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Monday, 21 March 2016

अकबर एक राह से गुजरता था। एक शराबी ने बड़ी गालियां दीं मकान पर चढ़कर। नाराज हुआअकबर। पकड़वा बुलाया शराबी को। रातभर कैद में रखा। सुबह दरबार में बुलाया। वह शराबी

अकबर एक राह से गुजरता था। एक शराबी ने बड़ी गालियां दीं मकान पर चढ़कर। नाराज हुआअकबर। पकड़वा बुलाया शराबी को। रातभर कैद में रखा। सुबह दरबार में बुलाया। वह शराबी झुक-झुककर चरण छूने लगा।

उसने कहा,क्षमा करें। वे गालियां मैंने न दी थीं।अकबर ने कहा, मैं खुद मौजूद था। मैं खुद राह से गुजरता था। गालियां मैंने खुद सुनी हैं। किसी और गवाह की जरूरत नहीं।

उस शराबी ने कहा, उससे मैं इंकार नहीं करता कि आपने सुनी हैं। आपने जरूर सुनी होंगी, लेकिन मैंने नहीं दीं। मैं शराब पीए था। मैं होश में न था। अब बेहोशी के लिए मुझे तो कसूरवार न ठहराओगे! शराब से निकली होंगी, मुझसे नहीं निकलीं। जब से होश आया है, तब से पछता रहा हूं।तुमने जो कुछ किया है, बेहोशी में किया है।

जब होश आएगा, पछताओगे। तुमने जो बसाया है, बेहोशी में बसाया है। जब होश आएगा तब तुम पाओगे, रेत पर बनाए महल। इंद्रधनुषों के साथ जीने की आशा रखी।

कामनाओं के सेतु फैलाए, कि शायद उन से सत्य तक पहुंचने का कोई उपाय हो जाए। तुम्हारी तंद्रा में ही तुम्हारे सारे संसार का विस्तार है।

ओशो, एस धम्मो सनंतनो,
भाग -3,
प्रवचन -21

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