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Monday, 21 March 2016

कुछ भी ध्यान बन सकता है... अ - यंत्रवत होना -यही राज है : अ - यंत्रवत होना। यदि हम अपने कृत्यों को अ- यंत्रवत कर

कुछ भी ध्यान बन सकता है...
अ - यंत्रवत होना -यही राज है :
अ - यंत्रवत होना। यदि हम अपने कृत्यों को अ- यंत्रवत कर सकें, तोपूरा जीवन एक ध्यान बन जाता है।

फिर कोई भी छोटा - मोटा काम नहाना, भोजन करना, मित्र से बात करना —ध्यान बन जाता है।

ध्यान एक गुण है, उसे किसी भी चीज में लाया जा सकता है। वह कोई विशेष कृत्य नहीं है। लोग इसी प्रकार सोचते हैं, वे सोचते हैं ध्यान कोई विशेष कृत्य है —कि जब तुम पूर्व की ओर मुंह करके बैठो, कुछ मंत्र दोहराओ, थोड़ी धूपबत्ती जलाओ, कि किसी निश्चित समय पर,निश्चित तरह से, निश्चित मुद्रा में करो।

ध्यान का उस सब से कोई लेना-देना नहीं है। वे सब तुम्हें यंत्रवत करने के उपाय हैं और ध्यान यंत्रवत होने के विपरीत है।तो यदि तुम सजग रह सको, तो कोई भी कृत्य ध्यान है, कोई भी कृत्य तुम्हें अपूर्व रूप से सहयोगी होगा।

-ओशोध्यान का विज्ञान

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