारी सुनी तो हमतुम्हारा साथ देंगे।और मौत का सबसे बड़ा भयहै। और जब तक मौत का भयहै तब तक पंडित तुम्हारीछाती पर हावी रहेगा।सदगुरु मौत के भय के मिटादेते हैं, क्योंकि वे तुम्हेंउसका अनुभव करवा देते हैंजिसकी कोई मृत्यु नहीं-उस अमृत का स्वाद तुम्हेंदिला देते हैं। अमी झरत,बिगसत कंवल! वे तुम्हारेभीतर उस लोक में प्रवेशकरा देते हैं जहां अमृत कीवर्षा हो रही है और कमलविकस रहे हैं।

ऐसे कमल, जोकभी मुरझाते नहीं! वे तुम्हेंशाश्वत और सनातन सेजोड़ देते हज।जो तुम्हें शाश्वत से जोड़देगा, जो तुम्हें मृत्यु केपार का दर्शन करा देगा,वही तुम्हें पंडित औरपुरोहित के जाल के बाहरले जा सकता है। इसलिएस्वभावत: पंडित औरपुरोहित, जो भी तुम्हेंजगाएगा उसके दुश्मन हैं।ईसा को सूली दी उन्होंने,सुकरात को जहरपिलाया, मैसूर की गर्दनकाटी। यही उनका कामरहा है! यही उनका कामआगे भी रहेगा। उनसेसावधान!

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